दुनिया

आख़िर नेतनयाहू के निकल आए आंसू : रिपोर्ट

इस बात को दुनिया जानती है कि आज अगर पश्चिमी एशिया में इस्राईल नाम का कोई अवैध शासन है तो उसके लिए पूरी तरह अमेरिका और ब्रिटेन ही ज़िम्मेदार हैं। वहीं इस ग़ैर-क़ानूनी शासन का अगर कोई सबसे बड़ा विरोधी है तो वह ईरान है। इस्लामी गणराज्य ईरान ने हमेशा फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का समर्थन किया है और फ़िलिस्तीन की जनता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हमेशा हर स्थिति में खड़ा रहा है।

हालिया दिनों में इस्लामी गणराज्य ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच कुछ मुद्दों को लेकर समझौता हुआ था। वहीं इस्राईल ने क़तर की मध्यस्थता में हुए ईरान-अमेरिका समझौते को बदनाम करने की जल्दी की थी। इस समझौते में दोनों पक्षों के बीच क़ैदियों की अदला-बदली, 10 अरब डॉलर की ईरानी संपत्ति की रिहाई और देश की परमाणु सुविधाओं में यूरेनियम संवर्धन गतिविधियों को रोकने के लिए तेहरान की प्रतिबद्धता शामिल थी। इस्राईली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस समझौते को क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला बताते हुए यह दावा किया कि ईरान अपनी मुक्त संपत्तियों का उपयोग अपने सहयोगी समूहों की गतिविधियों को गति देने के लिए करेगा। इस समझौते पर नेतन्याहू का हमला ईरान के परमाणु कार्यक्रम का सामना करने की उनकी रणनीति की विफलता और बाइडन प्रशासन की स्थिति को प्रभावित करने में उनकी असमर्थता के प्रति उनकी हताशा को दर्शाता है। साथ ही क्षेत्र और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ईरान की नीतियों की लगातार होती सराहना से न केवल ज़ायोनी प्रधानमंत्री हैरान और परेशान हैं बल्कि तेहरान की बढ़ती ताक़त से नेतन्याहू की आंखों से आंसू तक निकल आए हैं। सूत्रों के हवाले से सामने आई रिपोर्टों में यह बताया गया है कि एक अमेरिकी अधिकारी से नेतन्याहू ने ईरान और अमेरिका के बीच हुए समझौते को लेकर इतनी नाराज़गी जताई कि उनकी आंखों से उनका दर्द झलक आया।

यह समझौता न केवल तेल अवीव और वाशिंगटन के बीच बढ़ती दूरी को दर्शाता है। बल्कि अमेरिका के उन दावों की भी पोल खोलता है कि जिसमें वह तेहरान के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों को तेज़ करने और सैन्य विकल्प का उपयोग करने की धमकी देता है। साथ ही वॉशिंग्टन तेहरान के साथ इस तरह का समझौता करके दुनिया को यह संदेश भी दे रहा है कि ईरान विश्व की एक बढ़ती हुई ताक़त है जो परमाणु टेक्नॉलोजी से संपन्न है। हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ईरान ने संवर्धन रोकने की प्रतिबद्धता जताई है, लेकिन दूसरी ओर, यह समझौता इस देश को अपना 20 फ़ीसद और 60 प्रतिशत समृद्ध यूरेनियम रखने की अनुमति देता है। वहीं ईरान और अमेरिका के बीच क़ैदियों की अदला-बदली को लेकर हुए समझौते को इस्राईली अधिकारी एक ऐसी शुरुआत मान रहे हैं कि जो तेहरान और वॉशिंग्टन के बीच एक व्यापक परमाणु समझौते के मार्ग को प्रशस्त करेगा। तेलअवीव का मानना है कि अगर अगला चुनाव बाइडन जीत जाते हैं तो फिर ईरान और अमेरिका के बीच व्यापक समझौते को होने से कोई नहीं रोक सकता है।

पूरे मामले को और अधिक जटिल बनाने वाली बात यह है कि यह निर्णायक रूप से सिद्ध हो चुका है कि नेतन्याहू के इशारे पर इस्राईल के कुख्यात ख़ुफ़िया एजेंसी मूसाद ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के ख़िलाफ़ जो युद्ध छेड़ रखा है, उसमें ईरान की परमाणु सुविधाओं पर बमबारी करना, ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों को ख़त्म करना और साइबर हमले करना शामिल है। उसने न केवल ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को पहले से और अधिक मज़बूत किए हैं बल्कि यह भी दर्शा दिया है कि इस्राईल अपनी पूरी ताक़त झोंकने के बाद भी ईरान के हितों को नुक़सान पहुंचाने में बुरी तरह नाकाम हो चुका है। यही कारण है कि अब उसके आकाओं ने भी उसकी ओर से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। साथ ही बाइडन प्रशासन के लिए, यह स्पष्ट हो गया है कि ईरान की परमाणु सुविधाओं पर सैन्य हमले के संबंध में इस्राईल की धमकियां केवल धमकियां ही हैं क्योंकि तेलअवीव के पास जब हिज़बुल्लाह से टकराने की हिम्मत नहीं है तो ईरान से तो बहुत दूर की बात है।

कुल मिलाकर इस समय इस्राईल अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है। अब वह दिन दूर नहीं है कि जब पश्चिमी एशिया का यह अवैध शासन पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा। इसके अलावा, न्यायिक सुधार योजना के कारण ज़ायोनी समाज में पैदा हुए मतभेदों के बाद मौजूदा राजनीतिक विभाजन ने इस्राईल की सैन्य शक्ति को पहले से अधिक कमज़ोर किया है। वहीं ऐसी स्थिति में जब नेतन्याहू को यह विश्वास हो चुका है कि वह किसी भी हालत में ईरान के साथ सैन्य टकराव की स्थिति में नहीं है तो उन्होंने तेहरान-वॉशिंग्टन समझौते को बदनाम करने की जल्दबाज़ी की, क्योंकि नेतन्याहू जानते हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से निपटने के लिए इस्राईल के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। लेकिन जो कहा गया उसका मतलब यह नहीं है कि नेतन्याहू ईरान-अमेरिका समझौते के संबंध में अपनी स्थिति से पीछे हट जाएंगे, बल्कि वह ट्रम्प या किसी अन्य रिपब्लिकन उम्मीदवार के सत्ता में वापस आने का इंतेज़ार कर रहे हैं। आख़िर में इतना ही कि ईरान-अमेरिका समझौते पर इस्राईल का हमला मूल रूप से इसकी अक्षमता, शक्ति की कमी और अमेरिका-ईरान संबंधों की प्रक्रिया पर इसके सीमित प्रभाव को बयान करता है।