विशेष

आँसुओं की पीर…..अफ़सोस के दो शब्द तक नहीं…..मणिपुर, हरियाणा….4 लाशें.,,,और…..

Deepak Sharma
@DeepakSEditor
मुसाफिर टिकट खरीद कर सफर करते हैं। इस सफर में वे रेलवे के मेहमान होते हैं।
कल 3 बेकसूर मुसाफिरों की बिना कारण जयपुर-मुम्बई ट्रेन में हत्या कर दी गई।
24 घंटे बीत गये, मेजबान रेल मंत्री ने अफसोस के दो शब्द नहीं कहे।

ऐसे पत्थर दिल मंत्री पहले नहीं थे।

डॉ अमरेन्द्र वर्मा
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मुंशी प्रेमचंद को समर्पित
*****पुस्तक*****
कुमार कवित्त से
प्रेमचन्द गीत
है प्रेम चन्द को मरना क्या
जब कलम चुनी तो डरना क्या
खद्दर की टोपी पर लिखना
तो लिखना फ़टी लँगोटी पर
मेहनत के छालों पर लिखना
तो लिखना सूखी रोटी पर
वीरों की कुछ गाथा लिखना
तो लिखना हिमगिरि चोटी पर
जब देश प्रेम पे हो लिखना
तो लिखना घास की रोटी पर
पक्की सड़को पे जब लिखना
तो लिख देना पगडण्डी पर
हल्दी घाटी पर भी लिखना
कुछ लिख देना रणचण्डी पर
जब लाल किले पे तुम लिखना
तो लिख देना खलिहानों पर
चौखट की ढिबरी पर लिखना
तो लिखना रोशनदानों पर
नेता के भाषण से पहले
लिखना सीखो चौपालों पर
जब बाटा टाटा को लिखना
तो लिखना बे घर वालों पर
दीवारों के टायल लिखना
तो कुछ लिखना खपरैलों पर
अब भी तो बिकते ही होंगे
उन चिमटों वाले मेलों पर
तुम दिनकर को मन में रखना
तुम लिखना कोरे नारों पर
निर्धन के रोते छप्पर पर
लिखना तिरछी दीवारों पर
तुम दिन को रात भले लिखना
बरगद को आम नहीं लिखना
अखबार बने हैं बिकने को
तुम टकासेर में मत बिकना
आँखों के आँसू पर लिखना
कुछ लिखना खेत किसानों पे
कुछ मंहगी शिक्षा पे लिखना
कुछ रोग निगलती जानोंपे
समय कह रहा है लिख डालो
कुछ बहरी सरकारों पर
ध्यान नहीं हैं जो दे पाती
यदि देश द्रोह गद्दारों पर
तुम गौशाला पर लिख देना
जब लिखना हीरा मोती पर
आजादी के नायक लिखना
तो लिखना आधी धोती पर
है प्रेम चंद को मरना क्या
जो कलम चुनी तो डरना क्या
जड़ से पेड़ काटना छोड़ो
जड़ से नष्ट करो व्यभिचार
आओ इस पे कलम चलाना
हम सब कवि गण करें विचार
एक कलम कितना लिख देगी
कलमों की बारात चले
भ्रष्टाचार मिटाने खातिर
प्रेम चन्द के साथ चले
है प्रेम चंद को मरना क्या
जब कलम चुनी तो डरना क्या
मुंशी प्रेमचंद की जय हो
शत शत नमन

Aftab Padhan Dingarpuri
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मणिपुर में कानून-व्यवस्था और सरकार जैसी कोई चीज नहीं बची है। 150 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। 60,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हैं। 10,000 से ज्यादा बच्चे राहत कैंप में रहने को मजबूर हैं। महिलाओं के साथ जिस तरह की हिंसा हो रही है, वह सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए। लगभग तीन महीने से मणिपुर जल रहा है। लोगों के सिर छत छिन गई। आम लोगों को खाना और दवाइयां नहीं मिल रही हैं, बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है लेकिन प्रधानमंत्री समेत पूरी केंद्र सरकार मौन है।
देश की सुरक्षा केंद्र सरकार की सबसे पहली जिम्मेदारी है, लेकिन भाजपा सरकार यह जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम रही है। केंद्र सरकार के इस संवेदनहीन रवैये को देखते हुए श्री राहुल गांधी जी ने मणिपुर का दौरा किया और लोगों से शांति की अपील की। उन्होंने प्रधानमंत्री का ध्यान खींचने की कोशिश की, लेकिन फिर भी वे मौन रहे। जिस दिन से संसद चल रही है, उसी दिन से पूरा विपक्ष मांग कर रहा है कि प्रधानमंत्री मणिपुर पर बात करें लेकिन न वे संसद में आ रहे हैं और न सरकार संसद चलने दे रही है।
एक तरफ मणिपुर के लाखों लोगों की जिंदगी पर संकट है तो दूसरी तरफ एक बॉर्डर स्टेट के साथ ऐसा खिलवाड़ हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट है। INDIA गठबंधन के 25 सांसदों ने मणिपुर का दौरा किया और आज संसद में वहां के हालात के बारे में जानकारी दी।
प्रधानमंत्री जी, भागिए मत। अपनी जिम्मेदारी कबूल कीजिए। संसद में आइए, देश के सामने सच रखिए और मणिपुर में शांति बहाली के लिए प्रयास कीजिए।


Hitendra Pithadiya 🇮🇳
@HitenPithadiya
यह है गुजरात मॉडल की सच्चाई.!!
मोदी राज में असामाजिक तत्वों को तथाकथित गौरक्षक बनकर गुंडागर्दी करने का मानो लाइसेंस मिल गया है। आखिरकार जोरजबरदस्ती जय श्रीराम बुलवाकर यह क्या साबित करना चाहते हैं?
यह घटना गुजरात की है; लगता है भाजपा सरकार का आदेश है कि इस प्रकार की घटनाएं मीडिया में न दिखें जिससे गुजरात सरकार और पुलिस की असली छवि लोगों को दिखें नहीं। भाजपा राज में बहुजनों और अल्पसंख्यक समाज के लोगों को न्याय की उम्मीद रखना बेकार है।

नंदन पंडित
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आँसुओं की पीर
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जल रही हैं, बुझ रही हैं, झालरें अँगनाई में
गुम रही है इक उदासी, गूँजती शहनाई में
छोड़ करके इक सिला को
पाँव सारे डोलते हैं
लीप कर मुख पर प्रसाधन
सौन्दर्य सब तोलते हैं
मग्न हैं सब, कौन बाँचे
आँसुओं की पीर को
कौन जाने लुट रहा क्या माँग की अरुणाई में
मंत्र के हर बोल के सँग
टूटता इक ताग है
छूटते माता-पिता हैं
छूटता घर,बाग है
फिसलती ही जा रही है
मुट्ठियों में बंद हर पल
रेत जैसी देहरी, रात की तरुणाई में
वह उतर पाई भी न थी
माँ की अब तक गोद से
दे रहे औरों के कर में
बाप कितने मोद से
भीड़ भारी, पर अकेली
खण्डहर वह ढह रही
पतझड़ों में पात सी, उस आस्य की लोनाई में
हर्ष है, उल्लास है
उत्साह चहुँ भरपूर है
आदमी अपने रस्मों से
किस कदर मजबूर है
है वही आँगन, दुआरा
हैं वहीं सब लोग निज
एक भी ना काम आते, किन्तु इस कठिनाई में
“अँखुआ” से

Shyam Meera Singh
@ShyamMeeraSingh
2014 के बाद से ट्रेंड चला है। पहले शौभायात्राओं को निकालने की चेतावनी दो। हथियार और तलवारें साथ लेकर चलो। दूसरे मोहल्लों में जाकर उत्तेजित गाने चलाओ। जब माहौल दंगे में बदल जाए तो कहो कि देखो हमें पीट रहे हैं। एक युवा नेता बनता है। एक विधायक। एक सांसद। झंडा ढोने वाला मारा जाता है।

Sanjay sharma
@Editor__Sanjay
एक शख़्स है. नाम है मोनू मानेसर. कुछ अल्पसंख्यक लोगों की हत्या का आरोपी है . हरियाणा सरकार इस शख़्स के आगे नतमस्तक है. फ़रवरी से फ़रार है पर जमकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है . आज इस शख़्स के कारण हरियाणा जल गया. कुछ दिनों बाद यह हत्यारा विधानसभा में दिखेगा . छह सात महीने रह गये है चुनाव को . चुनाव जीतने के लिये ज़रूरी है हिंदू मुसलमान करना . बताईये अपने देश को वरना यह हत्यारी मानसिकता देश को तबाह कर देगी .

Mallikarjun Kharge
@kharge
इक्कीसवीं सदी के भारत में धर्म के नाम पर फैलाई जा रही हिंसा हमारी सर्वधर्म समभाव – सभ्यता की नींव पर कुठाराघात है। इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

हरियाणा के कुछ हिस्सों में जो चल रहा है या फिर जो RPF कांस्टेबल ने किया वो भारत माता के सीने पर गहरे ज़ख़्म देने जैसा है।

आए दिन, हम जो समाज के ताने-बाने में बिखराव की प्रवृत्ति देख रहे हैं वो सत्ता के लोभ में समाज में नफ़रत फैलाने का परिणाम है।

जनता में द्वेष का विष घोलना और उन्हें आपस में लड़वाना हमारे संविधान का मज़ाक़ उड़ाने जैसा है।

ऐसी घटनाएँ लचर होती क़ानून व्यवस्था और हमारी कमज़ोर होती संवैधानिक संस्थाओं पर गंभीर प्रश्न खड़े करती हैं।

अगर हमने आज एकजुट होकर इन विभाजनकारी तत्वों के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई तो इसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को सहने पड़ेंगे।

कांग्रेस पार्टी सभी से शांति बनाए रखने की अपील करती है और दोषियों को सख़्त से सख़्त सज़ा दिए जाने की माँग करती है।

नफ़रत छोड़ो, भारत जोड़ो !

डिस्क्लेमर : ट्वीट्स में व्यक्त विचार लोगों के अपने निजी विचार और जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है