साहित्य

और वह कपड़े बदलने के लिए फिर से मन्नू की कब्र की ओर चल पड़ा….

चित्र गुप्त
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बारात
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“यही सड़ा-गला कपड़ा पहनकर जाएगा क्या बारात में? पता भी है तुझे कि कितने बड़े बड़े आदमी आएंगे वहाँ…?” काका बस के पिछले दरवाजे से बस के अंदर चढ़े और अंदर आते ही बड़बड़ाने लगे।

रामू को पता था कि ऐसी बातें उसे छोड़कर और किसी को नहीं बोली जा सकती हैं? फिर भी वह सिर नीचे किये बैठा रहा। दुत्कार सुनने की उसकी पुरानी आदत थी। गरीब होना इस समाज में किसी गुनाह से कम थोड़ी न होता है। गरीब आदमी को कोई कहीं भी झिड़क सकता है और रामू तो फिर भी बच्चा ही था। उससे तो जब भी जिसे भी मौका मिलता था अपनी कुंठाएं निकाल ही लेता था। यह सब झेलते हुए बुरा तो उसे भी लगता था पर बेशर्मी का आवरण ओढ़कर उसने इससे निपटना सीख लिया था। काका बड़बड़ाते हुए अब उसके पास तक आ गये और उसका कंधा पकड़कर झिड़कते हुए बोले-

“सूखी हड्डी तेरे से ही बोल रहा हूँ। वहाँ हमारी बेइज्जती कराने के लिए जाएगा क्या? अपना बुशट देख पीछे से फटा हुआ है।” इतना कहते हुए उन्होंने उसके फटे बुशट के छेद में उंगली डालकर और फाड़ दिया। फिर उसकी बांह पकड़कर बस से नीचे उतारते हुए बोले – “जा कुछ अच्छा है तो वो पहनकर कर आजा फिर तुझे ले चलेंगे।”

काका की बातें सुनकर कुछ और बारातियों ने भी उनकी बात का समर्थन किया। बस के दरवाजे पर बैठे बाराती ने उसका हाथ पकड़कर नीचे उतार दिया।
रामू ने जब से सुना था कि भैया की शादी तय हुई है और बारात बस से जाएगी तब से वह इसकी तैयारी में जुटा था। ये वाला पैंट शर्ट ही उसका सबसे अच्छा वाला था। हालांकि बुशट के पीठ में छोटा सा छेद था लेकिन बाकी तो और भी जर्जर स्थिति में थे। इस कपड़े को साफ करके उसने तभी से रख दिया था।

दस बारह साल की उमर होती भी कितनी है। लेकिन बिन माँ का बेटा इस उम्र में भी काफी होशियार हो गया था। बाप सुबह ही मजदूरी करने निकल जाता और रामू घर में अकेला…. स्कूल जाता था तो टाइम पास भी हो जाता था पर गर्मी की छुट्टियां हो जाने से अब वह निपट अकेला ही रहता। आस पड़ोस में उसकी उम्र के अन्य बच्चे भी नहीं थे जिसके साथ वह समय निकाल लेता। उसका समय काटने का एक ही जरिया था। कभी इनके दुआरे तो कभी उनके दुआरे…

काका फोन पर किसी से बारात चलने की मनुहार कर रहे थे।

“अरे भैया! आप ही नहीं चलोगे तो कैसे चलेगा? मेरे आखिरी बेटे की शादी है देख लेना… ” पर शायद उधर से वो न चल पाने के लिए कोई बहाने बना रहा था इसलिए काका उसे समझाने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने बात करते हुए एक रामू पर कातर दृष्टि डाली तो वह सहम गया। जो अब तक बस का दरवाजा पकड़े इस उम्मीद में खड़ा था कि शायद किसी का मन पसीजे तो उसे भी साथ जाने का मौका मिल जाए।

लेकिन काका ने जैसे ही उसे खड़ा देखा वह घूमे और बस से नीचे उतर गए। उन्होंने रामू का कान पकड़ कर उसमे एक जोर की चिकोटी काटी और फिर से बस में चढ़ गए रामू तिलमिलाकर रह गया।

रामू असहाय खड़ा रहा रेंगती हुई बस को देखते हुए उसके पीछे-पीछे चलने लगा। उसकी फटी बुशट जो काका के उंगली फंसाकर फाड़ देने के कारण नीचे तक लटक गई थी उसीमे उसका पैर फंसा तो वह गिर पड़ा। बुशट पूरा फट गया था इसका एहसास उसे अब हुआ था।

कुछ खास लोगों के न आने के कारण बस ने थोड़ी देर और रुकना था ऐसा उसने कुछ बारातियों को बात करते हुआ सुना।

काका से साथ ले चलने की बात दुबारा कहने का वो मन बना ही रहा था कि फटे बुशट ने उसे रोक लिया। एक बार उसने घर मे पड़े अन्य कपड़ों पर यहीं खड़े खड़े नजर दौड़ाई पर उसमें से कोई भी उसे इस योग्य न लगा तो अंत में वह मन मारकर फटे हुए बुशट को निकालकर हाथ में घुमाते हुए घर की ओर चल दिया।

घर की ओर जाते हुए रामू को अचानक याद आया कि दक्खिन टोले से मास्टर का बेटा ‘मन्नुआ’ जो पिछले ही महीने मरा था उसे पास के ही खेत मे दफनाया गया था और उसकी कब्र के पास ही उसके सारे कपड़ों को भी फेंका गया था। ये बात याद आते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। वह तेज़ी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ा। गेंहूँ के कटे हुए खेत की खूंटियां उसके पैरों में चुभ रही थीं पर वह आगे बढ़ता जा रहा था। जल्दी ही वह अपने गंतब्य तक पहुँच गया था। उसने जल्दी से सब कपड़ों को उलट पलट कर देखा। कई कपड़े जो बिल्कुल नए जैसे थे वहाँ बिखरे पड़े थे। एक टीशर्ट उठाने से पहले उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई ‘कोई उसे देख नहीं रहा है’ इस बात से मुतमइन होकर उसने झट से टीशर्ट उठाकर पहना और वापस हो लिया। मुड़ा ही था कि उसकी नज़र लाल रुमाल पर अटक गई। उसने उठाकर उसे भी अपनी जेब के हवाले किया। पास ही एक बेल्ट भी पड़ी थी वह उसे भी उठाकर लगाने की कोशिश करने लगा। पर पुराना पैंट उसे बेल्ट लगाने की इजाजत न दे रहा था। उसने पैंट भी निकालकर फेंक दिया और वहां पड़े कपड़ों में से ही एक पैंट ढूढ़कर पहन लिया। पास ही एक चप्पल भी पड़ी थी जिसकी जोड़ी ढूढ़ने में उसे थोड़ा टाइम लगा पर उसने वह भी ढूढ लिया। अब रामू पूरा राजा बाबू बन गया था। वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब काका के पास उसे खराब कपड़ों के कारण उतारने का कोई कारण नही मिलेगा।

रामू तेज़ी से आगे बढ़ा खेत दर खेत वह दौड़ते हुए जा रहा था। चप्पल पहनने की आदत न होने के कारण वह बार बार उसके पैर से निकल जाती थी जिसे पहनने के लिए उसे रुकना पड़ता था। थोड़ा देर ऐसे ही दौड़ने के बाद उसने चप्पलों को निकालकर हाथ में लिया और दौड़ने लगा। बस उसे दूर से हिलती हुई दिखाई पड़ी वह और तेज़ भागने लगा। वह जब तक बस वाली जगह तक पहुंची बस ने रेंगना शुरू कर दिया था। काका ने उसे दौड़ता हुआ देखा बस का दरवाजा बंद कर लिया। वह बुझी आंखों से अपने सामने बस को जाता देखता रहा।

बस के चले जाने के बाद रामू वहीं बैठकर थोड़ी देर तक रोता रहा फिर घर की ओर चल पड़ा। लेकिन तभी उसे याद आया कि पिता जी इन कपड़ों के बारे में पूछेंगे तो क्या बताऊंगा? इस सवाल ने उसे फिर झकझोर दिया और वह कपड़े बदलने के लिए फिर से मन्नू की कब्र की ओर चल पड़ा।
#चित्रगुप्त