साहित्य

एक और कर्ण……!!

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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दिल्ली की कंपकंपाती सर्दी में भी कुणाल अपनी सैर करने की आदत को छोड़ नहीं पाता था। हमेशा की तरह आज भी वह तैयार होकर सैर के लिए बाहर निकला। दरवाजा खोलते ही शीत लहरी उसके पूरे बदन को कंपकंपा गई। लेकिन वह तो जैसे उनसे मुकाबला करने को तैयार था ।उसने अपने गर्म कपड़े और टोपी को ठीक कर लाॅन में लगे पौधों पर नजर डाली। कुछ अधखिले फूल कलियों से बाहर इस प्रकार झांक रहे थे। जैसे मुस्कुरा कर उसका स्वागत कर रहे हों।उन्हें देखकर कुणाल के चेहरे पर भी मुस्कुराहट दौड़ गईl घड़ी पर निगाह डाली सुबह के 5:00 बज रहे थे। वह लाॅन पारकर, जैसे ही मेन गेट खोला उसके पांव ठिठक गए। गेट के पास ही कपड़ों में लिपटा एक नवजात पड़ा था ।बच्चे को देख कुणाल घबरा गया। आसपास निगाह डाली कहीं कोई दिखाई नहीं दिया ।उसे कुछ सूझा नहीं की क्या करें ?वह हड़बड़ी में वापस अपने घर में भाग मां पिताजी और पत्नी को उठा लाया। उसकी मां विमला तुरंत बच्चे को गोद में उठाकर घर में ले आईं।

उन्होंने देखा बच्चे के शरीर में कोई हरकत नहीं है ,पर उसकी सांस हल्की-हल्की चल रही है। इधर कुणाल की पत्नी शॉल, रूम हीटर के साथ थोड़ा सा दूध भी गर्म करके ले आई ।विमला जी ने सरसों तेल गर्म करके बच्चे के तलवे और छाती पर मलना शुरू किया। थोड़ी देर में बच्चे को गर्माहट मिली तो वह अपनी आंखें खोलने का प्रयास करने लगा। कुणाल की पत्नी ने रुई के फाहे की सहायता से उसके मुंह में दूध की बूंदे देनी शुरू की थोड़ी देर पहले के असहाय बच्चे में अब जान आनी शुरू हो गई थी। इधर कुणाल और उसका परिवार स्वतः स्फूर्त बिना किसी से कुछ कहे उसकी सेवा में लगे हुए थे ।जैसे वह उनका कोई सगा हो, हां सगा ही तो था। एक रिश्ता था उनके बीच, इंसानियत का रिश्ता जिसके डोर से वह बंधे थे। उसी समय बच्चा रोने लगता है। उसे रोता देख सबके चेहरे पर मुस्कुराहट छा जाती है। जैसे वह बच्चा अपने स्वस्थ होने की सूचना दे रहा हो।

कुणाल की मां ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा न,” जाने किसका बच्चा है । किस कठोर हृदय ने बच्चे को इस ठंड में मरने के लिए छोड़ दिया है।”
” पर मां बच्चे की जिजिविषा तो माननी पड़ेगी इस हाड़ कंपाने वाली ठंड में भी अपने आप को बचा कर रखा है।”

कुणाल ने कहा।

इसी बीच कुणाल की पत्नी सुधा कहती है , “वह तो सब ठीक है, पर अब इस बच्चे का क्या करेंगे।”

कुणाल कहता है, “करेंगे क्या पुलिस को सूचना देकर किसी अनाथालय में छोड़ देंगे”

” क्या कहा अनाथालय में, इस नवजात दूधमुंहे को अनाथालय में छोड़ देंगे।”

विमला ने लगभग चीखते हुए कहा।

सुधा आश्चर्य से कहती है,” तो क्या करेंगे मांंजी, इसे घर में तो नहीं रख सकते ।”

“क्यों नहीं रख सकते, बाल गोपाल हमारे घर में आए हैं और तुम कहती हो घर में नहीं रख सकते ।”

विमला ने सुधा की बात काटते हुए कहा।

“मांजी, वह सब ठीक है मुझे भी इस बच्चे से सहानुभूति है। पर ऐसे किसी को भी ——-।

“किसी को भी से तुम्हारा क्या मतलब है।” विमला की आवाज थोड़ी तल्ख हो गई थी ।

सुधा ने अपनी सास को समझाते हुए कहा,” मां प्रैक्टिकल होकर सोचिए, भावावेश में कोई ऐसा काम ना करें जिससे हमें बाद में पछताना पड़े।”
कुणाल अपनी पत्नी का पक्ष लेते हुए कहा, “सुधा ठीक कह रही है मां , हम कोई समाज सुधारक तो है नहीं की राह चलते किसी भी लावारिस बच्चे की जिम्मेदारी ले लें।” लावारिस शब्द सुनते ही विमला को जैसे करंट का झटका लगा।

” कुणाल, एक बार लावारिस कह दिए। दोबारा इस शब्द का प्रयोग मत करना। वरना मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी।”

कुणाल की आवाज भी थोड़ी तेज हो गई,” अच्छी मुसीबत है ।पूरा दिन खराब हो गया ।एक ऐसे बच्चे के लिए जिसका कोई अता पता नहीं है। कोई हमारे दरवाजे पर अपनी कलंक को छुपाने के लिए छोड़ गया। उसके लिए हम आपस में लड़ रहे हैं।”

यह सब सुनकर विमला तड़प उठी, उसके मुख से अनायास ही निकल पड़ा।” कुणाल यदि ऐसी ही सोच आज से तीस वर्ष पहले मेरी भी होती ना तो आज तुम भी यहां नहीं ,किसी अनाथालय में होते।”

यह वाक्य बोलने के बाद विमला को लगा कि जिस राज को तीस वर्षों से सीने में दबा रखी थी ।वह आज बोल कैसे गई।
विमला के पति ने बात संभालने की कोशिश की लेकिन कुणाल ने दोनों हाथों से अपनी मां के कंधे को पकड़ लिया। वह इस बात को सुनकर हतप्रभ हो गया था।

“मां आपने अभी क्या कहा?”
विमला चुप खड़ी रही जैसे उसे काठ लग गया हो। कुणाल ने उसे झकझोरते हुए कहा मां,”आप इस तरह चुप नहीं रह सकतीं। आपने जो कहा उसका क्या मतलब है? क्या मैं आपका बेटा नहीं हूं, ……बोलिए ..मां बोलिए “।

विमला की आंखों से आंसुओं की अविरल धार बह रही थी ।उनकी चुप्पी जैसे उनकी बात का समर्थन कर रही हो। उनको इस तरह देखकर कुणाल कटे वृक्ष की तरह जमीन पर गिर पड़ा। विमला ने अपनी आंखों के आंसू पोछे और कुणाल के सिर को अपने गोद में ले लिया ,साथ ही सीने में दफन राज़ को एक एक कर उगलना शुरु किया।

“आज से करीब तीस वर्ष पहले कि एक ऐसी ही सुबह थी।तुम्हारे पापा कि पोस्टिंग दिल्ली में हुई थी।अतः शादी के कुछ ही दिनों के बाद हम यहां शिफ्ट हो गए। हमारी शादी को कुछ ही महीने हुए थे। एक सुबह जब मैंने बाहर का दरवाजा खोला ,तो मेरे होश उड़ गए। किसी ने एक नवजात बच्चा वहां रख छोड़ा था।पहले हम भी घबरा गए क्या करें ? क्या ना करें? पर बच्चे को देखकर मेरी सोई ममता जाग उठी।

तुम्हारे पिता ने कहा कि चलो हम थाने में रिपोर्ट लिखवा देतें हैं,वरना इस बच्चे के कारण हम किसी मुसीबत में न पड़ जाएं।शायद सब पुरुष एक सी ही सोच रखते हैं।लेकिन मैं अड गई कि इस बच्चे को मैं पालुंगी ।तुम्हारे पिता ने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की कहा, देखो भावुकता में कोई ऐसा कदम मत उठाओ ।अभी तुम्हें इस बच्चे पर प्यार आ रहा है, लेकिन कल जब तुम्हारे अपने बच्चे होंगे तो ना चाहते हुए तुम उसे वैसा प्यार नहीं कर पाओगी। कहीं ना कहीं तुम्हारे मन में इसके लिए भेद जरूर आ जाएगा। तुम्हें अपने इस निर्णय पर पछतावा होगा। मैं नहीं चाहता कि किसी भी बच्चों के साथ कोई अन्याय हो ।

ये सुनकर कही ,” अगर ऐसी बात है तो मैं भी एक भीष्म प्रतिज्ञा करती हूं ।मैं अपने बच्चे को जन्म ही नहीं दूंगी। आज से यही मेरा बेटा है ।मेरी असली संतान है और मैं इसकी मां ।मेरे जिद के आगे तुम्हारे पिताजी ने भी घुटने टेक दिए हमने यह बात किसी को नहीं बताया। मोहल्ले को भी छोड़ दिया परिवार वालों को भी तुम्हारा परिचय अपने बच्चे के रूप में कराया ।मैं अपनी प्रतिज्ञा पर हमेशा कायम रही और मेरे मन में कभी यह ख्याल ही नहीं आया कि तुम मेरे बच्चे नहीं हो। तुम्हारे पिता ने भी मेरे वचन का मान रखा लेकिन इस बच्चे के कारण आज सारे भेद से पर्दा उठ गया।”

कुणाल और उसकी पत्नी सुधा दम साधे अपनी मां की सारी बात सुनते रहे। चारों ओर सन्नाटा पसर गया। सिर्फ सुधा की सिसकियां ही वातावरण की खामोशी को भंग कर रही थी।

थोड़ी देर संयत होने के बाद कुणाल अपनी मां को सहारा देकर उठता है और कहता है ,”मां कल एक कर्ण को तुमने सहारा दिया था ।आज एक कर्ण का पालनहार बनने की मैं भी शपथ लेता हूं ।”

इसी बीच बच्चा जोर-जोर से रोने लगता है जैसे वह भी अपनी स्वीकृती प्रदान कर रहा हो।