विशेष

असली देसी स्वाद के साथ खाईये आलू-गोश्त

सनाउल्लाह खान अहसान

karachi, pakistan
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मटन विंदालू मटन विंदालू
असली देसी स्वाद के साथ आलू का मीट
दोपहर को भूख लगती है और खाने की मेज पर गर्मागर्म चपाती और ककड़ी मूली प्याज के सलाद के साथ लाल तार वाले आलू के मांस का ढेर दिखाई देता है। आलू के मांस को गार्निश करने के लिए कटा हुआ धनिया और हरी मिर्च से सजाकर, इस पूरे संयोजन की स्वादिष्ट सुगंध निश्चित रूप से आपके स्वाद कलियों को “इलाज” करेगी। जब आप नरम आलू का एक टुकड़ा और नरम आलू का एक टुकड़ा ब्रेड रोल में लपेट कर अपने मुंह में डालते हैं, तो इसका स्वाद और महक वही महसूस कर सकता है जो सबसे अच्छे पके हुए आलू को जानता हो।मांस खाओ!
जब मैं बच्चा था तो मैं अपने पापा या दादाजी के साथ रोज़ाना का खाना ख़रीदने बाज़ार जाता था, तो उस दिन घर में अगर आलू और मीट का मेन्यू होता तो पापा सबसे पहले बहुत अच्छा ख़रीदते अच्छी देखभाल के साथ कसाई या हड्डी वाले मांस से हाथ। उसके बाद, वे सब्जी अनुभाग में जाते थे। सब्जी वाले को आलू आदि खरीदने के बाद टोकरी में मांस का पैकेट दिखाई देता और अपनी तरफ से मुफ्त की टोकरी में थोड़ा सा हरा धनिया और कुछ हरी मिर्च डाल देता। उन दिनों यह आम चलन था कि सब्जी वाले आलू और मांस के बदले धनिया और हरी मिर्च मुफ्त में देते थे। आजकल हरा धनिया और हरी मिर्च इतनी महंगी हो गई है कि तोला छटनक खरीदना पड़ता है।
साहब, ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि हमारे सामने मीट डिश बन रही हो और हमने मीट डिश में से एक सब्जी और थोड़ा सा मसाला निकालकर ब्रेड पर नहीं खाया हो. इसका स्वाद, महक और स्वाद ही कुछ और होता था। इसके उलट मैं कई बार अपनी मां से गुजारिश करती थी कि इस बच्चे को ऐसे ही रहने दिया जाए. लेकिन वे उसे भूनते थे और उसमें आलू या लौकी आदि डाल देते थे, पानी मिला देते थे और ढककर पकने देते थे। इसके बाद गाढ़े शोरबे वाली करी बनाई गई। हमारी मां आलू का गोश इतने शानदार तरीके से बनाती थीं कि उनके बाद ऐसा आलू गोश नहीं हुआ।
पाकिस्तान का राष्ट्रीय व्यंजन निहारी है, लेकिन न जाने इसे राष्ट्रीय व्यंजन का दर्जा किसने दिया? क्‍योंकि निहारी पाकिस्‍तान के कुछ ही इलाकों में बनाई और खाई जाती है। वहीं अगर किसी व्यंजन को पाकिस्तान का राष्ट्रीय व्यंजन कहा जा सकता है तो वह आलूगोश्त है जो कश्मीर से लेकर कराची और ग्वादर से लेकर पेशावर तक हर जगह तैयार और खाया जाता है।


आलू गौश्त शायद पाकिस्तान की सबसे आम और लोकप्रिय डिश है जिसे देश के हर हिस्से और वर्ग में पसंद किया जाता है-
मैंने सिंध के पुराने भट्टियरों की तरह आलू गोश्त कभी नहीं खाया – शायद सिंधी भट्टियार आलू गोश्त में सामान्य रेसिपी से ज्यादा प्याज डालते हैं – यह डबल प्याज आलू गोश्त गरम चपाती या नान के साथ आपको चाहिए। अपने सामान्य आहार से अधिक रोटियाँ – याद रखें कि आलू को गरमा गरम रोटियों के साथ परोसा जाता है। यदि आपने सिंध या सरैकी बेल्ट में भोज या शादी की दावत में आलू गोश खाया है, तो इस बात की प्रबल आशा है कि आप इसका स्वाद कभी नहीं भूलेंगे।
वैसे तो आलू का मांस हर घर में बनाया जाता है, लेकिन पारंपरिक आलू के अच्छे और खास स्वाद वाला मांस कम ही चखा जाता है-


“आलू गोश” मीट करी बनाने की सबसे आसान और पसंदीदा डिश है. यह उपमहाद्वीप और पूर्वी देशों में लगभग हर क्षेत्र में लोकप्रिय है। यह भी दम किया हुआ विधि का उपयोग करता है या शोरबा में रखा जाता है। इसे रोटी के साथ भी प्रयोग किया जाता है और उबले हुए सादे चावल (खुश्का) के साथ इसका स्वाद और सुगंध दोगुना हो जाता है।
आलू गोश को उत्तर भारत यानी यूपी क्षेत्र की मातृभूमि घोषित किया गया था जहाँ यह नज़र नियाज़, शादी, जन्मदिन की पार्टियों और तन्नूरी खमीर की रोटी का विशेष भोजन था, साथ ही इस करी का स्वाद भरपूर तरीके से दिखाया गया था। मुगल काल में मीठे चावल के साथ आलू और मांस खाया जाता था और मातंजन के मूल कुर्मा में आलू और मांस का उपयोग किया जाता था। यानी यखनी के रूप में भी और सूखे मेवों से कोरमा बनाकर भी। आलू और मांस को रूस के क्षेत्रों में भी पसंदीदा व्यंजन माना जाता है, और दुनिया के लगभग हर रेस्तरां में आलू और मांस का संयोजन इस बात की गारंटी देता है कि यह व्यंजन पोषक तत्वों से भरपूर है।
भोजन के इतिहास की विशेषज्ञ बिस्मा तर्मज़ी डॉन अखबार में अपने पिता की एक घटना लिखती हैं

“यह साठ के दशक की याद दिलाता है। उस समय, कराची को पूर्व का पेरिस माना जाता था और IBA से स्नातक होने के बाद, मेरे पिता एक दोस्त से मिलने मेट्रोपोल होटल गए। मेनू में ‘मटन विंदालू’ नाम की एक डिश थी, मेरे पिता को लगा कि यह कोई विदेशी डिश है, इसलिए उन्होंने इसे ऑर्डर किया।
लेकिन किचन से उनकी टेबल पर जो चीज आती थी वो थी आलू गोश, तो उस दिन से आलू गोश को हमारे घर में मटन वंडालू कहा जाने लगा.
वेंडालो को आमतौर पर एक उपमहाद्वीपीय करी के रूप में माना जाता है, लेकिन वास्तव में, यह गोवा, भारत में पुर्तगाली व्यंजन ‘वेंडा डे लूज कार्ने’ (वेंडा डी लूज कार्ने) का एक रूपांतर है, जिसमें मांस को सिरके में मिलाया जाता है। , शराब, और अदरक में पकाया जाता है, जबकि विंदालू नाम शायद विन्हा डलहौजी के दूषित रूप का परिणाम है।
सभी जानते हैं कि सन 1500 से पहले दुनिया आलू से अपरिचित थी। जब कोलंबस ने अमेरिका की खोज की, तो पुर्तगाली दुनिया में आलू, टमाटर और तम्बाकू लेकर आए।
पुर्तगाली या डच द्वारा “आलू को उपमहाद्वीप में लाया गया होगा”, 1780 के दशक तक उन्हें दुर्लभ माना जाता था। उस समय ब्रिटेन में भी आलू आम नहीं थे। केवल अमीर किसान, या रसोई के बागवान ही उन्हें अपने बगीचों में उगा सकते थे बड़ा हो जाता,


Sanaullah Khan Ahsan

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آلو گوشت———— مٹن ونڈالو Mutton Vindaloo
اصلی دیسی ذائقے والا آلو گوشت
دوپہر میں شدید بھوک ہو اور آپ کو ڈائننگ ٹیبل پر سُرخ تار دار آلو گوشت کا ڈونگا دھرا نظر آئے جس کے ساتھ گرما گرم چپاتیاں اور کھیرے مولی پیاز کا سلاد ہو۔ آلو گوشت پر گارنششنگ کے لئے کترا ہوا ہرادھنیا اور لمبائ کے رُخ کٹی سبز مرچیں ڈالی گئ ہوں تو اس تمام کمبینیشن کی اشتہا انگیز خوشبو یقینا” آپ کے ذائقے کے غدودوں کو بُری طرح مشتعل کردے گی۔ جب روٹی کے نوالے میں بکرے یا بچھیا کے خوب گلے ہوئے حلوان گوشت کی بوٹی اور نرم آلو کا ٹکڑا لپیٹ کر گاڑھے شوربے میں بھگو کر آپ منہ میں رکھتے ہیں تو اس کا ذائقہ اور مہک وہی لوگ محسوس کرسکتے ہیں جنہوں نے بہترین پکا ہوا آلو گوشت کھایا ہو!
بچپن میں اگر کبھی والد یا دادا کے ساتھ صبح کے وقت روز مرہ کا سودا سلف لینے مارکیٹ جاتا تو اگر اس دن گھر میں آلو گوشت کا مینیو ہوتا تو والد صاحب پہلے تو قصائ سے بہت عمدہ دستی یا پُٹھ کا ھڈی والاگوشت خوب دیکھ بھال کر خریدتے- اس کے بعد سبزی سیکشن کا رخ کرتے۔ آلو وغیرہ خریدنے کے بعد سبزی والا ٹوکری میں گوشت کا پیکٹ دیکھ کر تھوڑا سا ہرا دھنیا اور کچھ سبز مرچیں اپنی طرف سے مفت ٹوکری میں ڈال دیتا۔ اس زمانے میں یہ عام رواج تھا کہ آلو گوشت کے لئے خاص طور پر سبزی فروش ہرادھنیا اور ہری مرچ مفت دیا کرتے تھے۔ آجکل تو ہرا دھنیا اور ہری مرچ اتنے مہنگے ہوگئے ہیں کہ تولہ چھٹانک کے حساب سے خریدنے پڑتے ہیں۔
صاحبو شاید ہی کبھی ایسا ہوا ہو کہ اگر گوشت کی ہنڈیا ہماری موجودگی میں بن رہی ہو اور ہم نے بُھنتے گوشت کی ہنڈیا سے ایک بوٹی اور زرا سا مصالحہ روٹی پر نکلوا کر نہ کھایا ہو۔ اس کی لذت، خوشبو اور ذائقہ ہی کچھ اور ہوا کرتا تھا۔ بلکہ میں تو والدہ سے کئ بار فرمائش کرتا کہ اس بھنے کو بس ایسے ہی رہنے دیجئے۔ لیکن وہ اس کو بھون کر اس میں آلو یا لوکی وغیرہ ڈال کر پانی ڈال کر ڈھک کر پکنے دیتیں۔ اس کے بعد گاڑھے شوربے والا سالن ملتا تھا۔ ہماری والدہ آلو گوشت ایسا کمال بنایا کرتی تھیں کہ ان کے بعد ویسا آلو گوشت نصیب ہی نہیں ہوا۔
پاکستان کی قومی ڈش نہاری ہے لیکن خدا جانے کس نے اس کو قومی ڈش کا درجہ دیا ہے؟ کیونکہ نہاری تو پاکستان کے چند ہی علاقوں میں بنائ اور کھائ جاتی ہے۔ جبکہ اگر کسی ڈش کو پاکستان کی قومی ڈش کہا جاسکتا ہو تو وہ آلوگوشت ہے جو کشمیر سے کراچی تک اور گوادر سے پشاور تک ہر جگہ بنائ اور کھائ جاتی ہے۔
آلو گوشت شاید پاکستان کی سب سے زیادہ عام اور مقبول ڈش ہے جو ملک کے ہر حصے اور طبقے میں پسند کی جاتی ہے-
جیسا آلو گوشت سندھ کے پرانے بھٹیارے بناتے ہیں ویسا آلو گوشت واللہ میں نے کہیں نہیں کھایا- شاید سندھی بھٹیارے آلو گوشت میں پیاز عام ریسپی کے مقابلے میں زیادہ ڈالتے ہیں- گرما گرم چپاتی یا نان کے ساتھ یہ ڈبل پیاز والا آلو گوشت آپ کو اپنی عام خوراک سے ایک دو روٹیاں زیادہ کھانے پر مجبور کردیتا ہے- یہ یاد رکھئے کہ آلو گوشت توے سے اتری گرما گرم روٹیوں کے ساتھ ہی اپنا اصل لطف دکھاتا ہے۔ اگر آپ نے سندھ یا سرائیکی بیلٹ پر کسی ضیافت یا شادی کی دعوت کا آلو گوشت کھایا ہے تو قوی امید ہے کہ آپ اس کا ذائقہ کبھی نہیں بھولیں گے۔
ویسے تو آلو گوشت ہر گھر میں بنتا ہے لیکن عمدہ اور ایک خاص ذائقے والا روایتی آلو گوشت کبھی کبھار ہی چکھنے کو ملتا ہے-
گوشت کا سالن بنانے میں ” آلو گوشت”سب سے آسان اور من پسند کھانا کہلاتا ہے۔ برصغیر اور مشرقی ممالک میں اکثر و بیشتر ہر علاقہ میں مقبول عام ہے۔ اس میں بُھنا ہوا طریقۂ کار بھی استعمال کیا جاتا ہے ورنہ شوربہ رکھا جاتا ہے۔ روٹی کے ساتھ بھی استعمال کیا جاتا ہے اور اُبلے ہوئے سادہ چاولوں (خُشکہ) کے ساتھ بھی اپنی لذّت اور خوشبو کو دوبالا کردیتا ہے۔
آلو گوشت کا وطن شمالی ہند یعنی یوپی کے علاقے قرار پائے جہاں یہ نذر نیاز ، شادی بیاہ ،میلاد مولود کی محفلوں کا خاص کھانا تھا اور اس کے ساتھ تنّوری خمیری روٹی اس سالن کے ذائقہ کو بھرپور طریقہ سے اُجاگر کیا کرتی تھی۔ عہدِ مغلیہ میں آلو گوشت کو میٹھے چاولوں تک کے ساتھ کھایا گیا ہے اور متنجن کے بنیادی قورمے میں آلو اور گوشت کا استعمال کیا گیا۔ یعنی یخنی کے طور پر بھی اور خُشک میووں کے ساتھ قورمہ بنا کر بھی۔ روس کے علاقوں میں بھی آلو گوشت پسندیدہ ڈش مانی جاتی ہے اور دُنیا کے تقریباً ہر ریستوران میں آلو اور گوشت کا ایک ساتھ استعمال اس کھانے کی غذائیت سے بھرپور ہونے کی ضمانت دیتا ہے۔
ڈان اخبار میں کھانوں کی تاریخ کی ماہر بسمہ ترمزی اپنے والد کا ایک واقعہ لکھتی ہیں کہ
“یہ ساٹھ کی دہائی کا ذکر ہے۔ اس وقت کراچی کو مشرق کا پیرس سمجھا جاتا تھا اور آئی بی اے سے تازہ تازہ گریجویشن کرنے کے بعد میرے والد ایک دوست سے ملنے کے لیے میٹروپول ہوٹل گئے۔ وہاں مینیو میں ایک پکوان کا نام ‘مٹن ونڈالو’ درج تھا، میرے والد کا خیال تھا کہ یہ کوئی غیرملکی ڈش ہے، چنانچہ انہوں نے اس کا آرڈر دے دیا۔
‏‎مگر کچن سے جو چیز ان کی میز پر آئی وہ آلو گوشت تھا، چنانچہ اس روز سے ہمارے گھر میں آلو گوشت کا نام مٹن ونڈالو پڑگیا۔
‏‎ونڈالو کو عام طور پر برصغیر کا سالن سمجھا جاتا ہے مگر حقیقت تو یہ ہے کہ یہ پرتگالی پکوان ‘کارنے ڈی وینہا ڈالہوز'( Venda de luz carne ) کی انڈیا کے علاقے گوا میں اپنائی گئی شکل ہے, جس میں گوشت کو سرکے، شراب، اور ادرک میں پکایا جاتا تھا، جبکہ اس کا نام ونڈالو یقیناً وینہا ڈالہوز کی بگڑی ہوئی شکل کا نتیجہ ہے۔
یہ تو سب جانتے ہیں کہ سن1500ء سے پہلے دنیا آلو سے ناواقف تھی۔ جب کولمبس نے امریکہ دریافت کیا تب پرتگالیوں نے وہاں سے پوٹیٹو، ٹومیٹو اور ٹوبیکو لا کر دنیا میں متعارف کروایا۔
“برِصغیر میں آلو یقینا” پرتگالی یا ڈچ لوگ ہی لائے ہونگے، 1780 تک انہیں ایک غیر معمولی چیز سمجھا جاتا تھا۔ آلو ان وقتوں میں برطانیہ میں بھی اتنے عام نہیں تھے۔ صرف امیر کسان، یا کچن گارڈننگ کے ماہر اپنے باغات میں یہ اگایا کرتے، لیکن یہ روز مرہ کے کھانوں کا حصہ اب بھی نہیں تھے۔
لارڈ ایمہرسٹ نے بحیثیت گورنر جنرل 1823 میں اپنے ابتدائی کاموں میں سے ایک یہ کیا کہ بیرک پور کے پارک میں آلو اگانے کا حکم دیا۔ بنگالیوں نے اسے بڑے جوش کے ساتھ اپنایا۔ نشاستے سے بھرپور یہ نرم غذا رائ اور زیرے کے بگھار کے ساتھ بڑا دلفریب ذائقہ دیتی، جو بنگالی کھانوں میں عام تھے۔
1860″تک آلو برِصغیر کے روز مرہ کے کھانوں کا ایک لازمی حصہ بن چکے تھے۔بنگال سے آلو پھر ملک میں اندر کی جانب پھیلنا شروع ہوئے۔
انگریز ونڈالو کے ذائقے سے 1797 میں اس وقت آشنا ہوئے جب انہوں نے گوا پر حملہ کیا ۔گوا پر اپنے سترہ سالہ قبضے کے دوران برطانویوں نے وہاں کے کھانے کے ذائقے کو دریافت کیا اور جب برطانیہ 1813 میں وہاں سے نکلا تو وہاں کے باورچیوں کو بھی اپنے ساتھ لے گیا۔ جب یہ ونڈالو انڈیا پہنچا تو یہاں کے باورچیوں نے اس میں مزید لہسن ادرک پیاز دار چینی لونگ کالی مرچ بڑی الائچی اور سرخ مرچ کا اضافہ کردیا۔ آلو گوشت کا اصل ذائقہ اور رنگ تو دراصل سرخ مرچ کا مرہون منت ہے۔
لکھنو میں بھی بہت مرغوب پکوان ہے، اسے تلے آلو کا سالن کہتے ہیں کیونکہ یہاں آلو گوشت میں ڈالنے سے پہلے ان کو فرائ کیا جاتا ہے۔ لکھنؤ میں شادی بیاہ سے پہلے کی گھریلو تقریبات جیسے کہ مایوں مہندی وغیرہ کے موقع پر بنتا تھا ، اب عام سی بات ہوگئ ہے۔ دھلی والوں کا آلو گوشت بھی مرچوں سے لال اور روغنی ہوتا ہے۔ لیکن جو ذائقہ آلو گوشت کا پنجاب اور سندھ کے دیہات میں غمی خوشی کے موقع پر خاندانی نائ دیگ میں بناتے ہیں ویسا کوئ نہیں بنا سکتا۔
آلو گوشت ہر امیر اور غریب کے دسترخوان پر مل جاتا ہے- آرمی کے میس میں بھی آلو گوشت ایک لازمی ڈش ہے۔ بڑی بڑی ضیافتوں میں بھی ہم نے انواع و اقسام کی ڈشز کے ساتھ آلو گوشت کا ڈونگا دھرا دیکھا ہے۔
آلو گوشت کے سلسلے میں جنرل ضیاالحق کا ایک واقعہ بڑا دلچسپ ہے-
‏‎جنرل ضیاء کا ڈنر اگر گھر پر ہوتا تو وہ آلو گوشت ضرور پکواتے ۔ جنرل ایک مرتبہ چین کے دورے پر تھے ۔ 3دن چینی کھانے کھا کھاکر تنگ آئ ہوئی بیگم شفیقہ ضیاء نے جب جنرل صاحب کو خوب سنائیں تو اُسی وقت آرمی ہاؤس راولپنڈی کال ہوئی،آلو گوشت کا آرڈر دیا گیا اور جب اگلی شام چین جانے والی پی آئی اے کی فلائٹ سے آلو گوشت کا دیگچہ اور تندور کی روٹیاں بیجنگ پہنچیں تو بقول اے ڈی سی (جو جنرل صاحب کے ساتھ تھے ) وہ ڈنر اتنا مزیدار لگا کہ آج بھی یاد آنے پر اس کا ذائقہ تازہ ہوجاتا ہے۔
کرامت اللہ غوری صاحب نے اپنی کتابوں “بار شناسائ ” اور ” روزگار سفیر “
میں میاں نواز شریف کا ذکر کیا ہے۔ لکھتے ہیں کہ،
“جب وزیراعظم صاحب قید میں تھے تو دروغ برگردن راوی ایک پولیس آفیسر تین قسم کا آلو گوشت ان کے گھر سے آتا تھا۔ تینوں بہت ہی کلاس کے پکے ہوتے۔ تھوڑا تھوڑا میاں صاحب کی خدمت میں پیش ہوتا وہ جو کھانا چاہتے وہ ان کو بھجوا دیا جاتا اور باقی دو جیل کے اعلی افسروں نے باری لگائی ہوتی کہ آج اس نے گھر لے کر جانا ہے اور آج میں نے۔ برروایت تینوں کا ذائقہ لاجواب ہوتا۔
اشفاق احمد ایک دوست کے متعلق لکھتے ہیں کہ انہوں نے گھریلو باورچی کےلیے انٹرویو کیا تو اک بندہ ہر ڈش کے جواب کے بعد یہ ضرور کہتا کہ وہ اس کے علاوہ آلو گوشت بڑا لذیذ پکاتا۔ وہ چائینیز اور دیگر نئی نئی گوشت کی ڈشز کا پوچھتے۔ یہ ساتھ پھر آلو گوشت کی پخ لگاتا۔ انہوں نے جھنجھلا کے کہا کہ ہم جو پوچھتے ۔ جواب میں یہ بتانا لازمی ہے کیا ۔۔۔
تو باورچی ہاتھ باندھ کے بولا ۔ گستاخی معاف ، اصل سالن تو آلو گوشت ہے۔ باقی سب آپ بڑے لوگوں کی حرامزدگیاں ہیں۔
گو کہ آلو گوشت ہر گھر میں بنتا ہے لیکن ایک خاص روایتی ذائقے والا آلو گوشت بہت ہی کم چکھنے کو نصیب ہوتا ہے۔
آج ہم آپ کو روایتی دیسی آلو گوشت بنانے کی ترکیب بتاتے ہیں-
‏‎اجزا :
‏‎1) بکرے یا بچھیا کا ہڈی والا گوشت 1 کلو (ترجیح ران کے گوشت کو دیں جو چھوٹے ٹکڑوں میں کٹا ہوا ہو)، (2)چار درمیانے سائز کے آدھے کٹے ہوئے آلو
‏‎3) دو عدد بڑے سائز کی پیاز، (4) تین عدد درمیانے سائز کے ٹماٹر، (5) تیل حسبِ ذائقہ, (6) دو سے تین کھانے کےچمچ پسی تازہ ادرک، (7) دو سے تین کھانے کے چمچ پسا تازہ لہسن، (😎 حسب ذائقہ نمک، (9) تین سے پانچ عدد آدھی کٹی ہوئی سبز مرچیں, (10) چھوٹی سرخ ڈوڈا مرچ کی چٹنی ایک چمچ، (11) ڈیڑھ چائے کا چمچ سرخ مرچیں, (12) آدھا چمچ ہلدی، (13) دو چائے کا چمچ دھنیا پاﺅڈر، (14) ایک چائے کا چمچ پسا زیرہ, (15) آدھا چائے کا چمچ پسا گرم مصالحہ، (16) دس سے بارہ سیاہ مرچ، (17) چھ عدد لونگیں، (18) ایک دار چینی کی اسٹک، (19) ایک سیاہ الائچی، چار سے چھ کپ گرم پانی، (20) ہرادھنیا اور سبز مرچوں کو کاٹ لیں۔
‏‎طریقہ کار:
‏‎ایک بھاری پیندے کے برتن میں ایک کپ پانی میں گوشت، کٹی ہوئی پیاز، ٹماٹر اور ادرک لہسن کا پیسٹ ڈال کر دس سے پندرہ منٹ تک درمیانی سے تیز آنچ پراس وقت تک پکائیں جب تک گوشت سے پانی نہ نکل جائے۔ ( یہاں ایک اہم بات نوٹ کیجئے کہ ابتدا میں گوشت، ٹماٹر، پیاز، ادرک لہسن بغیر گھی تیل کے پندرہ منٹ تک درمیانی آنچ پر چھوڑ دینا ہے ۔ وقتا” فوقتا” چلاتے رہیں تاکہ لگ نہ جائے۔ یہیں سے دیسی اسٹائل آلوگوشت کا فلیور بنے گا۔ بس یہی دیسی اسٹائل آلو گوشت کے اصل ذائقے کی ریسپی کا سیکریٹ ہے) ہم کو نہ تو اس میں براؤن پیاز کرکے شامل کرنی ہے کہ ہم قورمہ نہیں بنارہے اور نہ دہی اور ثابت گرم مصالحوں کی بھرمار کرنی ہے۔
‏‎اب اس میں پاﺅڈر مصالحے اور نمک شامل کریں اور مزید چند منٹ تک پکائیں۔ تیل، اور دیگر مصالحے بھی ڈال لیں۔
‏‎پھر اسے قدرے تیز آنچ پر اس وقت تک مستقل چلاتے ہوئے بھونیں، جب تک یہ سرخ رنگت اختیار نہ کرجائے اور تیل گوشت سے الگ نہ ہوجائے۔ پھر اس میں ابلا ہوا پانی شامل کریں (پانی کی مقدار کا دھیان رکھیں) اور پھر اسے ڈھک کر دھیمی آنچ پر یا کوکر میں تب تک پکائیں جب تک کہ گوشت گل نہ جائے۔
‏‎اب آلو شامل کریں اور اس وقت تک پکائیں جب تک آلو گل جائیں اور تیل سطح پر نہ آجائے۔
اب اسے ہری مرچ اور ہرا دھنیا سے سجائیں اور پھر گرما گرم چپاتی، نان، یا ابلے ہوئے چاولوں کے ساتھ پیش کریں۔ آلو گوشت پر پسا ہوا گرم مصالحہ چٹکی بھر چھڑک کا کھایا جائے تو اچھا لگتا ہے۔
نوٹ: اگر آپ اصلی روایتی دیسی آلو گوشت کے صحیح ذائقے کا لطف اٹھانا چاہتے ہیں تو آلو گوشت ہمیشہ شوربے والا بنانا چاہئے- اس میں کبھی بھی دہی یا تلی ہوئ پیاز شامل نہ کریں۔ اور نہ ہی سارے ثابت گرم مصالحوں کی بھرمار کرنی ہے۔ باقی آپ کے اپنے ذوق اور ذائقے پر منحصر ہے کہ آپ تیز مرچ مصالحے والا قدرے بھنا ہوا یا فرائ پیاز کے پیسٹ اور دہی میں بھون کر بنانا چاہیں۔
آلو گوشت کی ایک سب سے خاص بات آپ کو بتاؤں؟ وہ یہ کہ رات کا بچا آلوگوشت کا سالن صبح ناشتے میں کرارے ورقی پراٹھے کے ساتھ کیا کہنے!
(اس مضمون میں ڈان اخبار کی لکھاری بسمہ ترمزی کے کچھ مندرجات ،اس کے علاوہ urdunic.com سے بھی ایک اقتباس لیا گیا ہے-)
تحریر✍🏻:
#ثنااللہ_خان_احسن