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इस्राईल फ़िलिस्तीनी बच्चों का नरसंहार कर रहा, ग़ज़्ज़ा युद्ध और मीडिया का गिरता स्तर!

ग़ज़्ज़ा युद्ध और मीडिया का गिरता स्तर, सच से दूर लेकिन इस्राईल के साथ, तेलअवीव में बजने वाले सायरनों की आवाज़ें सुनने वालों को फ़िलिस्तीनी बच्चों और माओं की चीख़ें सुनाई नहीं देती!

सात दशकों से जिस प्रकार पश्चिमी एशिया में मौजूद अवैध इस्राईली शासन फ़िलिस्तीनी बच्चों का नरसंहार कर रहा, इस देश के लोगों की मातृभूमि पर जिस तरह से अवैध क़ब्ज़ा करता जा रहा है और अब वह यह चाहता है कि इस पूरे इलाक़े में फ़िलिस्तीन नाम का कोई देश न रहे। वहीं उसके इस आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले लोग ही आज दुनिया की नज़र में आतंकी हो गए हैं। साथ ही उन्हें लाखों बच्चों और महिलाओं के नरसंहार की कोई तस्वीर नहीं दिखाई दे रही है।

ग़ज़्ज़ा युद्ध की जिस प्रकार से पश्चिमी और भारतीय मीडिया रिपोर्टिंग कर रहा है उसको देखकर तो बिल्कुल नहीं लगता है कि यह किसी देश के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके कार्य करने की शैली बिल्कुल वैसे ही है जैसे पुलिस प्रशासन के साथ आजकल एक कैमरे वाला चलता है। जो वह चाहते हैं वही वह कैमरे वाला रिकॉर्ड करता है। इसी तरह ग़ज़्ज़ा युद्ध को कवर करने वाले अधिकतर मीडिया हाउस ऐसा बर्ताव कर रहे हैं कि जैसे अवैध ज़ायोनी शासन पर इतना अत्याचार हुआ है कि अब तक पूरी दुनिया में किसी पर भी इतना अत्याचार नहीं हुआ है। वहीं अगर बात की जाए तो सोशल मीडिया कि जिसका पूरा कंट्रोल अमेरिकी और पश्चिमी देशों के हाथों में है उसके द्वारा फैलाई जाने वाली ग़लत और असत्य सूचनाओं ने इस समय पूरी विश्वभर के लोगों को एक ऐसी दुनिया में भेज दिया है कि जहां लोग मजबूर हो गए हैं कि वह इसपर दिखाई जाने वाली बातों पर विश्वास करें। साथ ही मेरी नज़र में यह सोशल मीडिया ही एक दिन कारण बनेगा इस दुनिया की तबाही का।

ग़ज़्ज़ा पर आतंकी इस्राईल द्वारा किए जाने वाले पाश्विक हमलों का समर्थन करने वाले कई पेजों ने कथित तौर पर हमास के अत्याचारों को दर्शाने वाले ग्राफिक फुटेज प्रसारित किए। एक वीडिया में गर्भवती महिला पर हमले से संबंधित दृश्य दिखाए गए हैं कि जिसने नेटिज़न्स को हैरान कर दिया था। तथ्य-जाँच से पुष्टि हुई कि उक्त वीडियो का हमास से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं है, बल्कि वह वीडिया मेक्सिको में हमलावरों द्वारा किए गए प्रतिशोध के कार्य से संबंधित था। हमास द्वारा अलअक़्सा ऑपरेशन का एक भी ऐसा वीडिया और फोटो नहीं मिलेगा कि जिसमें वह किसी बच्चे की हत्या कर रहे हों या किसी महिला के साथ कोई ग़लत काम। लेकिन ज़ायोनी आतंकवाद का सबसे बड़ा सरग़ना नेतन्याहू इसी तरह के झूठ फैलाकर वह सब कुछ कर रहा है जो वास्तव में आतंकवाद की सही परिभाषा है।


यहां यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है कि अवैध आतंकी शासन इस्राईल ने अपने शैक्षणिक संस्थानों, साथ ही अमेरिका में यहूदी स्कूलों के ज़िम्मेदारों ने छात्र-छात्राओं के माता-पिता से आग्रह किया है कि वे अपने बच्चों के स्मार्टफोन से इंस्टाग्राम, टिकटॉक और एक्स (ट्विटर) जैसे सोशल मीडिया ऐप हटा दें ताकि उन्हें इस्राईल-हमास संघर्ष से संबंधित हिंसक फुटेज देखने से रोका जा सके। इसके पीछे उनकी रणनीति यह है कि यहूदी बच्चे अपने फ़ोन में यह न देखें कि कैसे ग़ज़्ज़ा के मासूम बच्चों का नरसंहार ज़ायोनी शासन कर रहा है। क्योंकि बच्चों पर इसका मानसिक प्रभाव पड़ सकता है और वह इस्राईली सेना से नफ़रत करने लग सकते हैं।

अब ज़रा सोचें अवैध ज़ायोनी शासन जो ग़ज़्ज़ा पर पाश्विक हमले कर रहा है, वहां के बच्चों और महिलाओं समेत हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतार चुका है, वही यह नहीं चाहता है कि उसके द्वारा की जा रही कार्यवाहियों को यहूदी बच्चे देखें, क्योंकि वह यह जानता है कि वह जो कर रहा है वह ग़लत है, आतंकवाद है और इंसानियत के ख़िलाफ़ भी है। लेकिन अमेरिकी, पश्चिमी और भारतीय मीडिया इस्राईल द्वारा किए जाने वाले पाश्विक हमलों को सही दर्शाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। वह इस तरह के दृश्य दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि जिससे यह लगे कि हमास ने कोई बहुत बड़ा ज़ुल्म कर दिया है। वहीं तेलअवीव समेत अन्य अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में ख़तरे के बजने वाले सायरनों की आवाज़ों को ऐसा सुनाया जाता है कि जैसे परमाणु हमला हो गया हो, लेकिन वहीं से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ग़ज़्ज़ा से दिल चीर देने वाली माओं, बच्चों और ज़ख्मी पिताओं की चीख़ों की आवाज़ इनके कानों तक नहीं पहुंच रही है।

लेखक- रविश ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार। ऊपर के लेख में लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं। तीसरी जंग हिन्दी का इससे समहत होना ज़रूरी नहीं है।