दुनिया

आज़रबाइजानी और आर्मीनियाई सेनाओं के बीच भीषण झड़पों के बाद, आज़रबाइजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीओफ़ की कमांडरों के साथ बैठक!

आज़रबाइजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीओफ़ ने देश के सेना कमांडरों के साथ एक अहम बैठक की है।

यह बैठक सीमा पर आज़रबाइजानी और आर्मीनियाई सेनाओं के बीच भीषण झड़पों के बाद हो रही है। झड़पों में दोनों तरफ़ से कई लोग मारे गए हैं।

इलहाम अलीओफ़ ने इस बैठक में कहा कि सीमा पर आर्मीनियाई सैनिकों की ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों पर अंकुश लगा दिया गया है।

बैठक में इलहाम अलीओफ़ ने सेना के कमांडरों को कुछ निर्देश दिए और सबकी ज़िम्मेदारियों के बारे में बताया। इस बैठक को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ख़ास तौर पर इसलिए कि जिस झड़प के बाद यह बैठक हुई है उसमें दोनों तरफ़ से 99 सैनिक मारे गए हैं। जबकि झड़प 24 घंटे के भीतर रुक गई। 24 घंटे के भीतर इतनी जानें चली जाना गंभीर मसला है। आज़रबाइन के 50 और आर्मीनिया के 49 सैनिक इस झड़प में मार दिए गए। हालांकि आज़रबाइजान ने हालिया समय में अपनी सेना पर बहुत बड़ा बजट ख़र्च किया है यही वजह है कि इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों के मारे जाने को लेकर आज़रबाइजान के भीतर सवाल उठ रहे हैं। कुछ टीकाकार इलहाम अलीओफ़ की क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं।

एक टीकाकार ने फ़ेसबुक पेज पर लिखा कि एक दिन में 50 साहसी सैनिक हमने गवां दिए वो भी तब कि जब बाक़ायदा जंग नहीं हो रही है बल्कि शांति वार्ता चल रही है।

दोनों देशों के रक्षा मंत्रालयों के बयानों में बताया गया है कि सीमा पर कई बिंदुओं पर झड़पें होने लगीं। दोनों ही देश एक दूसरे पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करने का आरोप लगा रहे हैं। झड़पों के बाद 13 सितम्बर को आर्मीनिया की सुरक्षा परिषद ने औपचारिक रूप से मांग की कि वह पारस्परिक दोस्ती के समझौते का पालन करते हुए क़दम उठाए। यानी आर्मीनिया इस जंग में रूस से मदद मांग रहा है। अब तक कई देशों ने इन झड़पों पर प्रतिक्रिया दिखाई है और दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है।

रूसी क्रेमलिन हाउस के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोफ़ ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन तनाव कम करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने दोनों देशों के बीच झड़पों पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि तत्काल कोशिश की जानी चाहिए कि तनाव ख़त्म हो। यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रभारी जोज़ेप बोरेल ने दोनों देशों से कहा कि तनाव से पहले वाली पोज़ीशनों पर लौट जाएं और संघर्ष विराम का सम्मान करें।

वहीं तुर्की ने कहा है कि वह हमेशा आज़रबाइजान का साथ देगा और उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगा।

तुर्की के इस स्टैंड को बहुत से टीकाकार हैरत की नज़र से देख रहे है क्योंकि यह तनाव बढ़ाने का इशारा देता है। अगर तनाव बढ़ता है और टकराव जारी रहता है तो दोनों तरफ़ से इंसानी जानों का नुक़सान यक़ीनी है और यह किसी के भी हित में नहीं है।