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अलाउद्दीन ख़िलजी का टैक्स सिस्टम हिंदुस्तान का सबसे अच्छा टैक्स सिस्टम था जो अंग्रेजों के आने तक चला!

Imtiyaz Ahmed Siddiqui
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सुल्तान जलालुद्दीन ख़िलजी के क़त्ल के कुछ ही महीनों बाद अलाउद्दीन दिल्ली के सुल्तान बने। सुल्तान बनने से पहले अलाउद्दीन कौशांबी के आस-पास के इलाकों के सूबेदार हुआ करते थे यहीं से पूरे अवध का संचालन होता था।

सुल्तान बनते ही अलाउद्दीन ने दिल्ली का रुख किया तब दिल्ली में महरौली का इलाका ही दिल्ली का मुख्य शहर हुआ करता था


सुल्तान बनते ही अलाउद्दीन खिलजी ने सबसे पहले टैक्स सिस्टम को सुधारा उन्होंने सिस्टम से बिचौलियों को हटाकर सीधे आम आदमी से जोड़ा बिचौलियों के हटने किसानों और गरीबो को बहुत फायदा हुआ। इस टैक्स सिस्टम को शेर शाह सूरी से लेकर मुग़लों तक ने इस्तेमाल किया।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की किताब “The Cambridge Economic History of India” में इस बात का ज़िक़्र है, की ख़िलजी का टैक्स सिस्टम हिंदुस्तान का सबसे अच्छा टैक्स सिस्टम था जो अंग्रेजों के आने तक चला।

अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तान बनते ही बड़ी तेजी से अपनी सल्तनत को फैलाया रणथम्भौर, चित्तौड़, मालवा, सिवान, जालोर, देवगिरी, वरंगल, जैसी सारी रियासतें सुल्तान के झोली में आ गिरीं। ख़िलजी ने अपनी जिंदगी की कोई भी जंग नहीं हारी लेकिन एक बीमारी से हार गया और कम उम्र (49 वर्ष) में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी के गुज़र जाने के दसियों बरस बाद भी लोग उनके दौर को ये कह कर हसरत से याद करते रहे की मरहूम सुल्तान के वक़्त में रोटी की इतनी क़ीमत नहीं थी और ज़िन्दगी बसर करना इतना मुश्किल नहीं था।

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दौर में 11 ग्राम चांदी के एक सिक्के के एवज़ में 85 किलो गेंहू मिला करता था। खाने की चीज़ों के ऐसे कम दाम उनकी हुकूमत के ख़त्म होने तक क़ायम रहे। बारिश हो या ना हो, फ़सल अच्छी हो या ख़राब हो जाये, खाने की चीज़ों के दाम रत्ती भर भी नहीं बढ़ते थे।
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