इतिहास

आज़ादी की लड़ाई के अमर क़िरदार स्वतंत्रता सेनानी अंसार हरवानी

Ataulla Pathan
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आजादी की लड़ाई के अमर किरदार स्वतंत्रता सेनानी अंसार हरवानी

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अंग्रेजों का एक शब्द ऐसा चुभा कि जमीदार घराने से जुड़ा एक किशोर जंग-ए-आजादी का अमर किरदार बन गया। यह जिक्र है स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अंसार हरवानी का। स्वतंत्रता सेनानी अंसार हरवानी का जज्बा और योगदान उन्हें आजादी के सिपाहियों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर देता है।

अंसार साहेब का जन्म रुदौली के जमीदार खानदान में 16 फरवरी 1916 को हुआ। उनका वास्तविक नाम तो अंसारुल हक था लेकिन प्रसिद्धि उन्हें अंसार हरवानी के नाम से मिली। अंसार बचपन में नैनीताल घूमने गए थे। नैनीताल की झील के किनारे दो रास्ते थे, जिसमें एक गोरों के लिए और दूसरा भारतीयों के लिए। वे गोरों के रास्ते पर चले गए। अंग्रेज युवक ने उन्हें ‘काला हब्शी’ कहकर अपमानित किया। वर्ष 1928 में मात्र 12 साल की उम्र में साइमन कमीशन के विरोध में निकली रैली में उन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया। तमाम नेताओं की गिरफ्तारी हुई लेकिन नाबालिग हरवानी को अंग्रेजों ने घर से 12 मील की दूर फैजाबाद मार्ग पर अकेला छोड़ दिया। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की तो हरवानी को युवा शाखा ‘आल इंडिया यूथ लीग’ का अध्यक्ष बनाया। वे ‘आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन’ के महासचिव भी बने। आजादी के दौर में सबसे आखिरी में जिन सेनानियों को जेलों से रिहा किया गया, उनमें अंसार हरवानी भ एक थे। उन्होंने अपने अनुभवों को अपनी पुस्तक ‘बिफोर फ्रीडम एंड आफ्टर’ में भी व्यक्त किया।
लोकसभा के रहे सदस्य

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-देश के दूसरे आम चुनाव में हरवानी फतेहपुर संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। तीसरे लोकसभा चुनाव में बिसौली से जीत दर्ज की। आजादी का यह सिपाही जीवन के 80 बसंत देखने के बाद दिल्ली में वर्ष 1996 में दुनिया को अलविदा कह गया। समाजसेवी डॉ. निहाल रजा कहते हैं कि रुदौली को उनपर गर्व है। कस्बे के युवा फारुख अहमद कहते हैं कि उनका नाम स्वतंत्रता सेनानी पार्क में लगे स्तूप पर दर्ज है।

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संदर्भ दैनिक जागरण
प्रहलाद तिवारी, रुदौली फैजाबाद
7 आगष्ट 2018

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संकलन – अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर,टूनकी,संग्रामपुर, बुलढाणा, महाराष्ट्र
9423338726