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उज़्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरक़ंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन से चीन और रूस का पश्चिम के लिए संदेश?!!रिपोर्ट!!

उज़्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरक़ंद में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के इतर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने मुलाक़ात की है।

इस बीच, इस सम्मेलन को लेकर भारत में सबसे ज़्यादा क़यास इस बात पर लगाए जा रहे हैं कि क्या भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति के बीच भी इस तरह की मुलाक़ात होगी या नहीं?

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रधान मंत्री मोदी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ईरान के राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मिर्ज़ियाउफ़ से अलग-अलग से मुलाक़ातें करेंगे। लेकिन चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग से अलग से मुलाक़ात होने के बारे में अभी कुछ भी निश्चित नहीं है।

शंघाई सहयोग संगठन या एससीओ का गठन 2001 में छह देशों ने मिलकर किया था। तब चीन और रूस के अलावा मध्य एशिया के चार देश क़ज़ाक़िस्तान, क़िर्ग़िज़स्तान, उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान इसके सदस्य थे। 2017 में पहली बार संगठन में विस्तार किया गया और भारत और पाकिस्तान को इसमें शामिल किया गया। अब ईरान भी एससीओ का सदस्य बनने जा रहा है।

यूक्रेन-रूस के चलते एससीओ के इस शिखर सम्मेलन का महत्व कहीं ज़्यादा बढ़ गया है। इस दौरान दुनिया और विशेष रूप से पश्चिम की निगाहें पुतिन और जिनपिंग की मुलाक़ात पर थीं। इस मुलाक़ात में राष्ट्रपति पुतिन ने एक बार फिर स्पष्ट शब्दों में यह एलान कर दिया कि मॉस्को एक ध्रुवीय दुनिया का विरोधी है और इसके लिए किए गए किसी भी प्रयास का विरोध करेगा। उन्होंने कहाः एक ध्रुवीय दुनिया बनाने के प्रयास हाल ही में पूरी तरह से घिनौना रूप ले चुके हैं, जबकि दुनिया के अधिकांश देशों के लिए यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है।

एक उभरती हुई महाश्कित के रूप में चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग का कहना था कि दुनिया को इतिहास के अभूतपूर्व परिवर्तनों का सामना है और बीजिंग और मॉस्को एक ज़िम्मेदार वैश्विक शक्ति की भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं, ताकि दुनिया में सतत और सकारात्मक विकास के लिए भूमि प्रशस्त हो सके।

वास्तव में वर्तमान वैश्विक व्यवस्था पर अगर नज़र डालेंगे तो साफ़ पता चल जाएगा कि चीन, भारत और रूस जैसी शक्तियों का उदय हो रहा है और यह दुनिया की उभरती हुई नई आर्थिक शक्तियां हैं। इसी तरह से ब्रिक्स और एससीओ जैसे संगठनों का गठन इस बात का सुबूत है कि शक्ति का संतुलन पश्चिम से पूरब की ओर झुक रहा है। इसलिए दुनिया के नेतृत्व का अमरीका का दावा सिर्फ़ एक खोखला दावा है, जिसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है।