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ईरान और सऊदी अरब के बीच छठें दौर की वार्ता : एक जायज़ा

ईरान और सऊदी अरब के बीच सुरक्षा स्तर पर वार्ता के पांच दौर हुए जिनकी समाप्ति पर तेहरान ने कहा कि वह दूतावासों को दोबारा खोले जाने से सहमति रखता है।

दोनों पक्षों के बीच यह सहमति भी बनी कि अब वार्ता राजनैतिक स्तर पर होगी। ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने कहा कि वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले बग़दाद ने तेहरान को सूचित किया है कि रियाज़ सरकार वार्ता को राजनैतिक स्तर पर ले जाने पर सहमत हो गई है और ईरान भी सऊदी अरब से कह चुका है कि कूटनैतिक संबंध बहाल करने के लिए तैयार है।

हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने यह भी बताया कि इमारात और कुवैत ने कहा है कि वे अपने अपने राजदूत तेहरान भेजने के लिए तैयार हैं। सऊदी अरब ने 2016 में ईरान से कूटनैतिक रिश्ते तोड़ लिए थे तो उस समय कुवैत और इमारात ने कूटनैतिक संबंधों का स्तर कम कर दिया था।

टीकाकार मानते हैं कि यमन युद्ध का मुद्दा दोनों देशों की वार्ता में सबसे बड़ी रुकावट था और इसी के चलते 16 महीने तक बातचीत चलती रही मगर इस बीच कई मुद्दों पर सहमति बन गई। ईरान के वरिष्ठ टीकाकार हसन हानीज़ादे ने कहा कि सऊदी अरब और अंसारुल्लाह के बीच संघर्ष विराम से ईरान और सऊदी अरब के बीच कई मुद्दों को हल करने में मदद मिली है और अब आशा है कि छठें दौर की वार्ता में कामयाबी मिलेगी। उनका कहना था कि दोनों देशों के कूटनैतिक संबंध बहाल होते हैं तो कई क्षेत्रीय मुद्दों का समाधान खोजने में भी मदद मिलेगी।

हानीज़ादे का कहना है कि इलाक़ा बड़े गहरे बदलाव से गुज़र रहा है और इसी बदलाव को देखते हुए अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने दौरा किया। वहीं कुछ टीकाकार यह भी मानते हैं कि जो कुछ हो रहा है वह स्थायी हल नहीं बल्कि तनाव कम करने की टैकटिक है।

कुछ लोग यह अटकलें लगा रहे हैं कि ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान बग़दाद जाकर सऊदी अरब के विदेश मंत्री फ़ैसल बिन फ़रहान से मुलाक़ात करेंगे।

जो बाइडन ने जिद्दा शिखर सम्मेलन में जो कुछ हासिल करने की कोशिश की वह उन्हें हासिल नहीं हुआ। वह चाहते थे कि ईरान का मुक़ाबला करने के लिए सहमति बन जाए और इस्राईल को सुरक्षा हासिल हो जाए। मगर फ़ार्स खाड़ी के देशों ने यह इच्छा ज़ाहिर की कि वे ईरान के साथ अपना तनाव कम करना चाहते हैं।

जब अरब देश ईरान से संबंधों को बहाल कर रहे हैं और कुछ देश संबंधों का स्तर बढ़ा रहे हैं तो यह भी तय है कि इलाक़े में इस्राईल का प्रभाव कम हो रहा है। इस बीच रूस भी सक्रिय है। रूस यह देख रहा है कि अगर अरब देश और ईरान एक दूसरे के क़रीब आते हैं तो यह रूस के फ़ायदे की बात होगी क्योंकि यह देश फिर क्षेत्र से अमरीका को बाहर करने की कोशिश करेंगे।

वरिष्ठ विशलेषक मुहम्मद सालेह सिदक़ियान का कहना है कि क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय परिवर्तनों ने ईरान और अरब देशों को अच्छी तरह समझा दिया है कि उन्हें अपने मतभेदों को किनारे रखकर सहयोग का रास्ता निकालना होगा वरना सबका नुक़सान ही नुक़सान होगा।

सूचना है कि सऊदी अरब का प्रतिनिधिमंडल तेहरान की यात्रा पर पहुंचा है कि सऊदी दूतावास की इमारत का जायज़ा ले रहा है। प्रतिनिधिमंडल ने पूर्वोत्तरी मशहद की भी यात्रा की जहां सऊदी अरब का वाणिज्य दूतावास है। इसका मतलब यह है कि ईरान और सऊदी अरब के डिप्लोमैट अब एक दूसरे के यहां लौटने वाले हैं।

टीकाकार यह भी कह रहे हैं कि ईरान और सऊदी अरब अगर एक दूसरे के क़रीब आ रहे हैं तो इसमें अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की सऊदी अरब यात्रा की नाकामी का कोई रोल नहीं है। ईरान सऊदी अरब को अलग नज़र से देख रहा है।

मध्यपूर्व का इलाक़ा बहुत संवेदनशील है और लंबे समय से यह संकटों का केन्द्र भी रहा है। इस इलाक़े में इस्राईल के आ घुसने से तनाव और विवाद को हवा मिल रही है। मगर इलाक़े के अरब देश और ईरान इस समय गहन विचार के साथ आगे क़दम बढ़ा रहे हैं।