दुनिया

अफ़ग़ानिस्तान को संयुक्त राष्ट्र संघ में सीट नहीं देना, अफ़ग़ान ज़नता के हक़ में ज़ुल्म है : तालिबान शासन

संयुक्त राष्ट्र संघ में सीट हासिल करने के लिए तालिबान का प्रयास

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा है कि तालिबान शासन को संयुक्त राष्ट्र संघ में सीट नहीं देना, अफ़ग़ान ज़नता के हक़ में ज़ुल्म है।

तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में सीट हासिल करने की बात ऐसी स्थिति में कही है, जब विश्व समुदाय ने अभी तक उनके शासन को मान्यता प्रदान नहीं की है। संयुक्त राष्ट्र संघ में अभी भी पूर्व सरकार के दूत नसीर अहमद फ़ायक़ इस देश की सीट संभाले हुए हैं।

इसका मतलब है कि पिछले दो साल से तालिबान शासन ने इस देश की सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के बावजूद, देश में मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों में सुधार के लिए कोई गंभीर क़दम नहीं उठाया है।

अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ बशीर तेसदा का इस संदर्भ में कहना है कि यद्यपि हर देश में वहां के शासक अपनी योजनाओं और नीतियों को लागू करने में स्वतंत्र होते हैं, लेकिन शासक नागरिकों और नागरिक अधिकारों को लेकर कुछ अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रभाव में होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार का अंतरराष्ट्रीय क़ानून के रूप में पालन करना सभी सरकारों के लिए बाध्यकारी है, और इस तरह के मुद्दों के संबंध में शासकों की निजी राय का कोई महत्व नहीं होता है।

इसके बावजूद, तालिबानन अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता अपने हाथों में लेने के बावजूद, पिछले दो साल के दौरान, इस संबंध में कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है और वे लगातार मानवाधिकारों और महिला अधिकारों की अनदेखी कर रहे हैं। तालिबान अपने ख़ास चश्मे से इस तरह के मुद्दों को देखते हैं, और उनके लिए अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का कोई महत्व नहीं है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ तालिबान शासन पर लगातार, दबाव डालता रहा है और उसने कई बार लड़कियों के स्कूल फिर से खोले जाने की मांग की है।

पिछले दो साल के दौरान, इस तरह के मुद्दों के समाधान के लिए राष्ट्र संघ के कई अधिकारियों ने तालिबान नेताओं से मुलाक़ातें की हैं और उन्हें महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने के लिए राज़ी करने का प्रयास किया है, लेकिन कई बार आश्वासन देने के बावजूद तालिबान ने व्यवाहरिक रूप से कोई क़दम नहीं उठाया है।

इसलिए ज़बीहुल्लाह मुजाहिद का यह दावा कि तालिबान, देश को आज़ादी, स्वाधीनता और इस्लामी व्यवस्था की दिशा में ले जा रहे हैं, सिर्फ़ एक खोखला दावा है, क्योंकि कोई भी देश अपनी आधी आबादी के अधिकारों को नज़र अंदाज़ करके स्वाधीनता और स्वतंत्रता का दावा नहीं कर सकता और इसी तरह इस्लामी व्यवस्था की स्थापना नहीं कर सकता है।

बहरहाल दो साल से भी ज़्यादा का समय बीत रहा है, लेकिन तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों को मान्यता प्रदान नहीं की है। तालिबान अपनी ही ख़ास विचारधारा के आधार पर लड़कियों को शिक्षा से वंचित रख रहे हैं, जबकि इस्लाम पुरुषों और महिलाओं की शिक्षा पर समान रूप से बल देता है।