साहित्य

एक और फ्लाइट की कथा सुन लो…

Neeraj Kumar ·
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एक और फ्लाइट की कथा सुन लो…

जनवरी 2014 की बात है… शादी तब तक नहीं हुई थी… कुछ ही महीने पहले साइकिल से लद्दाख की यात्रा की थी, तो उत्साह अपने चरम पर था… इस बार सोचा कि मिजोरम चलते हैं और साइकिल से मिजोरम की परिक्रमा करते हैं…

मिजोरम पूरी तरह एक पहाड़ी राज्य है और पूर्वोत्तर में एकदम लास्ट में है… मैंने अपनी साइकिल को खोला और एक बोरे में भरकर बांध दिया… दिल्ली से लामडिंग तक राजधानी में बुकिंग की और साइकिल को अपनी सीट के नीचे रख दिया… लामडिंग से सिल्चर के लिए मीटरगेज की ट्रेन चलती थी… वहां भी साइकिल सीट के नीचे रखी और सिल्चर पहुंच गया… सिल्चर से आइजॉल के लिए सूमो चलती हैं… साइकिल को सूमो की छत पर बांधा और फाइनली मिजोरम की राजधानी आइजॉल पहुंच गया… अब यहां से मिजोरम की परिक्रमा करनी थी, जिसमें 2 सप्ताह लगने थे…

अगले दिन आइजॉल से साइकिल यात्रा शुरू कर दी… लेकिन शहर से बाहर निकलते ही साइकिल में ब्रेकडाउन हो गया… फिर भी 200 किमी दूर चम्फाई तक खींच ले गया… चम्फाई से थोड़ा ही आगे बर्मा लग जाता है… बर्मा में 3-4 किमी अंदर Lake of no Return नाम की एक झील है… मैं उस झील तक जाने वाला था, क्योंकि भारतीयों को बिना वीजा-पासपोर्ट के एक दिन के लिए बर्मा में जाना एलाऊ होता है…

लेकिन अब तक साइकिल में इतने ब्रेकडाउन हो चुके थे कि साइकिल ने क्लियर मना कर दिया – “मैं बर्मा नहीं जाऊंगी, तू देखता रहियो…”

मैं देखता रहा, लेकिन साइकिल बर्मा नहीं गई… चम्फाई से आइजॉल के लिए सूमो, आईजॉल से सिल्चर के लिए सूमो और सिल्चर से गुवाहाटी के लिए भी सूमो ले ली… 36 घंटे से भी ज्यादा तक साइकिल सूमो की सवारी करती रही… उस समय पूर्वोत्तर में सड़कें नहीं हुआ करती थीं… वहां कीचड़ हुआ करता था और कीचड़ में ही अनुमान लगाना होता था कि यह कीचड़ सिल्चर जाएगा और वो कीचड़ गुवाहाटी जाएगा… वहां के अनुभवी ड्राइवरों को सारे अनुमान थे… अब चूंकि यात्रा का बेड़ागर्क हो चुका था, तो मैं जल्दी से जल्दी दिल्ली लौटना चाहता था… सिल्चर से लामडिंग के लिए ट्रेन भी थी, लेकिन मैंने जल्दी जाने के लिए गुवाहाटी तक सूमो ले ली…

गुवाहाटी से दिल्ली के लिए पूर्वोत्तर संपर्क क्रांति में मेरी वेटिंग थी… ऐन टाइम पर वेटिंग क्लियर नहीं हुई… डेढ़ दिन की इस यात्रा को मैं जनरल डिब्बे में या किसी के सिरहाने-पैताने बैठकर तय नहीं करने वाला था… कोढ़ में खाज वाली बात ये थी कि उस दिन नॉर्थईस्ट एक्सप्रेस रद्द थी, तो दो ट्रेनों की सारी सवारियां एक ही ट्रेन में थीं…

कुछ समझ नहीं आ रहा था… गले में 15 हजार की साइकिल लटकी हुई थी… इसका क्या करूं??… फाइनली कई घंटों की देरी से संपर्क क्रांति एक्सप्रेस प्लेटफार्म पर लगी… प्लेटफार्म की सारी भीड़ ट्रेन में समा गई… और मैं साइकिल समेत वहीं बैठा रहा… ट्रेन पकड़ लूं या नहीं??…

अचानक एक आइडिया दिमाग में आया… पहले इस साइकिल से छुटकारा पाओ… उसके बाद सोचेंगे… इसका बोरा तो मैंने मिजोरम में ही विसर्जित कर दिया था… अब इसे बोरे में पैक करने की कोई इच्छा नहीं थी… फिर भी मैंने साइकिल के दोनों पहिये खोल दिए और हैंडल भी खोल दिया… और इन्हें आपस में एक रस्सी से बांध दिया… और ट्रेन के एक डिब्बे में दोनों शौचालयों के बीच में रख दिया…

ट्रेन चल पड़ी… मैं गुवाहाटी स्टेशन पर रह गया… 15 हजार की साइकिल भी चली गई… ट्रेन बंगाल, बिहार और यूपी से होकर गुजरेगी… पता नहीं साइकिल मिलेगी भी या नहीं… अगर मिल गई, तो ठीक… नहीं मिली, तब भी ठीक…

स्टेशन के बाहर निकलकर एक होटल में कमरा लिया… थोड़ा आराम किया… और फाइनली गुवाहाटी से दिल्ली जाने के लिए अगले दिन की Go Air की फ्लाइट बुक कर ली… इसके साढ़े ग्यारह हजार रुपये लगे… गुवाहाटी से दिल्ली के लिए साढ़े ग्यारह हजार रुपये तब भी महंगे थे और आज भी महंगे हैं… लेकिन अर्जेंट था और मुझे जाना ही था, इसलिए फ्लाइट बुक करते समय कोई दुख नहीं हुआ…

अगले दिन तय समय पर उठा… गुवाहाटी से बंगाईगांव जाने वाली पैसेंजर चलने ही वाली थी… मैं इसी में बैठ गया और आजरा स्टेशन पर उतर गया… वहां से एयरपोर्ट 3 किमी दूर था… 10 रुपये में ऑटो वाले ने उतार दिया…

अब से पहले मैं दिल्ली से लेह और लेह से दिल्ली तक की हवाई यात्रा कर चुका था… इसलिए चेक-इन के टाइम पर मैंने राइट विंडो सीट मांग ली… उन्होंने दे दी…

फ्लाइट गुवाहाटी से बागडोगरा उतरी… और बागडोगरा से सवारियां लेकर दिल्ली की ओर चल पड़ी… दिल्ली से इसी विमान को पुणे जाना था… मुझे इस बात का पता इसलिए चला कि दिल्ली उतरते समय एनाउंसमेंट हो रहा था – पुणे वाली सवारी बैठी रहो… बाकी सब उतर जाओ…

जब आप गुवाहाटी या बागडोगरा से दिल्ली जाते हो, तो आपके राइट साइड में पूरा हिमालय होता है और कंचनजंगा से नंदादेवी तक की सारी चोटियां दिखती हैं… इनक्लूडिंग एवरेस्ट…

अब आप साइकिल की जरूर पूछोगे… संपर्क क्रांति 36 घंटे से भी ज्यादा विलंब से नई दिल्ली पहुंची… तब तक मैं अपनी 2 दिन की ड्यूटी भी कर चुका था…
और साइकिल वहीं उसी कोने में उसी हालत में पड़ी थी, जिस हालत में 70 घंटे पहले मैंने उसे छोड़ा था… स्टेशन से बाहर निकलते ही मैंने साइकिल को जोड़ा… और मस्त चलाकर अपने घर ले आया… आधी रात को ऑटो के किराये के 150 रुपये भी बच गए…

(नोट: गियर वाली साइकिल थी… मिजोरम में गियर चेंजर टूट गया था, तो गियर चेंजर हटा दिया… अब बार बार चेन उतरने लगी… गियर के बिना साइकिल पहाड़ पर नहीं चढ़ सकती… मिजोरम में पहाड़ ही पहाड़ हैं… उधर गियर चेंजर भी नही मिला… चेन उतरने और गियर चेंजर न होने की वजह से साइकिल मिजोरम में नहीं चलाई जा सकती थी… लेकिन दिल्ली में चलाई जा सकती थी…)
घुमक्कड़ी जिंदाबाद (Ghumakkadi Zindabad)