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ईरान, भारत और रूस ने एक ही झटके में अमेरिका और पश्चिमी देशों के अरमानों पर फेरा पानी : रिपोर्ट

अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के साथ चल रहे तनाव के बीच रूस और ईरान ने एक मास्‍टरस्‍ट्रोक चल दिया है। इन दोनों देशों ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की काट के लिए 25 अरब डॉलर की लागत से 3000 किमी लंबे रास्‍ते का खाका तैयार किया है। यह रास्‍ता रूस के व्‍यवसायिक केंद्र सेंट पीटर्सबर्ग को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को जोड़ेगा।

दुनिया पर धन और बल के ज़रिए राज करने का सपना देखने वाले अमेरिका को उस समय एक बड़ा धक्का लगा जब ईरान, भारत और रूस ने उसके पैरों से ज़मीन ही खींच ली। अमेरिका जो अपने पश्चिमी देशों के सहयोगियों के साथ मिलकर हमेशा प्रतिबंधों का सहारा लेकर कभी रूस तो कभी ईरान और समय-समय पर भारत के विकास की पहिया रोकता था अब इन तीनों देशों ने उस रास्ते को ही बदल दिया जिसपर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने अपना स्पीड ब्रेकर बना रखा था। क्योंकि अब सेंट पीटर्सबर्ग से मास्‍को, वोलगोग्रैड, अस्‍त्रखान से कैस्पियन सी के रास्‍ते ईरान तक एक ऐसा ज़मीनी और समुद्री रास्‍ता बन गया है कि जो सीधे भारत की आर्थिक राजधानी मुंम्बई तक पहुंचेगा।

इस रास्‍ते के नहीं होने पर अब तक भारत का सफ़र तय करने के लिए रूसी सामानों को 14 हज़ार किमी का सफ़र तय करना होता था और 40 दिन का समय लगता था। लेकिन इस रास्ते ने न केवल समय को कम किया है बल्कि व्यापार को आसान कर दिया है। एक ओर भारत ईरान में चाबहार पोर्ट के लिए अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। वहीं ईरान भी चाबहार पोर्ट से लेकर तेहरान तक अपने रेल मार्ग का विस्‍तार कर रहा है। जबकि रूस चर्चित वोल्‍गा नदी को अजोव के समुद्र से जोड़ने के लिए 1 अरब डॉलर ख़र्च कर रहा है। इसके लिए नहरों को चौड़ा किया जा रहा है जिससे अब सालभर मालवाहक जहाज़ आ जा सकेंगे।

ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस अरबों डॉलर के निवेश के बीच कुछ रूसी और ईरानी जहाज अभी ही इस रास्‍ते का इस्‍तेमाल करने भी लगे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि किस तरह से अलग-अलग ब्‍लॉक के महाशक्तियों के बीच प्रतिस्‍पर्द्धा से तेज़ी से व्‍यापारिक नेटवर्क अलग आकार ले रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस और ईरान मिलकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। इस पूरे रास्‍ते को बनाने का मक़सद पश्चिमी हस्‍तक्षेप से व्‍यवसायिक संपर्कों की सुरक्षा करना है। जानकारों के अनुसार, इस रास्‍ते के खुलने से अमेरिकी प्रतिबंधों का कोई असर नहीं रह जाएगा। यही वजह है कि पुतीन ने सी ऑफ अजोव को रूस का घरेलू समुद्र क़रार दिया था। इस तरह से यह रास्‍ता नदी, समुद्र और रेलमार्ग के ज़रिए आपस में जुड़ा रहेगा। पुतीन ने भी इस कॉरिडोर की जमकर प्रशंसा की है। रूस इसके ज़रिए न केवल ईरान और भारत बल्कि अफ़्रीक़ी बाज़ारों तक पहुंचना चाहता है जो अभी तक यूरोपीय देशों पर निर्भर था।

माना जा रहा है कि 25 अरब डॉलर की लागत से बन रहे इस रास्‍ते की मदद से उन सामानों को भेजा जा सकेगा जिसे अमेरिका और पश्चिमी देश रोकते हैं। इसमें हथियारों की सप्‍लाइ भी शामिल है। इससे अब भारत को बड़ा फ़ायदा होने जा रहा है। पिछले दिनों इस रास्‍ते से पहली बार माल रूस से मुंबई पहुंच भी गया था। बताया जा रहा है कि 12 मिलियन टन से ज़्यादा व्‍यापार होने की संभावना है। भारत को बहुत जल्‍दी ही सामान रूस से सामान मिल जा रहा है। इस रास्‍ते की मदद से चीन को भी सामान भेजने की तैयारी है। इस रास्‍ते के बनने से अब 20 से 25 दिन में भारत सामान पहुंच सकेंगे जो अभी 40 से 45 दिन में पहुंचते हैं।