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आप खुद को सदा के लिए मूर्ख घोषित कर दीजिए और सरकार से कहिए कि हमें बार-बार मूर्ख बनाने में मेहनत मत कीजिये

सेन्गोल के रास्ते नेहरू की एंट्री

Ravish Kumar Official

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ग़ज़ब हो गया है। आसमान से बिजली नहीं गिरी है बस ग़नीमत है। मगर कड़की ऐसी है कि उसकी रौशनी में जवाहर लाल नेहरू चमक गए हैं। सेन्गोल के प्रचार में नेहरू का भी ख़ूब प्रचार हो रहा है इसको लेकर जो रहस्यमयी कथा बताई गई है, इसमें कई झूठ और कई झोल निकल आए हैं। क्या इस तरह की मेहनत इसलिए होती है ताकि जनता को मूर्ख बनाया जाए। तो इसका एक रास्ता है। आप खुद को सदा के लिए मूर्ख घोषित कर दीजिए और सरकार से कहिए कि हमें बार-बार मूर्ख बनाने में मेहनत मत कीजिए, हम मूर्ख हैं और रहेंगे, अब आप अपना ध्यान काम पर दीजिए। हम अपना ध्यान दिमाग़ पर कभी देंगे ही नहीं।

सेन्गोल को लेकर ग़लत बातें, आधी-अधूरी बातें और झूठ का इतना प्रचार हुआ है कि उसे बताने में यह वीडियो लंबा हो गया है। आपसे गुज़ारिश है कि प्लीज़ पूरा देखिए ताकि पता चले कि आपको कैसे धोखे में रखा जाता है।

पीएम ने तमिलनाडु के मठ से सेंगोल किया स्वीकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के अधीनम (मठ) से अपने आवास पर सेंगोल स्वीकार किया.

इस दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी मौजूद थीं.

पीएम मोदी 28 मई को दिल्ली में संसद के नए भवन का उदघाटन करेंगे.

सेंगोल को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया जाएगा.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा था कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 को तमिल पुजारियों के हाथों सेंगोल स्वीकार किया था.

अमित शाह का ये भी कहना है कि नेहरू ने इसे अंग्रेज़ों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया था.

हालांकि, कांग्रेस नेता जयराम रमेश का कहना है सेंगोल को अगस्त, 1947 में नेहरू को उपहार में दिया गया था. लेकिन ऐसा कोई सबूत उपलब्ध नहीं है कि भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के आख़िरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन, पहले भारतीय गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी और नेहरू ने इसे अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के रूप में बताया हो.