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क़तर फ़ीफ़ा विश्व कप-2022, अब तक सबसे महंगा आयोजन : रिपोर्ट

मेजबानी मिलने के 12 साल बाद अब कतर में वर्ल्ड कप शुरू हो रहा है. खाड़ी के इस देश ने इसमें भारी-भरकम निवेश किया है और यह अब तक सबसे महंगा आयोजन माना जा रहा है.

यह अनुमान लगाना असंभव है कि कतर में होने वाले फीफा विश्व कप के आयोजन में वास्तव में कितना पैसा खर्च हो रहा है. पर यह बात तय है कि 1930 से शुरू होने वाले इस फुटबॉल विश्व कप का यह अब तक का सबसे खर्चीला आयोजन है. कुछ अनुमानों के मुताबिक, इसकी लागत पिछले 21 आयोजनों की कुल लागत से भी ज्यादा हो सकती है.

कुछ विशेषज्ञों और रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस आयोजन की कुल लागत दो सौ अरब डॉलर से भी ज्यादा हो सकती है. इस संदर्भ में यदि देखें तो अभी तक का सबसे महंगा विश्व कप साल 2014 में ब्राजील और साल 2018 में रूस में आयोजित हुआ था और दोनों की कुल लागत करीब 26.6 अरब डॉलर थी.

शेफील्ड हलाम विश्वविद्यालय में स्पोर्ट्स फाइनेंस के लेक्चरर डैन प्लूमली कहते हैं कि 12 साल पहले जब 2022 के विश्व कप के लिए कतर को मेजबानी मिली थी, उस वक्त भी इसकी अनुमानित लागत 65 अरब डॉलर थी. वो कहते हैं कि हमें अभी भी यह नहीं पता है कि यह वास्तव में कितनी है, “हाल के कुछ अनुमानों के मुताबिक इस आयोजन की कुल लागत करीब दो सौ अरब डॉलर हो सकती है. और लागत के हिसाब से देखें तो यह अब तक का सबसे खर्चीला टूर्नामेंट होगा.”

वास्तविक आंकड़ा
अमेरिका की एक खेल वित्त कंसल्टेंसी फ्रंट ऑफिस स्पोर्ट्स का अनुमान है कि इसकी लागत करीब 220 अरब डॉलर होगी, जबकि कतर की खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष हसन अल तावडी कहते हैं कि जब से कतर को मेजबानी की घोषणा की गई है तब से लेकर इसके आधारभूत ढांचे के निर्माण में ही 200 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च हो चुके हैं.

लागत की इस अनिश्चितता की एक बड़ी वजह यह भी है कि कतर सरकार ने आयोजन से पहले एक बड़ी धनराशि उन चीजों पर खर्च कर दी है जिनका फुटबॉल से कोई संबंध नहीं है. मसलन, एक नया मेट्रो स्टेशन, एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, नई सड़कें, करीब सौ नए होटल और मनोरंजन की अन्य चीजों के निर्माण किए गए हैं. इनमें से ज्यादातर निवेश कतर नेशनल विजन 2030 का हिस्सा है जो कि कतर की एक महत्वाकांक्षी सार्वजनिक निवेश परियोजना है.

लिवरपूल विश्वविद्यालय में फुटबॉल फाइनेंस के विशेषज्ञ कीरेन मेगुईर कहते हैं, “कतर सरकार देश के आधारभूत ढांचे से संबंधित तमाम मुद्दों को हल करना चाहती है और विश्व कप ने सरकार के उस अभियान को गति दी है. इसने उन्हें एक केंद्र बिंदु प्रदान किया है. यही वजह है कि अन्य विश्व कप आयोजनों के मुकाबले यह बहुत ज्यादा खर्चीला हो गया है.”

प्लूमले कहते हैं कि यह एक बड़ा दांव है जिसे व्यावसायिक पहलू से देखें तो यह एक घाटे का सौदा होने जा रहा है जो गैस से समृद्ध इस देश के लिए थोड़ी चिंता की बात होनी चाहिए.

हालांकि वो कहते हैं कि कतर इसमें जो मुख्य लाभ देख रहा है, वो गैर व्यावसायिक हैं, “टूर्नामेंट के आयोजन की मुख्य वजह और प्रेरणा अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं और वैश्विक स्तर पर रक्षा और सुरक्षा रणनीति के मामले में खुद को एक सॉफ्ट पॉवर के रूप में देखना चाहता है. कतर के लिए पैसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. वो विश्व कप के आयोजन का खर्च वहन करने में सक्षम है और इससे होने वाले नुकसान को झेलने के लिए भी वो तैयार है. कई मायनों में 2022 का विश्व कप एक वित्तीय अनियमितता है.”

एक काली विरासत
यहां तक कि यदि यह एक वित्तीय अनियमितता है, तो भी कतर 2022 को पिछले विश्व कपों की तरह विरासत के सवाल से जूझना होगा. इसके पीछे विचार यही है कि भले ही चार हफ्ते के इस आयोजन पर इतना खर्च हो रहा है लेकिन देश में समाज के लिए एक सार्थक पदचिह्न छोड़ जाएगा और शायद यही सबसे बड़ा तर्क है जिसके जरिए वित्तीय अनियमितताओं को भी न्यायसंगत ठहराने की कोशिश हो रही है.

ज्यादातर विश्व कप आयोजनों में यही सबसे बड़ा संकट रहा है लेकिन कतर के मामले में कई गंभीर आशंकाएं हैं. सबसे बड़ा और अहम मुद्दा स्टेडियमों का है. कुल आठ जगहों पर मैच होने हैं जिनमें से सात जगहों पर स्टेडियम कतर 2022 के लिए बिल्कुल नए बनाए गए हैं. सरकार का कहना है कि इन सबको बनाने में करीब 6.5 अरब डॉलर का खर्च आया है. विश्व कप खत्म होने के बाद, महज 28 लाख की जनसंख्या वाले इस देश में इतने बड़े स्टेडियम की कोई जरूरत नहीं होगी.

‘सफेद हाथी’ सरीखे ऐसे स्टेडियम और अन्य चीजें हाल ही में हुए विश्व कप के दूसरे मेजबान देशों के लिए भी समस्या बने हुए हैं और कतर उस चक्र को तोड़ने का मकसद बना रहा है. इनमें से तीन स्टेडियम में विश्व कप के बाद भी खेल होते रहेंगे लेकिन बाकी पांच स्टेडियम या तो किन्हीं और स्थलों में बदल दिए जाएंगे या फिर उनकी क्षमता को कम कर दिया जाएगा.

मेगुईर मानते हैं कि इन आधारभूत ढांचों के जरिए भविष्य में यूरोपा लीग या चैंपियंस लीग जैसे यूरोपियन टूर्नामेंट्स के लिए बोली लगाने की कोशिश करेगा.

वास्तविक लागत: प्रवासी मजदूरों का जीवन
विश्व कप की लागत के सवाल ने पिछले करीब एक दशक से यहां काम कर रहे प्रवासी श्रमिकों के भविष्य के सवाल को पीछे कर दिया है. साल 2010 में जब कतर को विश्व कप की मेजबानी देने की घोषणा हुई थी, तभी से विदेशी श्रमिकों के साथ बर्ताव को लेकर कतर को मानवाधिकार संगठनों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है.

कैसा देश है कतर

साल 2016 में, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कतर पर खलीफा इंटरनेशनल स्टेडियम में बंधुआ मजदूरी के आरोप लगाए थे. कई रिपोर्ट्स कहती हैं कि साल 2010 से लेकर अब तक कतर में हजारों में प्रवासी श्रमिकों की मौत हो चुकी है. फरवरी 2021 में, द गार्डियन अखबार ने खबर दी थी कि साल 2010 से 2020 के दौरान भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के करीब 6,500 मजदूरों की कतर में मौत हुई है. मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि मरने वालों में से ज्यादातर मजदूर विश्वकप की तैयारी के लिए चल रहे कामों में लगे थे.

हाल के दिनों में कतर ने श्रम कानूनों में कुछ सुधार किए हैं और उन्हें उदार बनाया है लेकिन एमनेस्टी का कहना है कि बड़ी समस्याएं अभी भी जस की तस हैं. पिछले महीने एमनेस्टी की एक रिपोर्ट में कहा गया था, “आखिरकार, मानवाधिकारों के हनन की घटनाएं अभी भी जारी हैं.”

फीफा की फिर जीत
फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय गवर्निंग बॉडी यानी फीफा के लिए न तो मजदूरों की मौत कोई मायने रखती है और न ही इस पर खर्च होने वाली धनराशि. प्लूमले कहते हैं 2018 विश्व कप में फीफा का राजस्व अनुमान से कहीं ज्यादा था. उनके मुताबिक, “फीफा के लिए, विश्व कप महज आर्थिक लाभ का मसला है और हर चार साल पर राजस्व इकट्ठा करने का एक तरीका है ताकि वो अपनी गतिविधियों को अबाध रूप से चला सके.”

वो कहते हैं, “फीफा कतर में भी वैसी ही उम्मीद कर रहा है. किसी टूर्नामेंट का आयोजन मेजबान देश के लिए आर्थिक रूप से भले ही घाटे का सौदा हो लेकिन इसकी सफलता से फीफा को फायदा ही होगा और यही वजह है कि इसके आयोजन की लागत को लेकर उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.”

रिपोर्ट: अर्थर सुलीफान