इधर तोड़ते हैं तो उधर क्यों छोड़ते हैं, DB लाइव के पत्रकार राजीव के सवाल पर पत्रकार बुशरा ख़ानम का जवाब यहाँ प्रस्तुत है
राजीव जी देखिये ये क्लियर मैसिज है और इसमें न तो सरकार कुछ छिपाने की दबाने की कोशिश नहीं कर रही है वो आप को साफ़ साफ़ बता रही है कि वो किस के साथ खड़ी है और किस के खिलाफ खड़ी है, और एक बार नहीं वो बार-बार बारहा ये बताने की कोशिश कर रही है, देखिये, देश की जो सबसे बड़ी मोईनोर्टी है 20 करोड़ से ज़यादा मुस्लमान जो इस मुल्क में रहते हैं उनको सेकंड क्लास सिटिज़न बनाने की पूरी कोशिश है, और पूरी हद तक वो कामयाब होते हुए भी नज़र आ रहे हैं, जहाँ सबसे महत्वपूर्ण है उनके उनके वोट की जो कीमत है उसको ही ख़त्म कर देना, और वो लगभग अलग-अलग जगहों पर हम ये देख रहे हैं, देखिये बुलडोज़र की सियासत की आप बात कर रहे हैं, और उस बुलडोज़र की सियसत को देखते हुए और बुलडोज़र को ही देखते हुए एक बार फिर से उत्तर प्रदेश की जनता ने योगी आदित्यनाथ को कुर्सी पर बिठाया, उसी बुलडोज़र को नमूना बना कर अलग-अलग रैलियों में दिखाया गया, उसके मिनिएचर्स जब बनाये गए और रैलियों में खड़ा किया गया तो लोगों ने तालियां बजायीं क्यूंकि लोग ये देखना चाहते हैं लोग इसी तरह से उन्हें दिखाया जाता है उस पर ही वो तालियां बजाते हैं और सबसे ज़यादा शर्मिंदगी की, सबसे ज़यादा जिस तरह से एक घिनोना चेहरा, एक गिद्ध नुमा चेहरा एक मीडिया का नज़र आ रहा है वो देखने वाली बात है, आप ये देखिये राजीव जी, कि आप ट्विटर पर जायें, आप उनके प्रोग्राम न भी देखें, आप टीवी चैनल न भी देखें, आप सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं और आप सिर्फ इनके ट्वीट्स ही देख लें तो वो इस तरह से जश्न मना रहे हैं, इस बुलडोज़र के चलने का, किसी के आशियाने का, किसी के खुआबों के आशियाने के टूट जाने का, रेज़ा-रेज़ा हो जाने का, ख़ाक़ में मिल जाने का, उसका जश्न मनाया जा रहा है, सवाल नहीं पूंछे जा रहे हैं, बल्कि कहा जा रहा है ऐसा क्यों न हो, ऐसा ही तो होना चाहिए यानी कि अब अदालतों की ज़रूरत नहीं है, यानी कि अब किसी जजमेंट की ज़रूरत नहीं है, आप को कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की ज़रूरत नहीं है, अब सरकार और पुलिस काफ़ी है सब कुछ कह देने के लिए, बाकी जो थोड़ी बहुत कसर बाकी है या मै यूँ कहूं कि पूरी कसर जो है मीडिया के स्टूडियोज में निकलती है जहाँ इन तमा चीज़ों को तर्क, वितर्क, कुतर्क से जो है इसको जाईज़ ठहराया जाता है, पल भर के लिए हम में से कोई एक भी शख़्स आफरीन और जावेद साहब जो हैं उनके मकान या उनकी स्थिति में अपने आप को खड़ा कर पायेगा, अगर पलभर के लिए भी तो आप को उनकी तकलीफ का अहसास होगा, कि किसी ट्रायल के, बिना किसी जुर्म के साबित हुए आपने उनको मुजरिम क़रार देकर जो आशियाना उन्होंने बनाया था, जिसमे उनकी यादें संजोयी हुई थी वो आपने कैसे रेज़ा-रेज़ा कर दीं, ख़ाक़ में मिला दीं, और ख़ाक में आपने मिला दिया वो लोकतंत्र का का खाब जो हमारे बाबाओ-अज़दाद ने देखा था, जिसके लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी, सबने मिल कर लड़ी थी उसको भी आपने तार-तार कर दिया, रेज़ा-रेज़ा कर दिया, ये मेरी तकलीफ है राजीव जी और और मै आपको बताऊँ राजीव जी जब वो तस्वीरें मै देख रही थी, यकीन जानिये कि तीन दिन हो गए हैं मै सही से सो नहीं पायी हूँ, जब भी सोती हूँ, आँखें बंद करती हों तो वो तस्वीर मेरे सामने आती है, मै कुछ लिख नहीं पा रही हूँ, मै कुछ कह नहीं पा रही हूँ, क्यूंकि जब भी कुछ कहने के लिए मै कलम उठाती हूँ या फिर अपने कंप्यूटर पर बैठती हूँ तो लगता है कि क्या लिखूं, एक बे बसी का आलम है मुझे इसे एक्सेप्ट करने में कोई गुरेज़ नहीं है, कि एक बेबसी का आलम है जब भी आप किसी मुस्लमान से आप बात के, अपने पडोसी से किसी रिश्तेदार से किसी से बात करते हैं तो एक तो इसी तरह की बातें होती हैं, देखिये इन्तिज़ार बस इस बात का हो रहा है कि कब अब आप की बारी है, आफरीन या उनकी फैमली ने भी नहीं सोचा होगा, एक पढ़ी लिखी फैमली से वो आती है JNU से उसने पढाई की, आपने उसके उसके परेंट्स को उनकी छोटी बेटी को देखा, कि कितने सभ्य तरीके से, कितने कम्पोज़ तरीके से अभी भी इतने ज़ुल्म के बावजूद वो अपनी बात को कह रही है, ये लग रहा है कि कब अब आपकी बारी आ जाये, हर कोई अपनी बारी का इन्तिज़ार कर रहा है, ज़ुल्म जो है, ज़ियादती जी है उसको इस तरह से जाईज़ ठहराया जा रहा है, मजोरटिस्म जो है उसकी सियासत की जा रही है और ये बताया जा रहा है कि आप के साथ खड़े होने वाला कोई नहीं है,,,,,
राहुल गाँधी की आप बात कर रही थे, आप ये देखिये, ज़ाहिर सी बात है कि सबसे बड़े नेता हैं राहुल गाँधी अपनी पार्टी के और पार्टी के तमाम नेताओं को साथ आना चाहिए था, एक जुटता वो नज़र आयी, डंडे खाते हुए बड़े बड़े नेता नज़र आये, इनमे से कुछ नेता, कुछ मुठीभर नेता अगर आफरीन के घर के बाहर जब बुलडोज़र चल रहा था या सहारनपुर में उस ग़रीब के मकान पर जब बुलडोज़र चल रहा था या उससे पहले जब बुलडोज़र चल रहे थे अगर वहां पर खड़े नज़र आते क्यूंकि देखिये जिनसे उम्मीद है उनसे ही कहा जा सकता है जिनसे उम्मीद नहीं उनसे क्या कहा जाए, अगर वहां नज़र आते तो ये बल मिलता कि कहीं न कहीं एक पार्टी का ज़ुल्म है, एक मजोरटेरियन की सियासत है और दूसरी तरफ जो पार्टियां हैं जो विपक्ष है एक जुट जो है वो खड़ा है उस लोकतंत्र को बचाने के लिए जिसकी वजह से हम सारी दुन्याँ में जाने जाते हैं लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि अखलेश यादव ट्विटर पर शायरी करते नज़र आते हैं और कांग्रेस के जो नेता हैं यहाँ तक कि आप ये देखिये 34 जो MLA हैं समाजवादी पार्टी के वो तक भी कुछ नहीं बोल रहे है, वो तक भी कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं, आप ये समझिये कि मुसलमानों के वोट की, उनके वक़ार की, उनकी इज़्ज़त की, उनकी हर एक चीज़ की क्या वलुय है, वो क्या पहनते हैं वो अब इल्लीगल हो गया है, वो क्या खाते हैं वो इल्लीगल है, वो कहा रह रहे हैं वो इल्लीगल है, वो अब प्रोटेस्ट नहीं कर सकते यानि कि लोकतंत्र की ऑक्सीजन माना जाता है प्रोटेस्ट करना, आप जब सरकार से नाराज़ होते हैं, उनके फ़ैसलों से नाराज़ होते हैं तो आप क्या करते हैं, आप सड़क पर आ कर प्रदर्शन करते हैं ताकि गूंगी-बहरी सरकारें आपकी आवाज़ को सुनें, लेकिन आप ये देखें कि उन आवाज़ों को हमेशा के लिए बंद करने का ये प्लान, एक ख़ाक़ा जो है वो तैयार किया गया है, जो लोग CAA/NRC प्रोटेस्ट दौरान जो एक्टिव थे उन चेहरों को जान बुझ कर चुना जा रहा है, उत्तर प्रदेश तो ज़ाहिरी तोर पर हिंदुत्व के बड़े चेहरे हैं, अलम्बरदार हैं, आप रांची में भी देखिये, झारखण्ड में भी देखिये, क्या हुआ सीधे-सीधे गोलियां मारी गयीं, केरला में प्रोटेस्ट हुआ तो हिजाब पकड़ कर खींचते हुए किस तरह से उस मुस्लिम एक्टिविस्ट को ले जाया गया, ज़ुल्म की कहानी सब जग एक जैसी ही है, लेकिन मज़लूम जो है वो एक ही है वो है मुस्लमान …. (शब्द-ब-शब्द टायप किया गया है)
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راجیو جی، دیکھیں یہ ایک واضح پیغام ہے اور نہ ہی حکومت کچھ چھپانے کے لیے اسے دبانے کی کوشش کر رہی ہے، یہ آپ کو صاف بتا رہی ہے کہ وہ کس کے ساتھ کھڑی ہے اور کس کے خلاف کھڑی ہے، اور ایک بار بھی برہہ یہ بتانے کی کوشش نہیں کر رہی ہے۔ دیکھئے ملک کا سب سے بڑا اقلیت کون ہے، اس ملک میں بسنے والے 20 کروڑ سے زیادہ مسلمانوں کو دوسرے درجے کا شہری بنانے کی ہر ممکن کوشش کر رہے ہیں، اور اس میں وہ پوری طرح کامیاب بھی ہو رہے ہیں، دیکھا جا رہا ہے، جہاں سب سے اہم بات ان کے ووٹ کی قدر کو تباہ کرنے کی ہے، اور وہ یہ تقریباً مختلف جگہوں پر دیکھ رہے ہیں، دیکھیں آپ بلڈوزر کی سیاست کی بات کر رہے ہیں، اور اس بلڈوزر کی سیاست دیکھ کر اور بلڈوزر دیکھ کر، اتر پردیش کے لوگوں نے ایک بار پھر یوگی آدتیہ ناتھ کرسی پر بیٹھیں، ایک ہی بلڈوزر ماڈل بنا کر مختلف جلسوں میں دکھایا گیا، جب اس کے چھوٹے چھوٹے نقش بنائے گئے اور جلسوں میں کھڑے ہوئے تو لوگوں نے تالیاں بجا کر داد دی کیونکہ لوگ دیکھنا چاہتے ہیں کہ لوگوں کو اس طرح دکھایا جائے۔ صرف اور سب سے زیادہ شرمندگی پر تالیاں بجاتے ہیں، سب سے زیادہ یہ کہ جس طرح ایک مکروہ چہرہ، گدھ جیسا چہرہ میڈیا کو نظر آتا ہے، یہ تو دیکھنے کی بات ہے، آپ راجیو جی کو دیکھتے ہیں کہ آپ ٹوئٹر پر جاتے ہیں، آپ ان کے پروگرام بھی نہیں دیکھتے، آپ کرتے ہیں۔ ٹی وی چینل تک نہیں دیکھو، آپ سوشل میڈیا پر ایکٹو ہیں اور صرف ان کی ٹوئیٹس دیکھیں تو ایسے ہی جشن منا رہے ہیں، یہ بلڈوزر چل رہا ہے، کسی کا گھر، کسی کے خوابوں کا گھر ٹوٹا ہے، رضا رضا منایا جا رہا ہے، کہ یہ۔ جشن منایا جا رہا ہے، سوال نہیں پوچھے جا رہے، بلکہ کہا جا رہا ہے کہ ایسا کیوں نہ ہو، ایسا ہونا چاہیے، یعنی اب
عدالتوں کی ضرورت نہیں، یعنی اب کسی فیصلے کی ضرورت نہیں، آپ کو عدالت کا دروازہ کھٹکھٹانے کی ضرورت نہیں، اب سب کچھ کہنے کے لیے حکومت اور پولیس ہی کافی ہے، جو رہ گیا ہے وہ تھوڑا ہے یا میں یہ کہوں کہ ساری کوشش میڈیا کی ہے، باہر اسٹوڈیوز میں آتا ہے۔ جہاں یہ سب باتیں منطق، دلیل، جادو ٹونے سے ثابت ہوں، ایک لمحے کے لیے ہم میں سے کوئی بھی آفرین اور جاوید صاحب، جو ان کے گھر یا ان کے حال میں ہیں، خود کھڑا کر سکیں گے، ایک لمحے کے لیے بھی ان کا درد محسوس کریں گے، کہ بغیر کسی مقدمے کے، بغیر کوئی جرم ثابت کیے، جو گھر انہوں نے بنایا تھا، جس میں ان کی یادیں سمائی ہوئی تھیں، آپ نے اسے کیسے بحال کیا؟ میں نے اسے اٹھایا، خاک میں ملایا، اور تم نے اس خاک میں ملا دیا جو ہمارے بابائے آزاد نے دیکھا تھا، جس کے لیے انہوں نے آزادی کی جنگ لڑی، تم سب نے مل کر لڑا، تم نے اسے بھی تار تار کیا، دیا، رضا، یہ ہے میرا مسئلہ راجیو جی اور میں آپ کو بتاؤں گا راجیو جی جب میں وہ تصویریں دیکھ رہا تھا، یقین جانو کہ تین دن ہوچکے ہیں، میں ٹھیک سے سو نہیں پایا، جب بھی سوتا ہوں، جب میں آنکھیں بند کرتا ہوں، وہ تصویر میرے سامنے آتا ہے، میں کچھ لکھ نہیں پا رہا ہوں، کچھ کہنے کے قابل نہیں ہوں، کیونکہ جب بھی میں کچھ کہنے کے لیے قلم اٹھاتا ہوں یا کمپیوٹر پر بیٹھتا ہوں، مجھے لگتا ہے کہ کیا لکھوں، مجھے کوئی جھجک نہیں ہوتی۔ یہ مان لینا کہ بے بسی کا حال ہے، جب بھی کسی مسلمان سے بات کرو، پڑوسی کے رشتہ دار سے بات کرو، تو ایک بات ایسی ہے۔ ہر طرح کی باتیں ہوتی ہیں، دیکھو، بس اس انتظار میں ہے کہ کب تمہاری باری آئے، آفرین یا اس کے گھر والوں نے سوچا بھی نہیں ہوگا، وہ ایک پڑھے لکھے گھرانے سے تعلق رکھتی ہے، اس نے جے این یو سے تعلیم حاصل کی ہے، تم نے اس کے والدین کو دیکھ کر، ان کے چھوٹی بیٹی، کتنے مہذب، کتنے کمپوزڈ انداز میں اتنے جبر کے باوجود اپنی بات کہہ رہی ہے، لگتا ہے جب تمہاری باری ہے، سب اپنی باری کر رہے ہیں، انتظار ہے، جو ظلم ہے، ظلم ہو رہا ہے۔ اس طرح جواز بنا کر اکثریت پرستی کی سیاست کی جا رہی ہے اور کہا جا رہا ہے کہ تمہارے ساتھ کھڑا کوئی نہیں،،،،،