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#उत्तराखंड के दूसरे इलाकों में ज़मीन धंसने की ख़बरें आना शुरू : अब #कर्णप्रयाग और #लैंडोर में ज़मीन धंसना शुरू!!video!!

उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में ज़मीन धंसने की वजह से क्षतिग्रस्त घरों की संख्या 723 हो गयी है. इसके साथ ही असुरक्षित क़रार दिए गए क्षेत्र में पड़ने वाले घरों की संख्या 86 हो गयी है.

केंद्र से लेकर राज्य सरकार की संस्थाएं जोशीमठ संकट से उबरने की कोशिशों में लगी हुई हैं.

लेकिन इसी बीच उत्तराखंड के दूसरे इलाकों में ज़मीन धंसने की ख़बरें आना शुरू हो गयी हैं.

जोशीमठ से कुछ 82 किलोमीटर दूर चमोली ज़िले के दक्षिण पश्चिम में स्थित कर्णप्रयाग में भी घरों के दरकने की बात सामने आई है.

Krishan Kant Jha “Guddu”
@KrishanKantJha8

..जोशीमठ के बाद अब कर्णप्रयाग और लैंडोर में ज़मीन धंसना शुरू…

अब तक ”731” घर हुए ध्वस्त
जोशीमठ में बाबजूद निर्माण कार्य चालू
पीड़ितों को सर्किल रेट से मुआवज़ा दे
सरकार !

अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम पर बसे इस शहर के कुछ घरों में दरारें इतनी गहरी हो गयी हैं कि यहां रह रहे दर्जनों परिवारों को नगरपालिका परिषद की ओर से बनाए गए राहत शिविर में रात गुज़ारनी पड़ रही है.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की टीम ने इस इलाके का दौरा करते हुए पाया है कि बद्रीनाथ हाइवे के क़रीब स्थित कर्णप्रयाग के बहुगुणा नगर में दो दर्जन घरों में गहरी दरारें आ गयी हैं और छतें हवा में लटक रही हैं.

साल 1975 से यहां रह रहे पूर्व सैनिक गब्बर सिंह रावत कहते हैं, ‘मेरा घर ढहने की कगार पर है. ये घर जिन खंभों पर टिका है, वे झुकने लगे हैं और पिछले साल हुई बारिश के बाद ये समस्या तेज़ी से बढ़ी है.’

85 वर्षीय रावत कहते हैं कि उन्हें 14 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का वादा किया गया था, लेकिन उन्हें अब तक एक रुपया भी नहीं मिला है.

वह बताते हैं, ‘मेरा पूरा परिवार रात होने पर शिविर में जाकर सोता है और सुबह लौट आता है. मैं रात भर यहां अंधेरे में अकेला रहता हूं, लेकिन मैं अपना घर मरने पर ही छोड़ूंगा.’

बद्रीनाथ हाइवे की लगभग 150 मीटर सड़क लगातार धंसती जा रही है.

स्थानीय निवासियों का मानना है कि अंधाधुंध निर्माण कार्यों के साथ-साथ चारधाम सड़क परियोजना के लिए पर्वतों को काटे जाने और जनसंख्या दबाव बढ़ने की वजह से स्थिति बद से बद्तर हो गयी है.

नगरपालिका परिषद के सदस्य हरेंद्र बिष्ट कहते हैं, “मेरे घर के सभी कमरों में दरारें पड़ चुकी हैं. पूरा ढांचा ही ज़मीन में समाने जा रहा है. ये समस्या जुलाई 2022 के बाद काफ़ी ज़्यादा बढ़ गयी.”

सेवानिवृत्त आपूर्ति निरीक्षक 73 वर्षीय भगवती प्रसाद सती कहते हैं कि बड़ी मशीनों से पहाड़ काटने की वजह से बहुगुणा नगर के आसपास का क्षेत्र अस्थिर हो गया है.

भगवती प्रसाद सती बताते हैं, “मेरा घर देखिए, ऐसा लगता है कि इसका ये हाल किसी भूकंप में हुआ हो. मुझे लगता है कि इस बार मानसून आते-आते कई घर गिर जाएंगे.”

नगरपालिका परिषद के एक सदस्य ने अख़बार को बताया है कि ‘जिन परिवारों की आर्थिक क्षमता ठीक है, वे अपने घर छोड़कर किराए पर रहने चले गए हैं. जो परिवार किराया नहीं दे सकते हैं, वे उम्मीद के सहारे जी रहे हैं.’

अख़बार के मुताबिक़, कर्ण प्रयाग और जोशीमठ ही नहीं ‘क्वीन ऑफ़ हिल स्टेशन्स’ कही जाने वाली मसूरी में इसी तरह के हालात पैदा होते दिख रहे हैं.

राज्य सरकार ने मंसूरी के लैंडोर का जियोलॉजिकल सर्वे कराने का निर्देश दिया है.

यहां रहने वाले स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ‘सड़क किनारे बनी इमारतें धंसना शुरू हो गयी हैं. ये जगह पिछले कुछ सालों से धंस रही है. लेकिन पिछले कुछ महीनों में सड़क से लगे घरों और दुकानों में भी गहरी दरारें आ गयी हैं.’

व्यापारी संघ के अध्यक्ष रजत अग्रवाल कहते हैं, “ये दरारें होटल निशिमा के पास लैंडोर बाज़ार में आ रही हैं. इसके साथ ही एक मंदिर और कोहिनूर बिल्डिंग भी इससे प्रभावित हुई है.”

उत्तराखंड के मंत्री गणेश जोशी ने मंगलवार को लैंडोर का दौरा करके इस क्षेत्र में जियोलॉजिकल सर्वे कराने के निर्देश दिए हैं.