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इज़राईल की एतिहासिक वास्तविकता क्या है ? : पार्ट -3

कश्मीरा एण्ड शहरयार
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इजराईल की एतिहासिक वास्तविकता क्या है ? पार्ट -3
पिछले दो पार्ट्स में आपने जाना कि ईश्वर की तरफ से हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को बाबुल (इराक़ ) में नबी चुना गया , उस समय तक किसी भी धर्म का नाम अस्तित्व में नहीं आया था , उनके समय कुछ लोग सूरज की कुछ आग की एवं कुछ अन्य महापुरुषों की मूर्तियों की पूजा करते थे , हज़रत इब्राहीम ने एकेश्वरवाद का प्रचार किया जिसे दीने इब्राहीमी कहा जाता है , उनके बाद उनके दो बेटों को नबी चुना गया , हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने अरब की जमीन पर और हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम क़नआन ( फिलिस्तीन ) की जमीन पर ईश्वरीय संदेशों को जन जन तक पहुंचाते रहे । हज़रत इसहाक के बाद उनके बेटे हज़रत याकूब नबी हूए और फिलिस्तीन में ही ईश्वरीय उपदेशों का प्रचार प्रसार करते रहे । उनके बारह बेटों में से हज़रत यूसुफ़ मिस्र के बादशाह बने तो उनके ज़माने में हज़रत याकूब अपने पूरे परिवार सहित मिस्र आ गये । उस समय ये लगभग 72 लोगों का परिवार था । हज़रत याकूब का ही इब्रानी नाम इस्राइल था इसलिए बाद में इनके बारह बेटों की संतानें बनी इस्राइल कहलाई । मिस्त्र में जब तक हेक्सस लोगों का शासन रहा बनी इस्राइल के लोग खूब फले क्योंकि उनको नबियों की संतान समझा जाता था और सम्मान जनक व्यवहार किया जाता था , एक कारण यह था कि हेक्सस भी फिलिस्तीन के ही मूल निवासी थे ।

मगर जब क़िब्तियो ने जो मिस्र के मूल निवासी थे उन्होंने हेक्सस जाति के विरुद्ध बगावत करके मिस्र के शासन की बागडोर संभाली तो वो बनी इस्राइल पर ज़ुल्म ढहाने लगे , उनसे गुलामों के काम लिये जाते , जब यह जुल्म हद से बढ़ गया तो इसी क़ौम में ईश्वर की ओर से हज़रत मूसा और उनके भाई हज़रत हारून को नबी चुना गया , जिनकी कोशिशों और अल्लाह की मदद से बनी इस्राइल ने फिरओन से आजादी हासिल की और वह अपने पूरी सेना सहित नील नदी में डूबकर मारा गया । मिस्र से निकलकर बनी इस्राइल सिनई रेगिस्तान में अस्थाई तौर पर रहते रहे , उनके लिए वहां पर ईश्वर की और से भोजन की व्यवस्था की गई। ईश्वर के इतने उपकार के बाद भी जब पैगम्बर मूसा अलैहिस्सलाम जब सिनाई पहाड़ पर ईश्वरीय ज्योति के माध्यम से संदेश प्राप्त करने गये तो उनकी अनुपस्थिति में एक जादूगर के बहकावे में आकर उन्होंने अपने जेवरों का उपयोग कर सोने का एक बछड़ा बनाया और उसकी पूजा करने लगे । जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम कोहे तूर से वापस आए तो यह सब देखकर बहुत दुखी हुए , ईश्वरीय आदेशानुसार जिन लोगों ने यह कुकर्म किया था उनकी माफी का एकमात्र उपाय यह बताया गया कि वे लोग आपस में ही एक दूसरे को क़त्ल कर दें और इस प्रकार सभी मूर्ती पूजक मौत के घाट उतार दिए गये ।