विशेष

इस तरह के क़त्ल-ए-आम की एक पूरी दास्तान है, जिस पर कभी बात ही नहीं हुई!

Ataulla Pathan
=====================
23 एप्रिल दिनविशेष—
जिस तरह से 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में सैफ़ुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल की रिहाई की माँग कर रहे लोगों पर अंग्रेज़ों ने गोली चलाई, ठीक वैसा ही 23 अप्रैल 1930 को पेशावर के क़िस्सा ख्वानी बाज़ार में अंग्रेज़ों ने ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान की रिहाई की माँग कर रहे लोगों पर गोली चलाई, सैंकड़ों लोग शहीद हुए।

जलियाँवाला बाग़ क़त्ल ए आम का बदला लेने की कोशिश करते हुए जहां ऊधम सिंह शहीद हुए। वहीं क़िस्सा ख्वानी बाज़ार क़त्ल ए आम का बदला लेते हुए हरीकृष्ण तलवार सरहदी शहीद हुए। क़िस्सा ख्वानी बाज़ार में जो जुलूस निकला था, उसे लीड मौलाना अब्दुर रहीम पोपलज़ई लीड कर रहे थे। इनको अंग्रेज़ों से लड़ते हुए कई बार जेल जाने का शर्फ़ हासिल हुआ था।

1935-36 के दौरान मौलाना अब्दुर रहीम हज के सफ़र पर हेजाज़ गए थे। वहाँ उन्होंने ख़ुसूसी तौर पर कई बार मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी से मुलाक़ात की, जो 1 दिसंबर 1915 में राजा महेंद्र प्रताप की सरकार में गृह मंत्री थे। ये मुलाक़ात इस लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके ठीक बाद 1939 में 25 साल मुल्क बदर रहने के बाद मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी भारत आते हैं, और गुप्त रूप से कई बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिलते हैं, इसी के कुछ माह बाद सुभाष बाबू 18 जनवरी 1941 को एक पठान के हुलिया में नज़रबंदी की हालत में कलकत्ता से ग़ायब हो जाते हैं। और इस तरह से भागने में नेताजी की जिस शख़्स ने मदद की वो एक थे फ़ॉरवर्ड ब्लॉक के संस्थापक सदस्य अकबर शाह और दूसरे थे भगत राम तलवार। यहाँ आपको ये जानना ज़रूरी है की भगत राम तलवार जहाँ हरीकृष्ण तलवार सरहदी के अपने सगे भाई थे, वहीं मौलाना अब्दुर रहीम पोपलज़ई के ख़ास शागिर्द थे।

फ़ॉरवर्ड ब्लॉक का एक काम था, जो बाद में तब दिखा जब भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई। नेताजी द्वारा रेडियो से देशवासियो को संबोधित किया जाने लगा। 31 अगस्त 1942 को जो भाषण उनका प्रसारित हुआ। उसमें उन्होंने कहा था कि भारत छोड़ो आंदोलन से अंग्रेज़ शासन की नींव हिल गयी है। उन्होंने इस आंदोलन को अहिंसात्मक गुरिल्ला युद्ध की संज्ञा दी थी। इसी भाषण में उन्होंने पिछले रेडियो प्रासारण का हवाला देते हुए देशवासियों को ये आंदोलन कैसे आगे बढ़ाना है इसकी कुंजी भी दी थी। उनके अनुसार गाँधी एवं अन्य नेताओं का जेल में जाना प्रेरणास्त्रोत था। और देशवासियों को उनके सिद्धांतों का पालन कर आंदोलन आगे बढ़ाना था। और इसके बाद फ़ॉरवर्ड ब्लॉक के नेताओं ने आंदोलन की कमान अपने हाथ में ली, फिर में उस दौरान रेल, सड़क, डाक और तार का पूरा सिस्टम उखाड़ दिया गया। जिससे सेकंड वर्ल्ड वॉर में जंग लड़ रही अंग्रेज़ी फ़ौज की कई मोर्चों पर कमर टूट गई।

बहरहाल ये प्रसारण तब हुआ, जब कलकत्ता से पेशावर और वहाँ से काबुल होते हुए नेताजी जर्मनी जाते हैं। और जर्मनी में रहने के बाद वहाँ से जापान की जानिब सैयद आबिद हसन के साथ पनडुब्बी में जाते हैं। 2 जुलाई 1943 को नेताजी सिंगापुर पहुँचते हैं और 21 अक्तूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत की आज़ाद हिन्द सरकार की बुनियाद डाली, और जंग का एलान किया। 14 अप्रैल 1944 को अराकान इलाक़े से जीत हासिल करते हुए आज़ाद हिन्द फ़ौज की बहादुर ब्रिगेड ने कर्नल शौकत अली मलिक की क़यादत में मणिपुर के मोइरांग पर जीत हासिल की। और वहाँ अपना झंडा लहरा दिया। इस इलाक़े में इन्होंने तीन माह तक हुकूमत क़ायम तब तक रखी, जब तक अमरीकी फ़ौज के सौ से अधिक हवाई जहाज़ ने कई दिन तक लगातार बमबारी न की।

बहरहाल, इस सेकेंडक वर्ल्ड वॉर में जापान की हार परमाणु युद्ध की वजह कर हुई, पर आज़ाद हिन्द फ़ौज ने सरेंडर नहीं किया। नेताजी ने भी मौक़े की नज़ाकत देखते हुए अपनी फ़ौज को ख़िताब किया के हम वापस मिलेंगे, और फिर शहीद स्मारक बना कर आज़ाद हिन्द फ़ौज को डिसबैंड कर दिया। डाइबैंड हुई फ़ौज को अंग्रेज़ों ने गिरफ़्तार कर लिया; वहीं शहीद स्मारक को बारूद से उड़ा दिया। जहां एक तरफ़ सिपाहियों का लाल क़िले में ट्रायल चला, वहीं कई जगह अंग्रेज़ों ने आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाहियों को अपने ज़ुल्म का शिकार बनाया, कई को फाँसी पर लटकाया, वहीं हज़ारों को गोली से मौत के घाट उतार दिया, 25 सितम्बर 1945 को नीलगंज में आज़ाद हिन्द फ़ौज के हज़ारों सिपाहियों को अंग्रेज़ों ने गोलियों से भून डाला। और इस तरह के क़त्ल ए आम की एक पूरी दास्तान है, जिस पर कभी बात ही नहीं हुई।

पर इस क़त्ल ए आम से 15 फ़रवरी 1915 का सिंगापुर याद आ जाता है, जहां इसी दिन सैंकड़ों भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेज़ों से बग़ावत कर दी थी, जिसके बाद उन्हें बग़ावत के जुर्म में उनके लीडर क़ासिम मंसूर के साथ लाइन में खड़ा कर गोली से भून दिया जाता है। ये तो फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर का मामला था, वहीं सेकंड वर्ल्ड वॉर में 15 फ़रवरी 1942 को ही ब्रिटिश इण्डियन आर्मी के 80 हज़ार जवान सरेंडर करते हैं। जिन्हें बाद में अपने साथ जोड़ कर नेताजी आज़ाद हिन्द फ़ौज की बुनियाद डालते हैं।

फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर में भारत के अधिकतर नेताओं ने अंग्रेज़ों का साथ इस उम्मीद से दिया था, के अगर हम इनकी मदद करेंगे तो वो हमे आज़ाद कर देंगे, पर हुआ उल्टा, उन्होंने दिया रॉलेट् ऐक्ट और जिसका विरोध करने पर हुआ जलियाँवाला बाग़ क़त्ल ए आम… वहीं इस दौरान एक धड़ा और भी था, जिसने फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर को मौक़ा माना और अंग्रेज़ी फ़ौज में बग़ावत करवाने को ठानी, इसमें ग़दर पार्टी सबसे आगे थी। इनको रेशमी रूमाल तहरीक के पूरे गुट का समर्थन हासिल था। और इनलोगों ने ही 1 दिसंबर 1915 को काबुल में राजा महेंद्र प्रताप की क़ायदत आज़ाद हिन्द सरकार की बुनियाद डलवाई, और इसी सरकार में जहाँ गृह मंत्री मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी थे, वहीं प्रधानमंत्री मौलाना बरकतउल्लाह भोपाली थे, जिन्होंने अपना एक लम्बा समय जापान में गुज़ारा था।

पर फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर में उन लोगों के नाकामयाबी मिली, हज़ारों लोग शहीद हो गये। टीम तीतर-बीतर हो गई। लेकिन हौसला कम न हुआ। ये मौक़े की तलाश में थे। ये लोग दुनिया के अलग अलग हिस्सों में फैल गए। और इन्हें फिर मौक़ा मिला सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान। इसी में एक थे राश बिहारी बोस, जिन्होंने हक़ीक़त मानो में आज़ाद हिन्द फ़ौज बनाने के लिए रास्ता दिखाया। बूढ़े होने की वजह कर लीड नहीं कर सकते थे, सुभाष चंद्र बोस को ज़िम्मेदारी मिली। वहीं दूसरे थे भगत सिंह के चचा सरदार अजीत सिंह, जिन्होंने इक़बाल शैदाई के साथ इटली के सिसली में सरकार बनाई, फ़ौज बनाई, हिमालया रेडियो स्थापित किया।

1920 के बाद बाद भारत से दो लोग बाहर निकलते हैं, एक भागलपुर के आनंद मोहन सहाय थे, जो बाद में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की परछाईं साबित हुए, पूरे परिवार ने आज़ाद हिन्द फ़ौज में अपनी सेवाएँ दी, वहीं दूसरे थे मुहम्मद इक़बाल शैदाई, जिन्होंने इटली की मदद से आज़ाद हिन्द फ़ौज और सरकार बनाई। और हिमालया रेडियो स्थापित किया। अपने यूरोपीय दौरे पर नेताजी सुभाष बोस ने इनसे यानी इक़बाल शैदाई से मुलाक़ात भी की। और इसी के बाद उन्होंने भी जापान की मदद से सिंगापुर में आज़ाद हिन्द फ़ौज, आज़ाद हिन्द सरकार और आज़ाद हिन्द रेडियो की बुनियाद डाली। – बाक़ी कहानी फिर कभी, क्यूँकि आज 23 अप्रैल है।

– तस्वीर में बीच में मौलाना अब्दुर रहीम पोपलज़ई बैठे हैं, और
उनके ठीक दायें हाथ पर भगत राम तलवार बैठे हैं।

Source heritage times
– Md Umar Ashraf

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
संकलन अताउल्ला खा पठाण सर