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अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले आतंकवादी हैं तो भारतीय लोगों के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में क्या विचार है?

34 दिनों से फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के ख़िलाफ अवैध जायोनी सरकार के अपराध और पाश्विक हमले जारी हैं।

इस्राईल के पाश्विक हमलों में अब तक साढ़े दस हज़ार से अधिक फिलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं जिनमें सबसे अधिक संख्या बच्चों और महिलाओं की है। यही नहीं अवैध जायोनी शासन ने गज़्ज़ा पट्टी का पूरी तरह से कड़ा परिवेष्टन कर रखा है वहां वह दवाओं, खाद्य पदार्थों और दूसरी ज़रूरी चीजों के प्रवेश की अनुमति नहीं दे रहा है जिसके वजह से फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों को विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

34 दिनों से फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ इस्राईल के पाश्विक हमले जारी हैं परंतु राष्ट्रसंघ और सुरक्षा परिषद न तो इस युद्ध को रोकवा पाये और न ही इस्राईल के खिलाफ कोई कड़ा प्रस्ताव पारित करा पाये। उसकी सबसे बड़ी वजह अमेरिका और कुछ पश्चिमी व यूरोपीय देशों द्वारा इस्राईल का व्यापक व खुला समर्थन है। इस्राईल के दुस्साहस की मुख्य वजह अमेरिका सहित कुछ देशों का खुला समर्थन है।

अब विश्व जनमत के सामने अमेरिकी समर्थन जग जाहिर है और पूरी दुनिया अपनी नज़रों से देख रही है कि अमेरिका और उसकी हां में हां मिलाने वाले मानवाधिकार और डेमोक्रेसी के दावे में कितने सच्चे हैं। यही नहीं अमेरिका और पश्चिमी व यूरोपीय देश स्वयं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ध्वजावाहक कहते व समझते हैं। जब इन्हीं देशों में पवित्र कुर्आन का अनादर किया जाता है और उसे जलाया जाता है तो यही देश इस कृत्य का औचित्य दर्शाने के लिए कहते हैं कि सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है परंतु जब इन्हीं देशों में इस्राईल के पाश्विक हमलों की निंदा करने और फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के समर्थन में इन्हीं देशों में रहने वाले लोग प्रदर्शन करना चाहते हैं तो उन्हें प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी जाती है और यह भी कहा जाता है कि जो भी फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करेगा उसे पांच साल की सज़ा दी जायेगी। यह है पश्चिमी व यूरोपीय देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वास्तविकता।

इस बात को विश्व जनमत बहुत अच्छी तरह जानता है कि अगर हिटलर ने यहूदियों को मारा है तो जर्मनी में मारा है न कि फिलिस्तीन में। यहूदियों की हत्या में फिलिस्तीनियों की कोई भूमिका व दोष नहीं है। यहूदियों को मज़लूम बताकर उन्हें फिलिस्तीनियों की मातृभूमि पर बसा दिया गया है और 75 साल से अधिक समय से उन पर अत्याचारों का सिलसिला जारी है।

कहने का तात्पर्य है कि इस्राईल ने फिलिस्तीनियों की मातृभूमि पर कब्ज़ा किया है न फिलिस्तीनियों ने यहूदियों की भूमि पर और अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिए संघर्ष करना राष्ट्रसंघ और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार भी है और जो लोग फिलिस्तीन के स्वतंत्रता प्रेमी संगठनों व गुटों को आतंकवादी कहते हैं उनसे पूछा जाना चाहिये कि आतंकवादी किसे कहते हैं? आतंकवाद की परिभाषा क्या है? अगर अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिए लड़ने वाले आतंकवादी हैं तो जब भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटेन का कब्ज़ा था और वहां के लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़कर ब्रिटेन को अपनी मातृभूमि से भगाया था तो उस समय आतंकवादी कौन था?

नोटः यह लेखक के निजी विचार हैं। इनसे तीसरी जंग हिंदी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है।