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उच्चतम न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द किए जाने को लेकर संसद में ‘कोई चर्चा’ नहीं हुई, यह ‘‘बहुत गंभीर मसला’’ है: : धनखड़

नयी दिल्ली, तीन दिसंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को रद्द किए जाने को लेकर संसद में ‘कोई चर्चा’ नहीं हुई और यह एक ‘‘बहुत गंभीर मसला’’ है।.

धनखड़ ने यह भी कहा कि संसद द्वारा पारित एक कानून, जो लोगों की इच्छा को दर्शाता है, उसे उच्चतम न्यायालय ने ‘‘रद्द’’ कर दिया और ‘‘दुनिया को ऐसे किसी भी कदम के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार (2 दिसंबर) को कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को रद्द किए जाने को लेकर संसद में कोई चर्चा नहीं हुई और यह एक बहुत गंभीर मसला है. धनखड़ ने यह भी कहा कि संसद की ओर से पारित एक कानून, जो लोगों की इच्छा को दर्शाता है, उसे उच्चतम न्यायालय ने ‘रद्द’ कर दिया और ‘दुनिया को ऐसे किसी भी कदम के बारे में कोई जानकारी नहीं है.’

उपराष्ट्रपति ने संविधान के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि जब कानून से संबंधित कोई बड़ा सवाल शामिल हो तो अदालतों को भी इस मुद्दे पर गौर करना चाहिए. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की उपस्थिति में एलएम सिंघवी स्मृति व्याख्यान को संबोधित करते हुए धनखड़ ने रेखांकित किया कि संविधान की प्रस्तावना में ‘हम भारत के लोग’ का उल्लेख है और संसद लोगों की इच्छा को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि शक्ति लोगों में, उनके जनादेश और उनके विवेक में बसती है. धनखड़ ने कहा कि 2015-16 में संसद ने एनजेएसी अधिनियम को पारित कर दिया.

संवैधानिक प्रावधान में बदलाव

उन्होंने कहा, “हम भारत के लोग-उनकी इच्छा को संवैधानिक प्रावधान में बदलाव किया जाए. जनता की शक्ति, जो एक वैध मंच के माध्यम से व्यक्त की गई थी, उसे खत्म कर दिया गया. दुनिया ऐसे किसी कदम के बारे में नहीं जानती.”

कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा

इस पर कुछ समय पहले कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुजरात के एक कार्यक्रम में कहा था कि देश के लोग न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं है. किरेन रिजिजू ने कहा था, ”संविधान की भावना को देखा जाए तो दुनिया के देशों में न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीश बिरादरी नहीं करती हैं. देखा जाए तो न्यायाधीशों की नियुक्ति करना सरकार का ही काम होता हैं.”