साहित्य

आज मैं निकला कल तक पहुंचने के लिए, फिर….भारद्वाज दिलीप की रचना पढ़िये

भारद्वाज दिलीप
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Jaipur, Rajasthan
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आज मैं निकला
कल तक पहुंचने के लिए
फिर तीन लोगों से मिला
एक ने सुना
एक बोला
एक ने देखा
मैं मिल कर लौट लिया
लौट कर एक पेड़ के पास रुका
उसको मैंने देखा
उसने मुझे देखा और खड़ा ही रहा।
मैं वहां से भी चल दिया
कमरे पर आ गया
दिन गुजर रहा था
कभी मैने गीत सुने
दो बार चाय भी बनाई
एक दोस्त भी आया
हंस बोल कर चला गया
मैंने इंतजार भी किया
शाम आ गई
फिर से बाहर निकला
मकान के बगीचे में जा खड़ा हुआ
फोन निकाला
चार को फोन किए
किसी ने नहीं उठाया
किसी ने वापस फोन किया भी नहीं।
इस बगीचे में चारो तरफ देखने लगा
फिर से इंतजार किया
इस बगीचे के एक पौधे के एक फूल मुरझाया सा।
सुबह जब इस बगीचे से निकला था तब इस पौधे का ‘आज फूल दो बार मुस्कराया था मैं महक उठा था।’
कौन है वो जिस का इंतजार कर रहा था मैं
उसके आने का नही उसके आने के एहसास का सा।
क्या नहीं हुआ कल जो हुआ था परसो
उसकी याद आ गई थी
और उससे बात भी हो गई थी
अब कमरे में आ गया मैं
अब अधेंरा बढ़ रहा है आगे।
मैं उसके इंतजार की बात अपने से ही कर रहा हूॅं ……कल तक में पहुंचने के लिए।
भारद्वाज दिलीप