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अमेरिका पश्चिमी दुनिया में एक एंटी-चाइना जाल बुनने का प्रयास कर रहा है, भड़क उठा चीन : रिपोर्ट

China MFA Spokeswoman MAO NING: “Hearing this rhetoric, we can’t help but ask what the G7, as the wealthiest countries in the world, has visibly contributed to the wellbeing of developing countries? Why is the G7 so obsessed with smearing and disrupting the normal cooperation…

हिरोशिमा में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेस्की को बुलाकर जी-7 के नेताओं ने एक कड़ा संदेश दिया है.

लेकिन संदेश सिर्फ़ रूस को नहीं, चीन को भी दिया गया है.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा कि चीन दुनिया की सुरक्षा और समृद्धि के लिए “हमारे युग की सबसे बड़ी चुनौती” पेश की है

एक नहीं, बल्कि दो बयानों में, दुनिया के सबसे अमीर देशों ने इंडो-पैसिफ़िक और ताइवान पर अपनी नीतियां जाहिर कर दीं.

लेकिन जी-7 की बैठक से सामने आए संकेतों का सबसे ज़रूरी हिस्सा वो था, जिसे ये देश “आर्थिक दबाव” कह रहे हैं.

जी-7 के लिए ये एक मुश्किल बैलेंसिग एक्ट है. व्यापार के कारण वो चीन पर निर्भर हैं.

पिछले कुछ समय में चीन से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है लेकिन पश्चिमी देश मानवाधिकार जैसे कई मुद्दों पर चीन से असहमत नज़र आए हैं.

हाल के सालों में चीन उन देशों पर व्यापार प्रतिबंध लगाने से नहीं डरा जिन्होंने उसे निराश किया है.

जब दक्षिण कोरिया में अमेरिकी मिसाइल डिफेंस सिस्टम तैनात किया तो चीन ने तुरंत उसके ख़िलाफ़ सख़्त कदम उठाए.

यूरोपिय यूनियन को तब झटका लगा जब लिथुआनिया ने ताइवान को अपना दूतावास खोलने की इजाज़त दी और चीन ने उसपर प्रतिबंध लगा दिए.

इसलिए जी-7 जिसे “आर्थिक रूप से कमज़ोरों के सशस्त्रीकरण ” का “परेशान करने वाला उदय” मानते हैं, उनकी आलोचना हैरानी की बात नहीं है.

जी-7 देशों के बयान में कहा गया है कि इस रवैये से चीन “विदेशी और घरेलू नीतियों और जी 7 सदस्यों के साथ-साथ दुनिया भर के भागीदारों की स्थिति को कमजोर करना” चाहता है.

क्या है जी-7 का प्लान?
जी 7 ने अपने बयान में “डी रिस्किंग” की मांग की है. ये अमेरिका की चीन के लिए अपनाई जाने वाली “डिकप्लिंग” नीति का नरम संस्करण है, जिसके तहत वो कूटनीति व्यापक समझौते और टेक्नॉलॉजी के क्षेत्र में कड़क रवैया अपनाते हैं.

जी-7 मिनरल और सेमीकंडक्टर जैसे ज़रूरी सामाने के सप्लाई चेन को मज़बूत करने और डिजीटल इन्फ़्रास्ट्रक्चर को हैकिंग और टेक्नॉलॉजी की चोरी रोकने के लिए बुनियादी ढ़ाचे को मज़बूत करने की तैयारी कर रहा है.

निर्यात पर कंट्रोल की कोशिश
लेकिन उनका सबसे बड़ा प्लान है कई देशों के निर्यात पर कंट्रोल करना. इसका मतलब है साथ काम कर टेक्नॉलॉजी को मज़बूत करना, ख़ासतौर पर जिनका इस्तेमाल सेना और इंटेलिजेंस में होता है, ताकि वो “गलत लोगों” के पास न चली जाए.

अमेरिका चिप और चिप की टेक्नॉलॉजी के चीन को निर्यात पर बैन लगा चुका है. जापान और नीदरलैंड्स भी उसके साथ आ गए हैं. जी-7 ने साफ़ किया है कि ये कोशिशें न सिर्फ़ जारी रहेंगी बल्कि इनमें इज़ाफ़ा होगा – चीन के विरोध के बावजूद.

इसके अलावा उन्होंने कहा कि वो “गलत तरीके से टेक्नॉलॉजी ट्रांसफर” को रोकने की पूरी कोशिश करते रहेंगे.

अमेरिका समेत कई दूसरे देश उद्योगों में जासूसी को लेकर चिंतित हैं और चीन के लिए टेक्नॉलॉजी चोरी करने के आरोप में कई लोग पश्चिमी देशों में जेल जा चुके हैं.

इसके साथ ही जी-7 के नेताओं मे साफ़ किया कि वो रिश्ते सुधारना नहीं चाहते. आर्थिक मोर्चे पर दबाव के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहीं भी चीन का ज़िक्र नहीं किया, ताकि कूटनीति के तहत किसी पर सीधे उंगली न उठाई जाए.

चीन के बारे में उन्होंने अलग तरीके से बात की. उन्होंने कहा कि उनकी नीतियां “चीन को नुकसान पहुंचाने या चीन की आर्थिक तरक्की को रोकने के लिए नहीं बनाई गई हैं.”

लेकिन साथ ही उन्होंने चीन पर साथ चलने का दबाव बनाने की कोशिश की, ये कह कर कि “चीन का अंतरराष्ट्रीय नियमों से चलना दुनिया के हित में होगा.”

हमें नहीं पता कि चीन के नेता और राजनयिक जी-7 के संदेशों को कैसे लेंगे. लेकिन चीन के सरकारी मीडिया ने पश्चिमी देशों पर निशाना साधा है, वो चीन की आलोचना भी कर रहे हैं और आर्थिक पार्टनरशिप के साथ फ़ायदा भी ले रहे हैं.

चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने जापान के हिरोशिमा में हुए जी-7 सम्मेलन को एंटी-चाइना वर्कशॉप बताया है.

चीन ने क्या कदम उठाए
रविवार को चीन ने जापान के राजदूत को विदेश मंत्रालय में बुलाकर आपत्ति दर्ज की थी. चीन ने जी-7 के दौरान ब्रिटेन के बयानों पर भी सख़्त आपत्ति दर्ज की थी.

शनिवार को जी-7 देशों की बैठक के बाद की जारी बयान में चीन की ताइवान, परमाणु हथियारों, आर्थिक दमन और मानवाधिकारों जैसे मसलों पर आलोचना की गई थी.

ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा, “अमेरिका पश्चिमी दुनिया में एक एंटी-चाइना जाल बुनने का प्रयास कर रहा है. जी-7 एक एंटी-चाइना वर्कशॉप बन गया है. ये चीन के आंतरिक मामलों में सिर्फ़ हस्तक्षेप ही नहीं बल्कि दोनों समूहों में संघर्ष के उकसावे को हवा देना है.”

उधर लंदन में चीन के दूतावास ने ब्रिटेन से चीन के बारे में झूठे प्रचार को बंद करने का आहवान किया है. गौरतलब है कि जी-7 सम्मेलन के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक चीन को दुनिया की सुरक्षा और संपन्नता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया था.

हॉन्ग कॉन्ग की सिटी यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर वांग जियांग्यू ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, “इस बार चीन की प्रतिक्रिया काफ़ी तीख़ी है. जिन मुद्दों का जी-7 के बयान में ज़िक्र किया गया है कि उन्हें चीन अपने आंतरिक हित मानता है. उसे लगता है जी-7 का इन विषयों पर बयान चीन को नागवार गुजरा है.”

उधर चीन के नज़दीकी सहयोगी रूस ने भी जी-7 देशों के बयान में यूक्रेन की जंग के ज़िक्र को अनुचित ठहराया है. रूस ने कहा है कि ये सम्मेलन चीन और रूस विरोधी हिस्ट्रिया हवा देने के लिए किया गया है.

चीन ने जी-7 से इस तरह से बयानों की उम्मीद काफ़ी पहले से कर ली थी, चीन के सरकारी मीडिया और दूतावासों ने अमेरिका पर दबाव और पाखंड का आरोप लगाया है.

इसके अलावा चीन दूसरे देशों के साथ अपना एक अलग अलायंस बनाने की भी कोशिश कर रहा है. एक तकऱ जब जी-7 की शुरुआत हुई, दूसरी तरफ़ सेट्रल एशिया के देशों की की बैठकें की शुरुआत हुई.

ये अभी तक नहीं पता कि जी-7 का प्लान काम करेगा या नहीं. लेकिन जो देश चीन के बढ़ते दबाव को रोकने के पक्ष में हैं, उम्मीद की जा रही है कि वो इसका स्वागत करेंगे.

इंडो पैसिफ़िक और चीन मामलों के जानकार एंड्र्यू स्मॉल ने जी-7 के बयान की तारीफ़ करते हुए कहा कि ये “सच में एकजुटटा का संकेत दे रहे हैं”

जर्मनी के थिंक टैंक मार्शल फंड के सीनियर फ़ेलो डॉ. स्मॉल कहते हैं, “ये अभी भी एक व्यापक बहस है कि ‘डी-रिस्किंग’ का सही मतलब क्या है और टेक्नॉलॉजी के निर्यात पर प्रतिबंध कितने दूर तक जाएंगे और आर्थिक दबाव से निपटने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाएंगे.”

“लेकिन अब एक साफ़ और स्पष्ट लकीर है कि उन्नत औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के बीच चीन के साथ आर्थिक संबंधों को कैसे फिर से संतुलित करने की आवश्यकता है.”