धर्म

अल्लाह ने फ़रमाया, उस ख़ुदा से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे से अपने हक़ मांगते हो

Farooque Rasheed Farooquee
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. अल्लाह ने फ़रमाया
1- उस ख़ुदा से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे से अपने हक़ मांगते हो।
2- डरो उस दिन से जब कोई ज़रा काम न आएगा।
3- ज़मीन पर चल-फिरकर देखो, झुटलाने वालों का क्या अंजाम हुआ।
4- अल्लाह को वह लोग पसन्द हैं जो उसके भरोसे पर काम करते हैं।
5- यह दुनिया की ज़िंदगी कुछ नहीं मगर एक खेल और दिल का बहलावा।
6- ऐ ईमान वालों पूरे-के-पूरे इस्लाम में आ जाओ।
7- इज़्ज़त सारी अल्लाह के अख़्तियार में है।
8- आंखें खोलकर देखो फ़साद करने वालों का क्या अंजाम हुआ।
9- यक़ीनन नमाज़ बेहूदा और बुरे कामों से रोकती है।
10- अल्लाह के पास बस शिर्क की बख़्शिश नहीं है।
11- उस ख़ुदा पर भरोसा रखो जो ज़िंदा है और कभी मरने वाला नहीं है।
12- अल्लाह के नज़दीक दीन सिर्फ़ इस्लाम है।
13- जिसे अल्लाह बख़्शने का इरादा करता है उसका सीना इस्लाम के लिए खोल देता है।
14- क्या इंसान को यह बात याद न रही के हम उसे पहले पैदा कर चुके हैं जबकि वह कुछ भी न था।
15- हम ही ज़मीन के वारिस होंगे, और उन सभी लोगों के भी जो ज़मीन पर बसे हुए हैं।
16- उस दिन की रुसवाई की मुसीबत से बचो जबकि तुम अल्लाह की तरफ़ वापस होंगे।
17- किसी गिरोह की दुश्मनी तुमको इतना ग़ुस्स न दिला दे कि इंसाफ़ से फिर जाओ।
18- जब बात कहो इंसाफ़ की कहो,चाहे मामला अपने रिश्तेदार ही का क्यों न हो।
19- अगर अल्लाह तुम्हें किसी मुसीबत में डाल दे तो ख़ुद उसके सिवा कोई नहीं जो उस मुसीबत को टाल दे।
20- ज़मीन पर चलने वाला कोई जानदार ऐसा नहीं जिसका रिज़्क़ अल्लाह के ज़िम्मे न हो।
21- रसूल (स०) जो तुम्हें दें उसे मान लो और जिस बात से रोक दें, बाज़ आ जाओ।
22- मुसलमानों सब्र और नमाज़ से मदद लो। यक़ीन करो, अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।
23- जो बात ज़ालिमों को उस वक़्त समझ में आएगी जब अज़ाब उनके सामने आ जाएगा, काश! इस वक़्त (दुनिया में) समझ में आ जाती।
24- और सुबह क़ुरआन का पढ़ना, बेशक सुबह क़ुरआन की तिलावत एक ऐसी तिलावत है जो (ख़ास तौर पर) देखी जाती है।
25- जिसने अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराया, तो उसका हाल ऐसा समझो, जैसे बलंदी से अचानक गिर पड़ा। जो चीज़ इस तरह गिरेगी, उसे या तो कोई उचक लेगा या हवा का झोंका किसी दूर-दराज़ की जगह ले जाकर फेंक देगा।
26- और मां-बाप के साथ भलाई करो। अगर मां-बाप में से कोई एक या दोनों तुम्हारी ज़िन्दगी में बुढ़ापे की उम्र तक पहुंच जाएं तो उनकी किसी बात पर उफ़ तक न करो और न झिड़कने लगो, उनसे बातचीत अदब और इज़्ज़त के साथ करो।
27- आज के दिन मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया, और अपनी नेमत तुम पर पूरी कर दी और तुम्हारे लिए पसंद कर लिया के दीन इस्लाम हो।

पेशकश : फ़ारूक़ रशीद फ़ारुक़ी