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अगले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए आरएसएस ने बड़ा प्लान : रिपोर्ट

अगले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए विपक्ष ने भी अपने पासे फेंकने शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने की कवायद में लगे हैं, तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातिगत जनगणना का दांव चलकर दलित-ओबीसी जातियों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में जुट गए हैं। देश की इस सियासी तस्वीर के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) 2025 में अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर रहा है। इस शताब्दी वर्ष के लिए आरएसएस ने भी अपना एक लक्ष्य निर्धारित किया है। संघ के इस लक्ष्य में उत्तर प्रदेश और बिहार को लेकर एक बड़ी रणनीति बनाई गई है। उसके पदाधिकारी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जुट गए हैं। संघ का यह लक्ष्य क्या है और अपने शताब्दी वर्ष में वह कैसा भारत देखना चाहता है?

आरएसएस शताब्दी वर्ष तक पूरे देश में एक लाख शाखाएं स्थापित करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग योजनाएं बनाई गई हैं। ग्रामीण भारत में हर गांव में एक शाखा स्थापित करने का लक्ष्य है, तो शहरी इलाकों में प्रति दस हजार आबादी पर एक शाखा संचालित करने का लक्ष्य है। समय-समय पर इसके लिए विशेष अभियान चलाने की भी योजना है, जिसके जरिए इस लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश की जाएगी।

यूपी-बिहार में बड़ा लक्ष्य

लेकिन संघ की सबसे बड़ी योजना यूपी और बिहार को लेकर है। देश की सियासी तस्वीर तय करने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले राज्यों यूपी-बिहार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जातिगत सोच पर हिंदुत्व की सोच को ज्यादा ताकतवर और प्रभावी बनाना चाहता है। यानी संघ चाहता है कि लोग जातिगत सोच को अपने निजी जीवन तक ही सीमित रखें, लेकिन जब व्यापक हितों की बात हो, तो वे राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को एक हिंदू समाज के अंग के रूप में सोचे। इसके लिए व्यापक स्तर पर रणनीति तैयार की गई है और इसके लिए लोगों को संघ से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के एक सप्ताह के उत्तर प्रदेश प्रवास को भी संगठन की इसी सोच से जोड़कर देखा जा रहा है।

मजबूत जमीन तैयार करना चाहता है संघ

हालांकि, संघ के आलोचक इसे हिंदुत्व की राजनीति को मजबूत और स्थायी रूप देने की कोशिश मानते हैं। उनके मुताबिक, संघ ने यह देखा है कि इस हिंदी पट्टी वाले क्षेत्र में 2014 से ही लगातार हिंदुत्व के मुद्दों वाली राजनीति को सफलता मिल रही है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों और 2017 और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में जो रिकॉर्ड सफलता पाई है, उसके पीछे हिंदुत्व की राजनीति को ही सबसे प्रमुख माना जा सकता है। हिंदुत्व और विकास के मिश्रित मॉडल ने जातिगत समीकरणों को ध्वस्त करते हुए भाजपा को एतिहासिक सफलता दिलाने में कामयाबी पाई। संघ इस सोच को स्थाई रूप देना चाहता है।

बिहार में भी भाजपा ने लगभग इसी तरह की सफलता पाई। लेकिन पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में यह साफ हो गया कि यहां जातिगत समीकरण अभी भी काफी मजबूत हैं। चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया कि बिहार में जैसे ही जातिगत सामाजिक समीकरणों की बात आएगी, हिंदुत्व का मुद्दा कमजोर पड़ सकता है। संघ इस कमजोरी को दूर कर हिंदुत्व की राजनीति की ज्यादा गहरी पिच तैयार करना चाहता है। और इसको लेकर उसकी कवायद जारी है।

व्यक्ति-समाज निर्माण करता है संघ

उत्तर प्रदेश में संघ के विस्तार के लिए काम कर रहे आरएसएस पदाधिकारी अनिल त्यागी ने अमर उजाला से कहा कि संघ राजनीतिक लक्ष्यों को लेकर कभी कार्य नहीं करता, इसलिए उसके कार्यों को सियासी समीकरणों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ व्यक्ति निर्माण का कार्य करता है। वह व्यक्ति निर्माण के माध्यम से समाज निर्माण और समाज निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण का कार्य करता है और उनके हर कार्य इसी दिशा में प्रेरित होते हैं।

अनिल त्यागी ने कहा कि अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने के पहले ही आरएसएस भौगोलिक दृष्टि से देश के हर कोने तक पहुंच चुका है। संघ और उसके स्वयंसेवक लगभग हर क्षेत्र में जनता की सेवा का काम कर रहे हैं। लेकिन संघ अभी भी मानता है कि समाज के कुछ वर्गों में अभी भी उसकी पहुंच अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पाई है। संघ इसी के लिए प्रयासरत है।

उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में भारत की सफलता तभी सिद्ध होगी जब देश का हर नागरिक एकता के भाव से राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए अपना योगदान दे। इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए संघ समाज के सभी वर्गों को उनकी व्यक्तिगत पहचान कायम रखते हुए एकता के भाव में बांधना चाहता है और उनका पूरा प्रयास इसी ओर है।