साहित्य

उम्मीद का मौसम,,,,,,शायर – राम चरण राग

चित्र गुप्त
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उस समय मैं गुवाहाटी में था जब रामचरण राग जी का फोन आया था कि अपना पता भेजिए एक किताब भेजना है। पता मैने भेज दिया था और पुस्तक प्राप्ति की प्रतीक्षा में था। कुछ समय बाद राग जी का फोन दोबारा आया कि आपने जो पता भेजा था वह डिलीट हो गया है कृपया पुनः भेज दें। उस समय तो मैने हामी भरी लेकिन बाद में भूल गया। फिर कई दिनों बाद मुझे याद आया तो मैंने संकोचवश पता नहीं भेजा और पुस्तक को ऑनलाइन खोजने लगा।

जीवन की आपधापी में हम सबसे पहले किसी चीज की तिलांजलि देते हैं वह है अपने शौक का। मेरे पढ़ने के शौक के साथ भी कुछ ऐसा ही है। इंटरनेट ने अब काफी कुछ उपलब्ध करा दिया है इसलिए पढ़ने के शौक को जहां तहां भी पूरा किया जा सकता है।

‘उम्मीद का मौसम’ एक ग़ज़ल संग्रह है जिसमें कुल 115 गजलें संकलित हैं और इस संकलन के गजलकार हैं श्री राम चरण राग जी। यह संकलन मुझे notnul पर मिला जिसे बस यात्रा, ट्रेन यात्रा और स्टेशन पर बैठे बैठे ट्रेन का इंतजार करते हुए पढ़ा गया।


“सुख अपनी मुट्ठी में होते
हम जो हो जाते दरबारी”

यही तेवर यही कलेवर यही भाषा और यही कहन तो चाहिए नई ग़ज़ल को जिसे प्राप्त करने के लिए लाखों-लाख शायर चौबीसों घंटे की माथापच्ची में सर खपा रहे हैं।

“हौसला भरकर निकलती है पढ़ाई के लिए
रोज लड़की को डराती है भले सूनी सड़क”

ये मनुष्यता का संकटकाल है. यहां सब उथल पुथल से भरा हुआ है. एक ओर जहां धरती उबल रही है वहीं दूसरी ओर आदमी के प्रति आदमी की नफरत भी दिनोदिन उछाल मार रही है. जिसके पास काम नहीं है वो काम ढूढ़ रहा है. जिसके पास काम है वो करने को राजी नहीं है. लड़ने के नए नए बहाने खोजे जा रहे हैं. अपनी श्रेष्ठता को साबित करने के लिए नए नए मानक गढ़े जा रहे हैं. कोई बड़े घर का है. कोई बड़ी नौकरी में है, किसी का रिश्तेदार का पद बड़ा है, किसी का अपना कद बड़ा है। कोई अपने बच्चों को बड़े स्कूल में पढ़कर खुश है कोई मोटी किताबें पढ़कर खुश है.


आप राह चलते किसी आदमी से मिलिए उसके पास कुछ न कुछ बड़ा मिल ही जाएगा। सबने अपने अपने दंभ को पोषित करने के लिए कोई न कोई कोना बना ही रखा है। सिर्फ बना ही नहीं रखा है रोज रोज उसे पोषित करने का इंतजाम भी किया जा रहा है।

ऐसे समाज में जी रहे शायर से अब ऐसी ही गजलों की उम्मीद भी की जाती है। नायिकाएं जब फूलों की डालियों को पकड़कर झूलने की जगह हाथों में बंदूकें थामे सीमा की रखवाली के लिए जा रही हों तो इनपर कही जा रही बातों ने भी अपना तेवर बदल ही लेना चाहिए।

प्रस्तुत संग्रह की गजलों को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। मुझे जैसी कहन पसंद है ये सारी गज़लें बिल्कुल उसी मिजाज की हैं।

बात बहुत कड़वी है जिसे किसी मंच से पढ़ा जाए तो जूतों के अतिरिक्त और कुछ न मिलेगा फिर भी सच यही है इसे तो जूतम पैजारी करने वाले भी मानेंगे ही –

“हमारे पास जो कागज मिलेंगे
छुपे उनमें कई अचरज मिलेंगे
सियासत में पुलिस में दफ्तरों में
यहां कुछ लोग ही जायज मिलेंगे”

बड़े होने की जब एक ही पहचान रह जाए कि ‘वह आम आवाम के किसी काम का नहीं है’ ऐसी परिस्थिति में शायर यह न लिखे तो क्या लिखे –

प्यार नदिया सा दिया उनको मगर
वो समंदर से रहे खारे बहुत.

जिंदगी का द्वंद कुछ ऐसा ही है। हम कहते कुछ और हैं लेकिन मजबूरी कुछ और करने की होती है, इसी द्वंद पर लिखा एक शेर देखें –
बाजारू जीवनशैली में फंसकर मेरा प्यार गया
कहने वाला खुशियां लाने को खुद ही बाजार गया।

जिन्होंने ककसाड मैगजीन को पढ़ा है वो डॉक्टर कुसुमलता सिंह मेम की संपादकीय क्षमता के कायल होंगे ही जो नहीं जानते उनके लिए बताना चाहूंगा कि ‘लिटिल बर्ड पब्लिकेशन’ इनके की कुशल हाथों में है। यहां से प्रकाशित पुस्तकें अपनी अलग साज सज्जा के साथ पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
सामयिक ग़ज़ल प्रेमियों के लिए यह बढ़िया संग्रह है। जिसे एक बैठकी में आराम से पढ़कर पढ़ा जा सकता है।

पुस्तक – उम्मीद का मौसम
शायर – राम चरण राग
प्रकाशक – लिटिल बर्ड पब्लिकेशन
मूल्य – 225 रुपए