विशेष

आप जिस ख़्वाब को देखें उसे शिद्दत से चाहें और पूरा करें,…. यह इंसान था के. आसिफ़!


Hafeez Kidwai
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आजके रोज़ इटावा में पैदा हुआ एक ज़र्रा फ़लक पर आफ़ताब बनकर उभरा । एक ऐसी शख्सियत जिसने इटावा छोड़ा तो मुम्बई का दामन पकड़ा । अपने बहनोई और रिश्ते के मामू की उंगली पकड़ कर बहुत तेज़ भागते शहर की नब्ज़ को पकड़ने की कोशिश की, ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए काम पकड़ा,तो कपड़े सिलना और खुद कहलाया “लेडीज़ टेलर” ।

दिल ऐसा की खुद के सीने में ऐसे धड़के की लगे अभी बाहर आया,मन चंचल इतना कि सलीक़े से सिले कपड़े भी उधड़े उधड़े लगे । इटावा की बेचैनी भला कब मुम्बई में सिलाई मशीन और कैंची पकड़े रह सकती थी । मामू, जो उस वक़्त के बहुत बड़े प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के साथ साथ मे खुद में एक्टर, उनको मनाया की उसकी किस्मत में कपड़े सिलकर तैयार करना नही है,किसी के बदन की नाप लेना नही है, बल्कि वह फिल्में बनाकर अपने ख़्वाब को जीना चाहता है ।

संगीतकार नौशाद के साथ टेलर की दुकान पर बैठकर बतलाता की वह क्या करना चाहता है, सबको लगता यह मुंगेरीलाल के हसीन सपने हैं । एक बात तो थी उसमें,जिस चीज़ पर दिल आया तो उसे लपक कर किसी भी क़ीमत पर ले आया । पैसे उसकी जूतियों में थे और ख़्वाब उसकी मुट्ठी में,वह बढ़ता गया,बढ़ता ही गया,सबने उसे वाक़ई आसमान पर छाते देखा ।

अपने मामू और सगे बहनोई से उसका एक झगड़ा भी था और मोहब्बत भी थी । जब उसके मामू ने उसकी बहन से मुँह फेरकर एक मशहूर अदाकारा सितारा बेगम को अपना लिया,तो उसका दिल खट्टा हो गया । बहन की सूनी आँखे देखता और बहनोई की रंगीन दुनिया । टेलरिंग की दुकान पर उसके लड़कियों के साथ दिलफेंक तमाशे चर्चे पहले ही थे । मामू के साथ निगह पड़ गई सितारा बेग़म पर और एक रोज़ उनके साथ रफूचक्कर हो लिए और मामू रह गए केवल उसके बहनोई,बहन की आंखों में खुशियां लौटी और उसकी ज़िन्दगी में ऐसा सितारा आया कि उसकी चमक फलक पर बिखर गई ।

यह मशहूर इंसान था के. आसिफ़ यानि आसिफ़ करीम, मुगले आज़म का टेलर…एक ऐसी फिल्म बनाई,जिसे पहली बार लोगों ने देख कहा,फ्लॉप रहेगी और वह उसी रात जश्न मनाते हुए अगले ख़्वाब की तरफ बढ़ जाता । उसे खुद पर बेइंतेहा यक़ीन था,उसका यक़ीन ज़मीन पर उतर चुका था, दुनिया की शानदार फिल्मों में से एक मुगले आज़म ने बुलंदियों के झंडे गाड़ दिए ।

हमने के आसिफ से सीखा की आप जिस ख़्वाब को देखें उसे शिद्दत से चाहें और पूरा करें, आपकी लगन से तमाम दरवाज़े खुल जाएँगे । के आसिफ़ ने जिस लगन और खुले हाथों से मुगले आज़म बुनी उसकी मिसाल कम है, इसके सिवा भी तमाम फिल्में उनके हुनर की गवाह हैं ।

वैसे मुगले आज़म किताब में मरहूम राजकुमार केसवानी उनकी शादी के किस्से को बड़े दिलचस्प अंदाज़ में लिख गए हैं । उनका कहना है अपने मामू नज़ीर अहमद खान से शादी करना ही उन्होने बहुत सीखा, सबसे पहले तो मामू की बीवी सितारा को ही अपनाया, फिर दूसरी शादी लाहौर में फिरोज़ा बेग़म से किया उसके बाद निगार सुल्तान से शादी की जिनसे दो बच्चे अकबर और शबाना रहे ।आखिर मे चौथी शादी अपने दोस्त मशहूर एक्टर दिलीप कुमार की बहन अख्तर से कर ली,जिसपर उनमें और दिलीप कुमार मे ज़बर्दस्त ठन गई,खैर दिल से चंचल और इरादों से मज़बूत के आसिफ ने हर रिश्ता निभाया और खास बात उनकी पहली पत्नी सितारा आखरी तक उनके करीब ही रही,भले खटास रही हो ।

हम अगर इस किरदार को देखें,तो लगता है उसकी ज़िन्दगी समंदर के मानिंद है,रोज़ ज्वार और भाटे आते रहते औरउसकी ज़िन्दगी बढ़ती रहती । मुगले आज़म जैसी मशहूर फिल्म बनाकर भी जो गरीब रह गया हो ऐसा फ़क़ीर बॉलीवुड में फिर नही जन्मा । इंडस्ट्री को हज़ार नई चीजों के साथ परफेक्शन और बेपनाह पैसा खर्चा करना उन्होंने सिखाया । उन्होंने बताया प्रतिभा का तोलमोल नही होता । उसका सौदा नही होता बल्कि फनकार जो कह दे,वही उसकी क़ीमत ।

आज के रोज़ देश के इस महान डायरेक्टर ने जन्म लिया था । जो हमारे मुल्क का ऐसा हीरा है, जिसे जितना चाहो देखते रहे,हर बार अलग रँगदिखाई देगा । बॉलीवुड में अपने प्रयोगों से आपसी मोहब्बत और काम की बहुत मज़बूत नींव रखने वाले के. आसिफ को दिल की गहराइयों से हम याद करते हैं, आप भी आज उनपर दो लफ्ज़ कहें ताकि मेहनत,लगन, प्रयोग की यह शानदार शख्सियत मुगले आज़म की तरह हमेशा ज़िन्दा रहे,आने वाली नस्लें जाने की उन्होने दुनिया को बहुत कम उम्र में अलविदा कह देने वाला एक नायाब फ़िल्म डायरेक्टर को अपनी ज़मीन में पैबस्त होते देखा था,लख लख सलाम के. आसिफ साहब…

Tkd Pramod Kumar ·
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बॉलीवुड का सबसे पगला डायरेक्टर जिसने भारत की सबसे बड़ी फिल्म बनाई
बॉलीवुड के इतिहास में ये ऐसा डायरेक्टर था जो अपनी सिर्फ एक फिल्म के लिए जाना जाता है. इस आदमी को फिल्म बनाने की कोई खास ट्रेनिंग नहीं थी. पर अपने वक्त के सबसे बड़े लोगों को अपने हाथ में ले के घूमता था ये शख्स. नाम था के आसिफ. पूरा नाम करीमुद्दीन आसिफ. फिल्म बनाई थी ‘मुग़ल-ए-आज़म’. उत्तर प्रदेश के इटावा में से निकले आसिफ बंबई में अपने नाम का डंका बजा आये. जिद्दी आदमी थे. मंटो इनके बारे में लिखते हैं कि कुछ खास किया तो नहीं था, पर खुद पर भरोसा इतना था कि सामने वाला इंसान घबरा जाता था. बड़े गुलाम अली खान से अपने बतरस से लेकर अपनी फिल्म में बड़े-बड़े गीतकारों से ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के लिए 72 गाने लिखवाने की कहानियां हैं आसिफ की.

9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से आसिफ की मौत हो गई थी. उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में केवल दो फ़िल्में बनाईं ‘फूल'(1945) और ‘मुग़ल-ए-आज़म’ (1960). उनकी पहली फिल्म तो कुछ खास कमाल नहीं कर सकी लेकिन दूसरी फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ ने इतिहास बना दिया. ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को बनाने में 14 साल लगे थे. ये फिल्म उस वक़्त बननी शुरू हुई जब हमारे यहां अंग्रेजों का राज था. शायद ये एक कारण भी हो सकता है जिसके चलते इसको बनाने में इतना वक़्त लगा. ये उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी, इस फिल्म की लागत तक़रीबन 1.5 करोड़ रुपये बताई जाती है. जब फिल्में 5-10 लाख रुपयों में बन जाती थीं. भारतीय सिनेमा के इतिहास में ये फिल्म कई मायनों में मील का पत्थर साबित हुई.
आइए आसिफ और इस फिल्म से जुड़े कुछ किस्से पढ़ते हैं:

#1. इस फिल्म का आइडिया आसिफ को आर्देशिर ईरानी की फिल्म ‘अनारकली’ को देखकर आया था. इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने अपने अपने दोस्त शिराज़ अली हाकिम के साथ एक फिल्म बनाने का फैसला किया. शिराज़ उनकी फिल्म प्रोड्यूस कर रहे थे. फिल्म में चंद्रबाबू, डी.के सप्रू और नरगिस को साइन किया गया. 1946 में फिल्म की शूटिंग बॉम्बे टाकीज स्टूडियो में शुरू हुई. अभी शूटिंग शुरू ही हुई थी कि पार्टीशन की प्रक्रिया शुरू हो गयी जिसके कारण फिल्म के प्रोड्यूसर शिराज़ को हिंदुस्तान छोड़कर जाना पड़ा. 1952 में फिल्म को दोबारा नए सिरे से नए प्रोड्यूसर और कास्टिंग के साथ शुरू किया गया.

#2. इस फिल्म में अकबर के रोल के लिए आसिफ उस वक्त के मशहूर अभिनेता चंद्रमोहन को लेना चाहते थे. पर चंद्रमोहन आसिफ के साथ काम करने के लिए तैयार नहीं थे. आसिफ को उनकी आंखें पसंद थीं. कह दिया था कि मैं दस साल इंतजार करूंगा पर फिल्म तो आपके साथ ही बनाऊंगा. पर कुछ समय बाद एक सड़क हादसे में चंद्रमोहन की आंखें ही चली गईं.

#3. फिल्म के म्यूजिक को लेकर आसिफ बड़े ही गंभीर थे. उन्हें इस फिल्म के लिए बेहद ही उम्दा संगीत की दरकार थी. नोट से भरे ब्रीफ़केस को लेकर आसिफ मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद के पास पहुंचे और ब्रीफ़केस थमाते हुए कहा कि उन्हें अपनी फिल्म के लिए यादगार संगीत चाहिए, ये बात नौशाद साहब को बिलकुल नहीं भाई. उन्होंने नोटों से भरा ब्रीफ़केस खिड़की से बाहर फ़ेंक दिया और कहा कि म्यूजिक की क्वालिटी पैसे से नहीं आती. बाद में आसिफ ने नौशाद से माफी मांग ली. वो अंदाज भी ऐसा था कि नौशाद हंस के मान गए.

#4. नौशाद फिल्म के लिए बड़े गुलाम अली साहब की आवाज़ चाहते थे, लेकिन गुलाम अली साहब ने ये कहकर मना कर दिया कि वो फिल्मों के लिए नहीं गाते. लेकिन आसिफ ज़िद पर अड़ गए कि गाना तो उनकी ही आवाज में रिकॉर्ड होगा. उनको मना करने के लिए गुलाम साहब ने कह दिया कि वो एक गाने के 25000 रुपये लेंगे. उस दौर में लता मंगेशकर और रफ़ी जैसे गायकों को एक गाने के लिए 300 से 400 रुपये मिलते थे. आसिफ साहब ने उन्हें कहा कि गुलाम साहब आप बेशकीमती हैं ,ये लीजिये 10000 रुपये एडवांस. अब गुलाम अली साहब के पास कोई बहाना नहीं था. उनका गाना फिल्म में सलीम और अनारकली के बीच हो रहे प्रणय सीन के बैकग्राउंड में बजता है.

#5. फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज कपूर को रेत पर नंगे पांव चलना था. उस सीन की शूटिंग राजस्थान में हो रही थी जहां की रेत तप रही थी. उस सीन को करने में पृथ्वीराज कपूर के पांव पर छाले पड़ गए थे. जब ये बात आसिफ को पता चली तो उन्होंने भी अपने जूते उतार दिए और नंगे पांव गर्म रेत पर कैमरे के पीछे चलने लगे. अब कोई कुछ नहीं कह पाया था.

#6. सोहराब मोदी की ‘झांसी की रानी’ (1953) भारतीय सिनेमा की पहली रंगीन फिल्म थी. पर 1955 आते-आते रंगीन फ़िल्में बनने लगी थीं. इसी को देखते हुए आसिफ ने भी ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ सहित कुछ हिस्सों की शूटिंग टेक्निकलर में की जो उन्हें काफी पसंद आई. इसके बाद उन्होंने पूरी फिल्म को टेक्निकलर में दोबारा शूट करने का फैसला लिया ।