नई दिल्ली: इज़राइल के फिलिस्तीन पर बढ़ते अत्यचारों के बावजूद कई मुस्लिम देशों में सॉफ्ट कॉर्नर नज़र आरहा है, जिसके कारण फिलिस्तीन और उसका समर्थन करने वालो में रोष फैलाया हुआ है।अरब जगत ने अधिक बार अमेरिका और इज़राईल के दबाव में काम किया है।
फिलिस्तीन अपनी आज़ादी के लिये संघर्ष कर रही है लेकिन इन मुस्लिम देशों का सौतेला रवैया सोचने पर मजबूर करता है,इस्राईल की स्पोर्ट्स टीम वहां की संस्कृति मंत्री मैरी रीगीव के नेतृत्व में अबू ज़हबी गई जो अरबों के बारे में बड़ा नकारात्मक और कट्टर रवैया रखती हैं। तीसरा वार जो सबसे पीड़ादायक था वह इस्राईल के प्रधानमंत्री नेतनयाहू की ओमान यात्रा थी जहां नेतनयाहू और उनके प्रतिनिधिमंडल का भव्य स्वागत किया गया और सुलतान क़ाबूस ने उनसे मुलाक़ात की।
यह इस्राईल से दोस्ती के लिए अमरीका के दबाव में शुरू किया जाने वाला पूर्व नियोजित अभियान है इसका फ़िलिस्तीन इस्राईल शांति से कोई लेना देना नहीं है।
यह इस्राईल और अरब सरकारों के बीच मुफ़्त दोस्ती का कार्यक्रम है जिसके तहत बाद में डील आफ़ सेंचुरी के शेष रह गए अनुच्छेदों को इन हालात में लागू किया जाना है जब अरब जगत में हर तरफ़ टूट फूट की स्थिति है ताकि फ़िलिस्तीन के मुद्दे को हमेशा के लिए दफ़्न कर दिया जाए, अरब इस्राईल झगड़ा समाप्त हो जाए तथा इस्राईल को मध्यपूर्व के एक राष्ट्र के रूप में स्वीकृति मिल जाए।
הביקור הוא צעד משמעותי ביישום המדיניות שהתוותי להידוק הקשרים עם מדינות האזור, תוך מינוף יתרונותיה של ישראל בביטחון, בטכנולוגיה ובכלכלה pic.twitter.com/sjWMFQXRuF
— Benjamin Netanyahu (@netanyahu) October 26, 2018
यह उस लंबी श्रंखलाबद्ध योजना की महत्वपूर्ण कड़ी है जिसके तहत इराक़, सीरिया, लीबिया और यमन को ध्वस्त किया गया, मिस्र को भुखमरी में ढकेल दिया गया। इन देशों को अलग अलग बहानों से ध्वस्त किए बग़ैर इस योजना को व्यवहारिक कर पाना संभव नहीं था।
जब वर्ष 1996 में क़तर और ओमान ने अपनी राजधानियों में इस्राईल की व्यापारिक प्रतिनिधि कार्यालय खोला था और उन्होंने इस्राईली अधिकारियों का स्वागत किया गया था जैसे वर्ष 1994 में मसक़त ने इसहाक़ राबिन का स्वागत किया और वर्ष 1996 में मसक़त और दोहा दोनों ने शेमून पैरिज़ का स्वागत किया था उस इन दोनों देशों ने कहा था कि हम फ़िलिस्तीनियों और इस्राईलियों के बीच शांति को प्रोत्साहन देने और वार्ता के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने के लिए एसा कर रहे हैं विशेषकर इसलिए भी कि वर्ष 1993 में फ़िलिस्तीनी प्रशासन ने इस्राईल के साथ ओस्लो समझौता कर लिया था। इसके बाद जार्डन ने भी इस्राईल के साथ अरबा घाटी का समझौता कर लिया था।
חזרתי היום לישראל בתום ביקור מדיני רשמי בעומאן, שם נפגשתי עם שליט עומאן הסולטן קאבוס בן סעיד.
רעייתי ואני הוזמנו לביקור על-ידי שליט עומאן הסולטן קאבוס בן סעיד, לאחר מגעים ממושכים שהתנהלו בין המדינות. זה המפגש הרשמי הראשון בדרג זה, מאז שנת 1996 pic.twitter.com/9tVHdIzmOb
— Benjamin Netanyahu (@netanyahu) October 26, 2018
यह भी बात ध्यान योग्य है कि अकतूबर 2000 में अर्थात 18 साल पहले ओमान ने एक सराहनीय क़दम उठाते हुए इस्राईल के व्यापारिक प्रतिनिधि कार्यालय को बंद कर दिया।
उस समय ओमान के विदेश मंत्रालय से 12 अकतूबर 2000 को जारी बयान में कहा गया कि हमने इस्राईल का व्यापारिक कार्यालय इसलिए बंद कर दिया कि हमें फ़िलिस्तीन मुद्दे का समर्थन जारी रखने की इच्छा है, हम फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के क़ानूनी और स्थायी हितों के समर्थक हैं।
बयान में यह भी कहा गया कि ओमान हमेशा समग्र और न्यायपूर्ण शांति पर ज़ोर देता रहेगा लेकिन उन मापदंडों के आधार पर जो मज़लूम की रक्षा करते हों, पवित्र स्थलों की सुरक्षा को सुनिश्चित करते हों और हक़दारों को उनका हक़ दिलाएं। अब सवाल यह है कि इस समय एसा कौन सा बदलाव आ गया है जो ओमान ने यह क़दम उठाया है।
ओमान और क़तर ने फ़िलिस्तीनी प्रशासन के नियंत्रण वाले क्षेत्रों पर इस्राईल के अतिक्रमण, इस्राईलियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों का ख़ून बहाए जाने के कारण इस्राईली व्यापारिक कार्यालय को बंद किया था। मगर आज जब इस्राईल से दोस्ती का अभियान शुरू किया गया है तो स्थिति यह है कि इस्राईली फ़ोर्सेज़ उसी तरह जनसंहार कर रही हैं। उनके अपराध और भी जघन्य हो गए हैं।
जिस दिन नेतनयाहू, उनकी पत्नी और मोसाद के प्रमुख ओमान पहुंचे उसी दिन ग़ज़्ज़ा पट्टी में इस्राईली सैनिकों ने छह निहत्थे फ़िलिस्तीनियों की हत्या की। इस समय इस इलाक़े में 20 लाख मुसलमान भूख और बीमारियों की चपेट में हैं।
कोई शांति रोडमैप नहीं है जिसका समर्थन करने के लिए ओमान, क़तर और इमारात आगे आए हैं। इन देशों ने मज़लूम के समर्थन के संबंध में जिन मापदंडों का उल्लेख किया था उनमें से किसी का भी सम्मान नहीं किया जा रहा है। इस्राईल ने क़ुद्स का यहूदीकरण कर लिया है, अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प बैतुल मुक़द्दस को दूनिया भर के यहूदियों की राजधानी घोषित कर चुके हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति के विशेष दूत जैसन ग्रीनब्लाट जो एक सप्ताह बाद फ़िलिस्तीन पहुंचने वाले हैं वह अपने कांधे पर फ़िलिस्तीन मुद्दे की लाश ढो रहे हैं जिसे वह रामल्ला में हमेशा के लिए दफ़्न कर देना चाहते हैं और फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों से स्वदेश वापसी का अधिकार हमेशा के लिए छीन लेना चाहते हैं।
ओमान के विदेश मंत्री युसुफ़ बिन अलवी ने कहा कि नेतनयाहू की यात्रा जिससे पहले फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास ने ओमान की यात्रा की थी, द्विपक्षीय संबंधों के तहत हुई है यह यात्रा इन दोनों की अनुरोध पर हुई है, हम इस मामले में मध्यस्थता नहीं कर रहे हैं, मध्यस्थ के रूप में अमरीका की प्रमुख भूमिका में है और इस्राईल मध्यपूर्व के इलाक़े में एक राष्ट्र है।
इस बयान से पता चलता है कि यह मामला केवल यात्रा तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी भी संभावना है कि नेतनयाहू फिर मसक़त जाएं और वहां इस्राईली दूतावास का उद्घाटन करें और इसकी भी संभावना है कि इस्राईल के दूतावास दोहा और अबू ज़हबी में भी खुल जाएं बल्कि संभावित रूप से रियाज़ में भी इस्राईली दूतावास खुल सकता है। द्विपक्षीय संबंधों की बातें तो हो रही हैं।
दसियों लाख अरब नागरिक ओमान से प्रेम करते हैं क्योंकि उसने इलाक़े की अधिकतर जंगों और साज़िशों से ख़ुद को अलग रखा था। विशेष रूप से यमन और सीरिया के युद्ध में उसने किसी भी पक्ष का साथ नहीं दिया।
इससे पहले इराक़ युद्ध के मामले में भी उसका यही स्टैंड था। इस देश ने ईरान से भी संतुलित संबंध रखे और तेहरान को परेशान करने वाली अमरीकी नीतियों का कभी साथ नहीं दिया।
मगर हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ओमान ने युद्ध अपराधी नेतनयाहू का स्वागत करके करोड़ों मुसलमानों की इस देश से मुहब्बत को दांव पर क्यों लगा दिया? वह भी एसे समय जब फ़िलिस्तीन मुद्दा निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है, फ़िलिस्तीनी जनता की नाकाबंदी कर ली गई है और फ़िलिस्तीनियों की हत्याएं की जा रही हैं।
हमें तो यह आशा थी कि नेतनयाहू अरब देशों की अपनी पहली यात्रा में रियाज़ जाएंगे क्योंकि दोनों के बीच गुप्त रूप से काफ़ी निकटता पैदा हो चुकी है। इसीलिए हमें ज़्यादा झटका लगा है। हम यह समझते हैं कि यह यात्रा अन्य यात्राओं की भूमिका है जिसमें इस्राईली दूतावास खुलेंगे, सुरक्षा समझौते होंगे जो शायद फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ भी होंगे।
इस्राईल से दोस्ती का अभियान पहले दूर से शुरू होता है और फिर केन्द्रीय इलाक़े तक पहुंचता है। मोरक्को और मोरीतानिया पर इस्राईल के विशेष ध्यान देने का रहस्य भी संभावित रूप से यही है।
हम इस्राईल से दोस्ती के हर रूप की निंदा करने में एक क्षण के लिए भी नहीं हिचकिचाएंगे। हम फ़िलिस्तीनी प्रशासन की आलोचना करते हैं जिसने इस्राईल से दोस्ती की शुरूआत की थी और इस्राईल से दोस्ती के इच्छुक दशों के लिए इसका दरवाज़ा पूरी तरह खोल दिया था।
मगर यह बात साफ़ रहनी चाहिए कि फ़िलिस्तीनी प्रशासन फ़िलिस्तीन की जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करता। फ़िलिस्तीनी जनता अपने अधिकारों से पीछे नहीं हटेगा चाहे इस मामले में कुछ बंधु देश ग़द्दारी ही कयों न करें।
हमें खेद है कि हमसे बंधुत्व का रिश्ता रखने वाले देश नेतनयाहू की ओर से भाग रहे हैं जो इलाक़े के इतिहास के सबसे बड़े नस्ल परस्त इंसान है। वह भी एसे हालात में जब सारी दुनिया नेतनयाहू से मुंह फेर रही है।
हमें विश्वास है कि अरब जनता इसे हरगिज़ स्वीकार नहीं करेगी बल्कि इसका प्रतिरोध करेगी जैसे मिस्र की जनता ने प्रतिरोध किया और लेबनान, सीरिया, इराक़, मोरक्को, सूमालिया, सूडान, लीबिया, अलजीरिया और यमन में आम जनता ने इसका विरोध किया और कर रही है।
हम बेगुनाहों का खून बहाने वाली ज़ायोनी सरकार से दोस्ती की हर कोशिश की निंदा करते हैं। हम उस न्याय, प्रतिष्ठा, और वास्तविक शांति के पक्षधर हैं जिस पर सभी ईश्वरीय धर्मों न ज़ोर दिया है।
हम दोस्ती की इन कोशिशों को रोक नहीं सकते लेकिन इसका विरोध ज़रूर कर सकते हैं। हम कभी घुटने नहीं टेकेंगे क्योंकि हमें यक़ीन है कि असत्य की उम्र बहुत छोटी होती है। इसी बुराई से कोई अच्छाई निकल कर सामने आएगी। हमें जनता पर पूरा भरोसा है और जनता की गहरी आस्था से पूरी आशा है।