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कर्नाटक फ़ार्मूले से राजस्थान में भी कांग्रेस कर्नाटक जैसा चमत्कार करेगी : रिपोर्ट

कर्नाटक में चुनावों से पहले राजस्थान जैसी ही रार कांग्रेस में मची हुई थी। अप्रैल के दूसरे सप्ताह में कांग्रेस के तीन बड़े नेता बैंगलोर में एक बैठक करते हैं। उसके बाद तमाम कड़वाहट और तीखी तकरार के बाद भी सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार न सिर्फ डाइनिंग टेबल पर साथ साथ नजर आते हैं बल्कि बड़ी बैठकों में भी हंसते और बात करते हुए नजर आने लगे हैं। कर्नाटक में आपसी रार के बीच में कांग्रेस ने जो फार्मूला निकाला अब उसी फार्मूले से राजस्थान में भी कांग्रेस कर्नाटक जैसे चमत्कार की उम्मीद कर रही है। हालांकि कांग्रेस के नेताओं का ही मानना है कि सचिन सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच समझौते का यह वक्त अभी मुफीद नहीं है। क्योंकि चुनाव में अभी वक्त है और यह ‘समझौता’ इतने दिन टिकेगा इसकी कोई गारंटी नहीं।

राजस्थान के सियासी हालातों को देखते हुए कांग्रेस के बड़े नेताओं ने सोमवार को ही बैठक में कर्नाटक फार्मूले का जिक्र कर सियासी हल निकालने की बात कही। बैठक में शामिल सूत्रों का कहना है कि इस दौरान इस बात का जिक्र किया गया कि कर्नाटक में जिस तरीके से डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया ने तमाम विवादों के बाद भी पूरे चुनाव में जब जहां मौका मिला साथ में बैठे और एक संदेश देने की कोशिश की कि दोनों के बीच में विवाद भले रहा हो लेकिन पार्टी आलाकमान ने समझौता करा दिया है। कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के मामले में ऐसा नहीं हो पा रहा है। जिस तरीके की तस्वीरें अशोक गहलोत और सचिन पायलट की आई उससे कांग्रेस के मैनेजमेंट की भी परत खुल गई।

मामला सुलझ गया है, यह दिखाना जरूरी है
पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता बताते हैं कि कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में अप्रैल के दूसरे सप्ताह में प्रदेश प्रभारी रणदीप सुरजेवाला, एमबी पाटील और जी परमेश्वर कांग्रेस के दोनों बड़े नेता सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की बड़ी बैठक हुई। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक तरुण सिंह के मुताबिक उस बैठक के बाद जो तस्वीरें आनी शुरू हुई उससे कांग्रेस के चुनाव में कम से कम दो बड़े नेताओं के विवाद की वजह से परिणामों पर असर कम पड़ने की बात कही जाने लगी। कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि राजस्थान मामले में भी इसी तरह से सोमवार को ही बैठक से पहले यह तय किया गया कि मामले को सुलझाया जाना जितना जरूरी है उससे ज्यादा सुलझे हुए मामले को दिखाया जाना भी जरूरी है। संदेश स्पष्ट हो कि जो भी समझौता हुआ है उस पर दोनों नेताओं की सहमति है। राजनीतिक विश्लेषक तरुण कहते हैं कि सोमवार की रात राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की जो तस्वीरें बाहर आई उससे कांग्रेस पार्टी अपनी ओर से किए गए समझौते को ही दिखा पाई। इससे ये साबित नहीं हुआ कि दोनों नेताओं के बीच सब कुछ सामान्य हो गया है।

यहां तो मामला उल्टा है
कर्नाटक में कांग्रेस की ओर से चुनावी कमान संभालने वाले नेता कहते हैं कि इस वक्त आवश्यकता कर्नाटक जैसी तस्वीर सामने आने की है जिसमें डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया समेत कांग्रेस के कई बड़े नेता डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते हैं। बड़े मंच पर दोनों नेता एक साथ होते तो दोनों लोगों के बीच में हुए मनमुटाव का अहसास तक नहीं होता। लेकिन सोमवार को सचिन पायलट और अशोक गहलोत की मुलाकात के बाद आई तस्वीर से ही स्पष्ट हो जाता है कि दोनों नेताओं के बीच में अंदरूनी तौर पर अनबन बाहर भी बनी हुई है। इस पूरे मामले में कांग्रेस पार्टी के नेताओं का कहना है कि मान मनौवल का दौर पूरा हो चुका है। अब दोनों नेता राजस्थान में कांग्रेस पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए नए सिरे से चुनावी प्रचार अभियान शुरू करेंगे।

अपनी ही पार्टी को घेर रहे थे तो मुद्दे कैसे सुलझे?
राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार तरुण कहते हैं सचिन पायलट जिन मुद्दों पर विरोध कर रहे थे दरअसल वह तो कांग्रेस पार्टी से ही जुड़े हुए हैं। कांग्रेस की सरकार को उनके मुद्दों पर एक्शन लेना था और पार्टी ने वह नहीं किया। ऐसे में सचिन पायलट के सामने दुविधा की स्थिति तो बनी ही रहेगी। वो कहते हैं कि दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कर्नाटक में डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच समझौता तब हुआ था जब चुनाव के महज कुछ दिन ही बाकी थे। और पार्टी सियासी मैदान में अपनी रणनीतियों के साथ आगे बढ़ रही थी। राजस्थान में हालात ऐसे नहीं हैं। यहां अभी चुनाव के लिए कम से कम छह महीने का वक्त है। ऐसे में सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों एक साथ इतने लंबे वक्त सुर में सुर मिला पाएंगे यह असंभव जैसा दिख रहा है। समझौते का यह वक्त भी बहुत मुफीद नहीं लग रहा है। उनका मानना है कि जब तक कर्नाटक के फार्मूले पर दोनों नेताओं को एक साथ एक मंच पर कांग्रेस के सुर में सुर मिलाते हुए राजस्थान की जनता नहीं देखेगी, तब तक यह भरोसा नहीं होगा कि दोनों नेता एक ही दिशा में चल रहे हैं।