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औरंगज़ेब की फ़ोटो प्रोफ़ाइल पर लगाने पर शख्स गिरफ़्तार : महान मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के बारे में प्रो.बी.एन पाण्डेय की पुस्तक से प्राप्त लेख पढ़ें!


सोशल मीडिया में औरंगज़ेब की तस्वीर अपने स्टेट्स पर लगाने के बाद महराष्ट्र के कई ज़िलों में हिंसा भड़क गयी थी, हिंसा के बाद महराष्ट्रा के उप मुख्यमंत्री ने पब्लिक्ली बयान दिया कि औरंगज़ेब की औलादों को…..” मोदी के एक मंत्री ने औरंगज़ेब को विदेशी आक्रांता बताते हुए महात्मा गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को माँ भारती का सपूत बता दिया, कहा कि गोडसे कम से कम थे तो भारतीय, भारत सरकार मुग़लों के इतिहास को पाठ्यक्रम से हटा चुकी है, देश में हिन्दुत्वादी राजनीती का बोलबाला है, भारत देश माँ भारती बन चुका है, भारत हिन्दू राष्ट था, हिन्दू राष्ट्र है, हिन्दू राष्ट्र रहेगा की बात खुल्लम खुल्ला की जा रही है, देश का संविधान लगभग ख़त्म हो चुका है, वोटों के लिए समाज को बांटने, तोड़ने, नफरत फैलाने के अनेक क्रायक्रम भगवा संगठनों ने चला रखे हैं, कानून को इन तमाम बातों से कोई मतलब नहीं है, कोई भी ऐरागैरा जो दिल चाहे धमकी दे सकता है, लोगों से मकान, दुकान ख़ाली करने, शहर छोड़ने की धमकी दे सकता है, लेकिन कानून क्या कर रहा है ये किसी को समझ में नहीं आने वाला

 

यहाँ एक लेख है पढ़िये

जब मैं इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया. यह मामला ‘सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर’ से संबंधित जायदाद के बारे में था।

मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे. एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे. इन दस्तावेज़ों में “शहंशाह औरंगज़ेब” के फ़रमान भी थे. औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था।

मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे. मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता है कि “यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है.” आखि़र औरंगज़ेब कैसे बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था?

मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा. वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे. मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि ‘औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं।

इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी (शैव सम्प्रदाय के) शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा. यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था. जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी।

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महाराष्ट्र : नवी मुंबई में शख्स ने व्हाट्सऐप प्रोफाइल पिक्चर में लगाई औरंगजेब की फोटो, पुलिस ने दर्ज़ किया मामला

इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया. डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के विभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें. अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई. उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई. ये फ़रमान (1065 हि. से 1091 हि., अर्थात)1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे।

हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये चंद मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाणित हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके विरुद्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है।

भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं. यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा।

औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ. ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे. मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और “काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब” की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं।

औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है, उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः

तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।

(यह लेख प्रोफ़ेसर डॉक्टर अरुण कुमार मिश्रा के ट्वीटर से लिया गया हैं, उन्होंने इस लेख का सोर्स प्रो. बी. एन पाण्डेय की पुस्तक “भारतीय संस्क्रति और मुग़ल सम्राज्य” को दिया हैं।)

औरंगज़ेब की फोटो को बनाया था व्हॉट्सऐप प्रोफ़ाइल पिक्चर, नवी मुंबई का शख्स गिरफ़्तार

मुगल बादशाह की तस्वीर को कथित रूप से व्हाट्सऐप प्रोफ़ाइल पिक्चर बनाने वाले शख्स को पुलिस ने वाशी में गिरफ़्तार किया. शख्स को बाद में घर लौट जाने दिया गया, और उसके ख़िलाफ़ नोटिस जारी किया गया है.

नवी मुंबई पुलिस ने मुगल बादशाह औरंगज़ेब की तस्वीर को कथित रूप से व्हाट्सऐप प्रोफाइल पिक्चर के रूप में इस्तेमाल करने को लेकर एक शख्स के खिलाफ FIR दर्ज की है. एक अधिकारी ने रविवार को बताया कि एक हिन्दू संगठन ने इस मुद्दे को उठाया था. एक मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर के आउटलेट पर नौकरी करने वाले शख्स को पुलिस ने वाशी में गिरफ़्तार किया. शख्स को बाद में घर लौट जाने दिया गया, और उसके ख़िलाफ़ नोटिस जारी किया गया है.

पुलिस अधिकारी के अनुसार, औरंगज़ेब की तस्वीर को व्हाट्सऐप प्रोफ़ाइल पिक्चर बनाए जाने का स्क्रीनशॉट एक हिन्दू संगठन ने पुलिस को दिया था, जिसके बाद भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्दों का उच्चारण करना आदि) और 153-ए (विभिन्न समूहों के बीच धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. उन्होंने बताया कि मामले की तफ़्तीश जारी है.

औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान के कथित महिमामंडन को लेकर हाल ही में महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं हुई हैं. कोल्हापुर शहर में कुछ स्थानीय लोगों द्वारा सोशल मीडिया ‘स्टेटस’ के तौर पर एक आपत्तिजनक ऑडियो संदेश के साथ टीपू सुल्तान की तस्वीर के कथित इस्तेमाल के ख़िलाफ़ बुधवार को किए गए प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पथराव भी किया.

इससे पहले, अहमदनगर में भी एक जुलूस में औरंगज़ेब की तस्वीरें दिखाई गई थीं. संगमनेर कस्बे में एक लड़के की कथित हत्या के विरोध में सकल हिन्दू समाज की एक रैली के दौरान पत्थर फेंके गए. इस दौरान दो लोग ज़ख्मी हो गए थे, और पांच वाहन क्षतिग्रस्त कर दिए गए. पुलिस ने बताया था कि संगमनेर में ही एक धार्मिक जुलूस के दौरान औरंगज़ेब का पोस्टर प्रदर्शित किया गया था, और आपत्तिजनक नारे भी लगाए गए थे.

Mohammad Tanvir تنوير
@TanveerPost
महान शासक औरंगजेब आलमगीर र०आ द्वारा किया गया एक ऐसा इन्साफ, जिसे देश की जनता से छुपाया गयाl

औरंगज़ेब आलमगीर र०आ काशी, बनारस की एक ऐतिहासिक मस्जिद (धनेडा की मस्जिद) यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पन्नो से तो हटा दिया गया है, लेकिन निष्पक्ष इन्सान और हक़ परस्त लोगों के दिलो से मिटाया नही जा सकता और क़यामत तक मिटाया नहीं जा सकेगा।

औरंगजेब आलमगीर र०आ की हुकूमत में काशी बनारस में एक पंडित की लड़की थी जिसका नाम शकुंतला था।
उस लड़की को एक मुसलमान जाहिल सेनापति ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा और उसके बाप से कहा कि तेरी बेटी को डोली में सजा कर मेरे महल पे 7 दिन में भेज देना।

पंडित ने यह बात अपनी बेटी से कही।
उनके पास कोई रास्ता नहीं था।
बेटी ने पिता से कहा– 1 महीने का वक़्त ले लो कोई भी रास्ता निकल जायेगा।

पंडित ने सेनापति से जाकर कहा– “मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं 7 दिन में सजाकर लड़की को भेज सकूँ, मुझे महीने का वक़्त दो”

सेनापति ने कहा– “ठीक है, ठीक महीने के बाद भेज देना”

पंडित ने अपनी लड़की से जाकर कहा– “वक़्त मिल गया है अब?

लड़की ने मुग़ल सहजादे का लिबास पहना और अपनी सवारी को लेकर दिल्ली की तरफ़ निकल गई, कुछ दिनों के बाद दिल्ली पहुँची, वो दिन जुमे का दिन था।

और जुमे के दिन औरंगजेब आलमगीर र०आ नमाज़ के बाद जब मस्जिद से बहार निकलते थे तो लोग अपनी फरियाद एक चिट्ठी में लिख कर मस्जिद की सीढियों के दोनों तरफ़ खड़े रहते थे।
हज़रत औरंगजेब आलमगीर र०आ वो चिट्ठियाँ उनके हाथ से लेते जाते, और फिर कुछ दिनों में फैसला (इंसाफ) फरमाते।

वो लड़की (शकुंतला) भी इस क़तार में जाकर खड़ी हो गयी।

उसके चहरे पे नकाब था, और लड़के का लिबास (ड्रेस) पहना हुआ था, जब उसके हाथ से चिट्ठी लेने की बारी आई, तब हज़रत औरंगजेब आलमगीर र०आ ने अपने हाथ पर एक कपड़ा डालकर उसके हाथ से चिट्ठी ली।

तब लड़की बोली– “महाराज, मेरे साथ यह नाइंसाफी क्यों?
सब लोगों से आपने सीधे तरीके से चिट्ठी ली और मेरे पास से हाथों पर कपडा रख कर?

तब औरंगजेब आलमगीर र०आ ने फ़रमाया कि इस्लाम में ग़ैर मेहरम (पराई औरतों) को हाथ लगाना भी हराम है और मैं जानता हूँ तू लड़का नहीं लड़की है।

शकुंतला बादशाह के साथ कुछ दिन तक ठहरी, और अपनी फरियाद सुनाई।

बादशाह हज़रत औरंगजेब आलमगीर र०आ ने उससे कहा– “बेटी, तू लौट जा तेरी डोली सेनापति के महल पहुँचेगी अपने वक़्त पर”

शकुंतला सोच में पड गयी कि यह क्या?

वो अपने घर लौटी और उसके बाप पंडित ने पूछा– क्या हुआ बेटी?

वो बोली– “एक ही रास्ता था, मै हिन्दोस्तान के बादशाह के पास गयी थी, लेकिन उन्होंने भी ऐसा ही कहा कि डोली उठेगी, लेकिन मेरे दिल में एक उम्मीद की किरण है, वो ये है कि मैं जितने दिन वहाँ रुकी बादशाह ने मुझे 15 बार बेटी कह कर पुकारा था और एक बाप अपनी बेटी की इज्ज़त नीलाम नहीं होने देगा।

फिर वह दिन आया जिस दिन शकुंतला की डोली सजधज के सेनापति के महल पहुँची।

सेनापति ने डोली देख के अपनी अय्याशी की ख़ुशी में फकीरों पर पैसे लुटाना शुरू किया।

जब पैसे लुटा रहा था, तब एक कम्बल-पोश फ़क़ीर जिसने अपने चेहरे पे कम्बल ओढ रखी थी, उसने कहा– “मैं ऐसा-वैसा फकीर नहीं हूँ, मेरे हाथ में पैसे दे”

उसने हाथ में पैसे दिए और उन्होंने अपने मुह से कम्बल हटाया तो सेनापति देखकर हक्का बक्का रह गया।
क्योंकि उस कंबल में कोई फ़क़ीर नहीं बल्कि औरंगजेब आलमगीर खुद थे।

उन्होंने कहा– “तेरा एक पंडित की लड़की की इज्ज़त पे हाथ डालना मुसलमान हुकूमत पे दाग लगा सकता है, और औरंगजेब आलमगीर ने इंसाफ फ़रमाया।

4 हाथी मंगवा कर सेनापति के दोनों हाथ और पैर बाँध कर अलग अलग दिशा में हाथियों को दौड़ा दिया गया,
और सेनापति को चीर दिया गया।

फिर आपने पंडित के घर पर एक चबूतरा था उस चबूतरे के पास दो रकात नमाज़ नफिल शुक्राने की अदा की, और दुआ कि– “ऐ अल्लाह, मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ, कि तूने मुझे एक ग़ैर इस्लामिक लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए, इंसाफ करने के लिए चुना।

फिर औरंगजेब आलमगीर ने कहा– “बेटी, एक ग्लास पानी लाना”

लड़की पानी लेकर आई, तब आपने फ़रमाया– “जिस दिन दिल्ली में मैंने तेरी फरियाद सुनी थी, उस दिन से मैंने क़सम खायी थी के जब तक तेरे साथ इंसाफ नहीं होगा पानी नहीं पिऊंगा।

तब शकुंतला के बाप (पंडित जी) और काशी बनारस के दूसरे हिन्दू भाइयों ने उस चबूतरे के पास एक मस्जिद तामीर की, जिसका नाम “धनेडा की मस्जिद” रखा गया।

और पंडितों ने ऐलान किया कि ये बादशाह औरंगजेब आलमगीर के इंसाफ की ख़ुशी में हमारी तरफ़ से इनाम है।

और सेनापति को जो सजा दी गई वो इंसाफ़ एक सोने की तख़्त पर लिखा गया था, जो आज भी धनेडा की मस्जिद में मौजूद है।