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इन आम राजपूतों की ताक़त को भी ख़त्म करना ज़रूरी था, इन भोले राजपूतों से आसान शिकार कहाँ मिलता

अगर जमीन जो बोता है उसकी होनी चाहिए तो इस लॉजिक से फैक्ट्री में जो मैनुअल काम करता है फैक्ट्री उसकी होनी चाहिए।

आप लोग एक बार विचार करो । land हमेशा से एक महत्वपूर्ण कमोडिटी रही है। land पर हमेशा अधिकार उसी का होता था जो उसे conquest के माध्यम से विजय करता था। उसके बाद वो या तो वहां के पूर्ववर्ती खेतिहरों को वहां ज़मीन बोने देता था या बाहर से खेतिहर जातियों को वहां सैटल करने के लिए आमंत्रित करता था। जैसे उदाहरण के तौर पर आज का गंगानगर जो है वहां नहर आने के बाद महाराजा गंगासिंह ने पंजाब से जट्ट किसानों को बुलाया था क्योंकि वो अच्छे किसान थे।

अब मान लो मैं टाटा बिरला हूं और नई फैक्ट्री लगा रहा हूं। वहां काम तो मैं खुद करने से रहा। जाहिर सी बात है मजदूर चाहिए होंगे। 100 साल बाद अगर वही मजदूर बोले की इस फैक्ट्री में तो हमारे बाप दादा ने काम किया है। इस पर हमारा अधिकार होना चाहिए।

सोशलिस्ट देशों में यही हुआ था। सोवियत संघ इसका उदाहरण है। भारत भी खुद को शुरुआती दशकों में सोशलिस्ट कहता था पर कब्जा करने के नाम पर एस्टेब्लिशमेंट ने सिर्फ जमीदारों को ही निशाना बनाया। एक भी उदाहरण ऐसा नहीं मिलेगा जिसमे पूंजीपतियों को टारगेट किया गया हो। ऐसा क्यों?

क्योंकि भारत सरकार या यूँ कहें वहाँ बैठे वर्गों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से किस चीज में समाजवाद घुसेड़ना है किसमे नहीं, यह डिसाइड किया। सभी पूंजीवादी उन्हीं जातियों और वर्गों से थे जिनका कांग्रेस में प्रभुत्व था और देश की ब्यूरोक्रेसी जो अंग्रेजों से ट्रांसफर हुई, उसमें उनका होल्ड था। इन सबका एकछत्र राज आज़ादी के कुछ 3-4 दशकों तक भारत में निर्बाध बना रहा था। जाहिर है ये लोग अपने ही अधिकारों का हनन कैसे कर सकते थे। तो समाजवाद का जो सब्जबाग दिखा कर सत्ता प्राप्त की गई थी, जनता को बरगला कर पुरानी व्यवस्था के विरुद्ध असंतोष पैदा किया गया था, उसको साबित करने के लिए इन्हें कुछ तो करना ही था।

कुछ क्या करना था, जब जिनके इलीट वर्ग से सत्ता छीनी गयी थी, उनका ही आम तबका जो बिल्कुल अशिक्षित और मुख्यधारा से कटा हुआ था, खुद उसका इलीट वर्ग उनसे बहुत ज्यादा जुड़ा हुआ नही था, इन आम राजपूतों की ताकत को भी खत्म करना जरूरी था, इन भोले राजपूतों से बढ़िया sitting ducks (आसान शिकार) इन्हें कहाँ मिलता। इसलिए बेतुका सा लॉजिक लगाकर हमारी सारी जमीनें छीन ली गई। समाजवाद का सारा बोझ हमारे ऊपर लाद दिया गया।

जो बोएगा जमीन उसी की होगी। इससे घटिया और सेंसलेस कारण आपको कहीं नहीं मिलेगा। मान लीजिए आपके घर में कोई नौकर 30 साल से काम कर रहा है। सोचो उसकी औलादें यह कहकर केस दायर कर दे की साब यहां सारा काम हमने किया है इसलिए ये घर हमारा होना चाहिए।

या मान लीजिए कि जैसे कोई राजपूत राज की सेवा में था, सैन्य सेवा तो कई जगह बाध्यकारी भी थी, अब पीछे से उसकी जमीन बटाई पर कोई और खेती करता था, उसकी भी जमीन छीन कर उस बोने वाले के नाम कर दी। इससे बड़ा अन्याय क्या होगा। इस लॉजिक के हिसाब से तो ये जो आज के तथाकथित किसान का पट्टा लिए घूम रहे जाति के लोगों के बच्चे जब फौज, में लग जाएं तो उनकी अगली पीढ़ी से वो जमीन सरकार को वापस ले लेनी चाहिए, स्टेट आज भी जमीन का मालिक है। जब इनके लोग आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, व्यापारी, नेता बन जाएं इनकी जमीनों पर खेती किसी गरीब से करवाएं तब ये लॉजिक क्यूँ नही लगाया जाता। कर दो अब भी जोतने वाले के नाम जमीन ।

हरियाणा पंजाब में ये भूमि सुधार क्यूँ नही हुए इस पैमाने पर, वहां तो आज भी जो जमींदारियां हैं वहां यही तो चल रहा है, खेतो में मजदूरी तो यूपी बिहार के गरीब कर रहे हैं। वहां क्यों नही ली गयी जमीन या आज जमीन का पुनर्वितरण होता?

अगर आपने राजपूतों से जमीन ऐसे तर्क देकर ज़ब्त की तो फिर उस हिसाब से सभी पूंजीवादियों की संपतियां भी वहां काम करने वालों को बांट देनी चाहिए थी ।
क्या जमशेदजी टाटा या घनश्याम दास बिरला की संपति इस आधार पर नहीं छीनी जानी चाहिए थी ?

आप लोगों को किताबों में पढ़ाया जाता है ना कि नेहरू का समाजवाद अलग किस्म का समाजवाद था, या भारत ने आजादी के बाद मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया, वो अलग समाजवाद, मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या था??? यही ब्रेनवाश था, जिसमे समाजवाद का बोझा ढोने को सिर्फ एक वर्ग को मजबूर किया गया जबकि जिनके पास इस देश की वास्तविक संपत्ति थी, जो इस देश के संसाधनों के पर्दे के पीछे जो मालिक थे, उनको बचा लिया गया।

इस छद्म तथाकथित समाजवादी राष्ट्र ने आपसे सब कुछ छीन लिया पर आप संविधान की पूजा करते रहो क्योंकि बचपन से 15 अगस्त और 26 जनवरी को राष्ट्रभक्ति के गीत सुन सुन कर आप इतनी बुरी तरह इंडॉक्ट्रिनेट हो चुके हो की आप एक punching bag की हैसियत रखते हो इस देश में।

और आप लोग इस छद्म राष्ट्रवाद और हिंदुत्ववाद की खोखली विचारधारा में घुसे अपने प्रति हुए षडयंत्रो से अनजान भाग्य को कोसे बैठे हो।