साहित्य

अपनी पेंशन से पैसा आंटी घर में ख़र्च करती है तब जाकर घर चल पाता है

दिन के 11 बजे दरवाजे पर एक आटो आकर रुका । जिसमें से देवकी आंटी लठिया टेकती हुई निकली और अंदर आकर सोफे पर धम्म से बैठ गई और रोने लगी ।मैं उस समय बाथरूम में थी ।पति महोदय बैठे थे डांइग रूम में । उन्होंने देवकी आंटी से पूछा क्या हुआ आंटी आप रो क्यों रही हो लेकिन वो बिना कुछ बताए लगातार रोए जा रही थी ।मैं जब बाथरूम से बाहर आई तो अचानक उनको देखकर चौंक गई।

मैंने पहले तो उनके पास बैठ कर उनको शांत कराया और एक गिलास पानी पिलाया फिर पूछा अच्छा अब बताओ क्या बात है आप रो क्यों रही हो। फिर बोली बेटा मेरी पेंशन नहीं मिलेगी तो मैं कैसे गुजर बसर करूंगी। मैंने कहा अच्छा ठीक से बताओ क्या बात है। देवकी आंटी के तीन बेटे और एक बेटी है बेटी की शादी हो चुकी है सभी बेटों की भी हो चुकी है एक बेटा बैंगलोर में रहता है और एक बेटा इसी शहर में अलग रहता है और तीसरा आंटी के साथ रहता है बाकी दोनों बेटों की कमाई धमाई तो अच्छी है लेकिन जो आंटी के साथ रहता है उसका एक जनरल स्टोर है जो ज्यादा अच्छा नहीं चलता उसके दो बेटियां हैं घर चलाने के लिए अपनी पेंशन से पैसा आंटी घर में खर्च करती है तब जाकर घर चल पाता है। बाकी दोनों बेटे कोई मदद नहीं करते ।पति की मृत्यु काफी पहले हो गई थी।

मैंने पूछा फिर क्या प्राब्लम हो गई तो वो बोली दो महीने से अपनी पेंशन का कुछ पैसा मैं अपने पास रख रही हूं वो क्या है मेरी तबियत ठीक नहीं है इलाज कराना है इसलिए । कोई तो एक पैसा देता नहीं है ।बेटा कह रहा है कि पूरी पेंशन हमको दे दो अब तुम्हें इस उमर में क्या जरूरत है ।जो जरूरत होगी हम खर्च करेंगे।मैं तो कुछ जानती नहीं हूं बेटा साइन कराकर मुझसे पेपर ले जाता था और पैसे ले आता था । लेकिन अब मैंने साइन करने से मना कर दिया है तो उसने पेपर छिपा दिया और कहा रहा है मैं नकली साइन करके पैसे निकाल लूंगा । क्या करूं मैं बेटा मैं तो पाई पाई को मोहताज हो जाऊंगी। कोई एक गिलास पानी को भी नहीं पूछता ।बेटा तुम लोग कुछ कर दो ।

दरअसल हम लोग जब इस शहर में नये नये आए थे तो देवकी आंटी के घर पर सात साल किराए से रहे थे। आंटी मुझको बहुत मानती थी सब अपना सुख दुख मुझसे कहती थी । काफी अच्छी पटती थी हमारी और आंटी की । पहले जब चलने फिरने की अवस्था में थी तो बराबर आना जाना लगा रहता था ‌। मेरे दोनों बच्चे भी इन्हीं के घर पैदा हुए थे बच्चों से भी काफी लगाव था उनका ।पर अब तो वो 80 के करीब है गई है चलने फिरने में भी असमर्थ हो गई है । लेकिन उनका ऐसा विश्वास हम लोगों पर जम गया है कि कोई परेशानी हो हम लोगों को बतातीं जरूर है । यही सोंच कर आज घर आ गई।

पति ने फिर घर जाकर बेटे को अच्छी डांट लगाई और पेपर वगैरह मांग कर लें आए । आंटी किसी तरह बैंक ले जाकर उनका सारा काम कराया और पेंशन बहाल कराई ।और अब तो बैंक में ऐसी भी सुविधा है कि यदि बुजुर्ग चलने फिरने में असमर्थ हैं तो पेंशन उनको घर बैठे बैठे ही मिलेगी ये भी सुविधा पति ने करवा दी ।अब जाकर उनकी परेशानी दूर हो गई।भर भर आशीष देने लगी हम लोगों को। कहने लगी बेटा तुम्हारा सहारा मिल गया तो मेरा काम हो गया नहीं तो हम क्या करते। कभी किसी की मदद करके कितना सुकून मिलता है न ।आज की पीढ़ी को तो पता नहीं क्या हो गया है । बुजुर्ग माता-पिता का ध्यान ही नहीं रखते ।ये छोटा सा तिनके का सहारा किसी की खुशी का कारण बनता है तो जरूर करें ।

#तिनके का सहारा
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
10 सितम्बर 23
रचना पूर्णतया मौलिक और स्वरचित है