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अमेरिका के PoK को आज़ाद कश्मीर बताने के बाद, अब जर्मनी ने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की भूमिका की मांग की : रिपोर्ट

जर्मनी ने पाकिस्तान के के साथ कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ बयान दिया । जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक ने कहा कि उनका देश कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की भूमिका की मांग करता है। उन्होंने यह बात पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के साथ एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही। बेयरबॉक ने कहा कि उनका मानना है कि संघर्षों को सुलझाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम एक शांतिपूर्ण दुनिया में रहें, दुनिया के हर देश की भूमिका और जिम्मेदारी है। इस दौरान बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन का दावा किया। उन्होंने भारत पर कश्मीरी नागरिकों पर अत्याचार करने और सेना के दम पर आवाज दबाने का आरोप लगाया।

बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार और कश्मीरी लोगों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए जम्मू कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के बिना दक्षिण एशिया के अंदर शांति संभव नहीं है। उन्होंने भारत पर कश्मीर में अत्याचार करने और मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया। बिलावल भुट्टो ने 10 मिलियन यूरो का चंदा मिलने के बाद जर्मनी की विदेश मंत्री को पाकिस्तान आने का न्योता भी दिया। बिलावल ने कहा कि पाकिस्तान और जर्मनी आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। इस दौरान जर्मन विदेश मंत्री ने पाकिस्तान में निवेश करने की बात भी की।

जर्मन विदेश मंत्री के कश्मीर पर बयान के बाद भारत ने भी जवाब देने में देर नहीं की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा कि जम्मू कश्मीर दशकों से आतंकवाद का खामियाजा भुगत रहा है और यह अब तक जारी है। बागची ने कहा कि वैश्विक समुदाय के सभी गंभीर और कर्तव्यनिष्ठ सदस्यों की अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, विशेष रूप से सीमा पार प्रकृति के आतंकवाद को खत्म करने की भूमिका और जिम्मेदारी है। भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर ने दशकों से इस तरह के आतंकवाद का खामियाजा भुगता है। यह अब तक जारी है।

बागची ने कहा कि विदेशी नागरिक वहां और भारत के अन्य हिस्सों में भी इससे पीड़ित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और एफएटीएफ अभी भी 26/11 के भीषण हमलों में शामिल पाकिस्तानी आतंकवादियों के पीछे लगे हैं। बागची ने कहा कि जब देश ऐसे खतरों को नहीं स्वीकार करते, या तो स्वार्थ या उदासीनता के कारण, वे शांति के उद्देश्य को कमजोर करते हैं और उसे बढ़ावा नहीं देते। वे आतंकवाद के पीड़ितों के साथ भी गंभीर अन्याय करते हैं।

(एजेंसी से इनपुट के साथ)