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ईरान के अदम्य साहस और प्रतिरोध से दुनिया से अमेरिकी दादागीरी की विदाई हो रही है : सऊदी अरब

जैसाकि आपको ज्ञात है कि शनिवार को सऊदी अरब के विदेशमंत्री फैसल बिन फरहान तेहरान की यात्रा पर आये और ईरानी विदेश मंत्री और राष्ट्रपति से उन्होंने मुलाक़ात की।

राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद इब्राहीम रईसी ने उनके साथ मुलाकात में कहा था कि दुनिया के कुछ देश इस बात को पसंद नहीं करते हैं कि क्षेत्र में शांति व सुरक्षा स्थापित हो और वह प्रगति करे। इसी प्रकार राष्ट्रपति ने कहा था कि ईरान और सऊदी अरब के मध्य संबंधों के विस्तार की उपलब्धियां बहुत अधिक होंगी और वे इस बात की गैरेन्टी होंगी कि बाहर का कोई भी देश क्षेत्र के मामलों में हस्तक्षेप न करे।

मार्च महीने में जब बीजींग से यह खबर प्रकाशित हुई कि ईरान और सऊदी अरब के मध्य एक दूसरे के देशों में अपने- अपने दूतावासों के खोलने पर सहमति बन गयी है तो अमेरिका और जायोनी शासन ने अपने विरोध का एलान किया पर ईरान और सऊदी अरब के मध्य होने वाली सहमतियां अब व्यवहारिक हो रही हैं तो बाइडेन सरकार की ओर से विरोध का कोई स्वर सुनाई नहीं दे रहा है।

इसका यह मतलब नहीं है कि अमेरिका और उसके घटक ईरान और सऊदी अरब के मध्य विस्तृत होते संबंधों से खुश हैं बल्कि वे इस वजह से चुप हैं कि क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि उनके विरोधों से कुछ नहीं होगा और जो होना था वह हो गया और हो रहा है।

जानकार हल्कों का मानना है कि अगर सऊदी अरब अमेरिका और इस्राईल और उनके घटकों की प्रसन्नता को महत्व देता तो कभी भी ईरान के साथ अपने संबंधों को दोबारा विस्तृत करने की कोशिश न करता। इसी प्रकार जानकार हल्कों का मानना है कि सऊदी अरब जो ईरान से अपने संबंधों को विस्तृत करना चाहता है तो उसकी एक वजह यह है कि सऊदी अरब ने अमेरिका के साथ रहकर बहुत अच्छी उसकी और उसके घटकों की ताकत को देख लिया।

साथ ही उसने ईरान की भी ताकत देख ली। आतंकवादी गुटों को अमेरिका, कई देशों और इसी प्रकार जायोनी शासन का पूरा समर्थन हासिल था परंतु ईरान ने दमिश्क सरकार के आह्वान पर आतंकवादी गुटों से मुकाबले में सीरियाई सरकार की सहायता की और अब सीरिया और इराक से आतंकवादी गुटों का लगभग सफाया हो गया है।

इन आतंकवादी गुटों का सफाया करने में ईरान ने जो प्रभावी व रचनात्मक भूमिका निभाई है वह किसी से ढ़का छिपा नहीं है और इराक और सीरिया के लोगों का मानना है कि अगर आतंकवाद से मुकाबले में ईरान ने उनकी सहायता न की होती तो आज उनके देशों में आतंकवादी गुट दाइश की सरकार होती।

ईरान के दुश्मनों की एक कोशिश तेहरान को अलग- थलग करना रही है परंतु ईरानी अधिकारियों की सूझबूझ से उनकी चालों पर पानी फिर गया है। रूसी और चीनी राष्ट्रध्यक्षों की तेहरान यात्रा, सीरिया के राष्ट्रपति की तेहरान यात्रा,खुद ईरानी राष्ट्रपति और विदेशमंत्री की सीरिया सहित दूसरे देशों की यात्रा और इसी प्रकार विभिन्न देशों के अधिकारियों व नेताओं की तेहरान आवाजाही इस बात का सुबूत है कि ईरान न केवल अलग- थलग नहीं पड़ा है बल्कि दूसरे देशों के साथ उसके संबंध दिन -प्रतिदिन अधिक व विस्तृत होते जा रहे हैं।

बहरहाल ईरान और सऊदी अरब के संबंधों में विस्तार न केवल दोनों देशों के हित में हैं बल्कि क्षेत्रीय देशों के अलावा पूरे इस्लामी जगत के हित में है। जानकार हल्कों का मानना है कि क्षेत्रीय देशों के साथ ईरान के संबंध जो दिन प्रतिदिन विस्तृत व प्रगाढ़ होते जा रहे हैं वह इस बात का सुबूत है कि विश्व के बहुत से देश तेहरान के खिलाफ अमेरिका के अन्यायपूर्ण और एकपक्षीय प्रतिबंधों से सहमत नहीं हैं और वे तेहरान के साथ अपने संबंधों को मधुर बनाकर अपने अमल से यह संदेश दे रहे हैं कि अब न केवल क्षेत्र बल्कि पूरी दुनिया से अमेरिकी दादागीरी की विदाई हो रही है।