धर्म

क़तर फुटबाल विश्व कप के दौरान सैंकड़ों विदेशी पर्यटक इस्लाम धर्म अपना चुके हैं, क़तर हुकूमत ने एक बड़ा एलान कर पूरी दुनियां को चौंकाया : रिपोर्ट

इस वक़्त अरब के देश क़तर में फुटबाल का विश्व कप चल रहा है, ये विश्व कप अब तक हुए सभी टूर्नामेंट में सबसे ज़यादा महंगा है, क़तर ने 2014 से इसकी तैयारियां शुरू कर दी थीं, इस दौरान क़तर की हुकूमत ने पानी की तरह पैसा बहाया है, पूरा देश बदल कर रख दिया है, खूबसूरत इमारतें, एयरपोर्ट, सड़कें, होटल, रिसोर्ट, पब आदि बनाये गए हैं, वहां पहुँचने वालों को एक नयी दुनियां देखने को मिल रही है

अरब के देशों में क़तर की पहचान एक अलग तरह के देश की है, न किसी से दोस्ती, न किसी से दुश्मनी के असूलों पर चलने वाला ये देश अरब ही नहीं विश्व में अपनी अहमियत रखता है, अमेरिका, रूस, चीन, यूरोप, भारत, जापान समेत सभी शक्तिशाली देशों से इसके शानदार और महत्वपूर्ण सम्बन्ध हैं, क़तर के पास दौलत के भण्डार हैं, दुनियां में इस देश की करंसी की कीमत सबसे ऊपर है, यहाँ के लोगों की आय बहुत ज़ियादा है, यहाँ की जनता के पास जीने के लिए शानदार जिंदिगी है, हर तरह के तनाव से मुक्त रहने वाली जनता के लिए क़तर की हुकूमत ने तमाम ज़रूरी सहूलतें उपलब्ध करवाई हुई हैं

 

FIFA विश्व कप के दौरान क़तर का एक रूप और सामने आया है, वेस्ट के तमाम दबावों के बावजूद इस छोटे से देश ने अपनी पॉलिसी नहीं बदली, टूर्नामेंट के दौरान जहाँ विश्व के ताक़तवर देश क़तर पर दबाव बना रहे थे कि उनके लोगों के लिए वहां शराब, औरतें, कॉल गर्ल उपलब्ध करवायी जाएँ, क़तर ने उनकी मांग को न सिर्फ खारिज कर दिया बल्कि पूरी तरह से एक साफ़-सुथरा माहौल बना कर लोगों के सामने पेश किया है, विदेशों से आने वाले पर्यटकों के लिए क़तर की सरकार के काम आकर्षित कर रहे हैं, उनकी जिस तरह की आवभगत की जा रही है उससे अभी तक सैंकड़ों विदेशी प्रभावित होकर इस्लाम धर्म अपना रहे हैं, जानकारी के मुताबिक बेल्जियम, ब्राज़ील, नीदरलैंड, इंग्लैंड, यूक्रेन, हंगरी, चेक रिपब्लिक आदि के सैंकड़ों लोगों ने इस्लाम धर्म अपना लिया है

A Qayyum Hakim
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क़तर से एक विदेशी टूरिस्ट ट्विटर पर लिखता है –
“नाक़िबले यक़ीन शाम जब मुझे एक क़तरी ने अपने घर मदऊ (इन्वाइट) किया तो उन्होंने हमारी शानदार मेहमान-नवाज़ी की! मैं इस शाम को कभी नही भूलूँगा, क़तर अवाम ने हमे बहुत खुश-आमदीद कहा .!!” 🇶🇦
मैं पहले भी लिख चुका हूँ अरब लोग बहुत ही मेहमान नवाज़ होते हैं और जितने भी मेहमान फ़ीफ़ा में आए हैं वो कभी न भूलने वाली यादों के साथ लौट कर अपने मुल्कों को जाएँगे। और जो इस्लाम उन्हें न्यूज़ चैनल पर दिखाया गया था अब तक और जो इस्लाम वो अपनी आँखों से देख जाएँगे वो इंक़लाब लेकर आएगा देखना .!!
फ़हीम कुरैशी ✍️

DhananjaySonam Ravan

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क़तर ने इतिहास रच दिया, एशिया का पहला देश जो अकेले ही विश्वकप का आयोजन करवा रहा है… मैच देखने वाले हर आम व खास मेहमानों/दर्शकों को मुश्क व ऊद जैसे महंगे इत्र, टीशर्ट, आदि जैसे गिफ्ट🎁से भरा थैला दिया!
लेकिन ये क्या?
इतने महंगे गिफ्ट पर क़तर के अमीर महामहिम शेख तमीम बिन हमद अल-थानी का तो फोटो तक नहीं है?
ये आयोजन लोकतांत्रिक सेक्युलर देश (विश्वगुरू) में होता तो नमक के पैकेट पर भी प्रधानमंत्री आदि का बड़ा बड़ा फ़ोटो होता!
FIFA World CupQatar2022

 

मुस्लिम”

एक ब्राज़ीलियन समर्थक ने लिखा- “जब ब्राज़ील और स्विट्ज़रलैंड का फ़ुटबॉल मैच ख़त्म हुआ तब वो ग्राउंड के बाहर जा रहे थे। उन्होंने देखा कि ब्राज़ील से आए जोड़े के साथ उनके दो बेटे जो उनकी गोद में सोए हुए थे। जो काफ़ी वज़नी भी थे उनको लेकर चल रहे थे। तभी उनके साथ चलते चलते एक फ़लस्तीनी झंडा ओढ़े अरबी आदमी उस जोड़े से कहता है- क्या मैं आपके बेटे को लेकर चलने में मदद कर सकता हूँ? ये सुनकर उन्होंने अपने बेटे को उसे दे दिया क्योंकि वो लोग मेट्रो स्टेशन जा रहे थे जो अभी काफ़ी दूरी पर था। वो उनके बेटे को गोद में लिये ले जा रहा था। वो कहते हैं- यह दृश्य फ़ुटबॉल मैच से भी ज़्यादह भावुक करने वाला था एक अनजान शख़्स किसी के बग़ैर कहे मदद करता है। वो कहते हैं क़तर का यह सफ़र यादगार रहेगा”


A Mexican football fan, who arrived in Qatar to support his country in FIFA World Cup 2022, has converted to Islam, in a video circulating on social media and shared by an Islamic Platform DOAM.

Tahir Najar 🍁
@Kal__Doud
Nov 28
Brazilian family converts to Islam during World Cup in Qatar

While in Doha for the FIFA World Cup Qatar 2022, a Brazilian family of six converted to Islam in a mosque.

The Brazilian family, including a father, mother, and four children (3 girls and a boy), was seen in a videos

क़तर की हुकूमत ने एक और बड़ा एलान कर पूरी दुनियां को चौंका दिया है, उसने कहा है कि फीफा कप के समय में जो आस्थाई मकान, कैंप आदि का निर्माण किया गया है, टूर्नामेंट की समाप्ति के बाद उन्हें अफ्रीका के देशों को दान किया जायेगा

 

क़तर हुकूमत लगातार बेहतरीन फ़ैसले ले रही है जिसकी जितनी तअरीफ़ की जाए कम है। अब क़तर हुकूमत ने ऐलान किया है कि क़तर में हो रहे फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप देखने आने वाले मेहमानों के लिये हुकूमत ने जो 6 हज़ार फ़ैन विलेज केबिन बनवाये हैं। वो फ़ैन विलेज केबिन फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप ख़त्म होने के बाद अफ़्रीक़ी मुल्क केन्या को दान कर दिया जाएगा। ताकि केन्या के ग़रीब बेघर लोग इसका इस्तअमाल कर सकें।


भारत के मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी

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#दारुल_उलूम_देवबन्द की आधारशिला आज के ही दिन 30 मई 1866 में हाजी आबिद हुसैन व #मौलाना_क़ासिम_नानौतवी द्वारा रखी गयी थी।
वह समय भारत के इतिहास में राजनैतिक उथल-पुथल व तनाव का समय था,

उस समय अंग्रेज़ों के विरूद्ध लड़े गये प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857 ई.) की असफलता के बादल छंट भी न पाये थे और अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति दमनचक्र तेज़ कर दिया गया था, चारों ओर हा-हा-कार मची थी। अंग्रेजों ने अपनी संपूर्ण शक्ति से स्वतंत्रता आंदोलन (1857) को कुचल कर रख दिया था। अधिकांश आंदोलनकारी शहीद कर दिये गये थे,

(देवबन्द जैसी छोटी बस्ती में 44 लोगों को फांसी पर लटका दिया गया था)
और शेष को गिरफ्तार कर लिया गया था, ऐसे सुलगते माहौल में देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानियों पर निराशाओं के प्रहार होने लगे थे। चारो ओर खलबली मची हुई थी। एक प्रश्न चिन्ह सामने था कि किस प्रकार भारत के बिखरे हुए समुदायों को एकजुट किया जाये, किस प्रकार भारतीय संस्कृति और शिक्षा जो टूटती और बिखरती जा रही थी, की सुरक्षा की जाये। उस समय के नेतृत्व में यह अहसास जागा कि भारतीय जीर्ण व खंडित समाज उस समय तक विशाल एवं ज़ालिम ब्रिटिश साम्राज्य के मुक़ाबले नहीं टिक सकता, जब तक सभी वर्गों, धर्मों व समुदायों के लोगों को देश प्रेम और देश भक्त के जल में स्नान कराकर एक सूत्र में न पिरो दिया जाये। इस कार्य के लिए न केवल कुशल व देशभक्त नेतृत्व की आवश्यकता थी, बल्कि उन लोगों व संस्थाओं की आवश्यकता थी जो धर्म व जाति से उपर उठकर देश के लिए बलिदान कर सकें।

इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जिन महान स्वतंत्रता सेनानियों व संस्थानों ने धर्मनिरपेक्षता व देशभक्ति का पाठ पढ़ाया उनमें दारुल उलूम देवबन्द के कार्यों व सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता।

स्वर्गीये #मौलाना_महमूद_हसन (विख्यात अध्यापक व संरक्षक दारुल उलूम देवबन्द) उन सैनानियों में से एक थे जिनके क़लम, ज्ञान, आचार व व्यवहार से एक बड़ा समुदाय प्रभावित था, इन्हीं विशेषताओं के कारण इन्हें शैखुल हिन्द (भारतीय विद्वान) की उपाधि से विभूषित किया गया था, उन्हों ने न केवल भारत में वरन विदेशों

(#अफ़ग़ानिस्तान, #ईरान, #तुर्की, #सऊदी अरब व #मिश्र) में जाकर भारत व ब्रिटिश साम्राज्य की निंदा की और भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों के विरूद्ध जी खोलकर अंग्रेज़ी शासक वर्ग की मुख़ालफत की।

बल्कि शेखुल हिन्द ने अफ़ग़ानिस्तान व इरान की हकूमतों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यक्रमों में सहयोग देने के लिए तैयार करने में एक विशेष भूमिका निभाई। उदाहरण: यह कि उन्होंने #अफ़ग़ानिस्तान व #इरान को इस बात पर राज़ी कर लिया कि यदि तुर्की की सेना भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध लड़ने पर तैयार हो तो ज़मीन के रास्ते #तुर्की_की_सेना को आक्रमण के लिए आने देंगे।

#शेखुल हिन्द ने अपने सुप्रिम शिष्यों व प्रभावित व्यक्तियों के मध्यम से अंग्रेज़ के विरूद्ध प्रचार आरंभ किया और हजारों मुस्लिम आंदोलनकारियों को ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल कर दिया। इनके प्रमुख शिष्य मौलाना हुसैन अहमद मदनी, मौलाना उबैदुल्ला सिंधी थे जो जीवन पर्यन्त अपने गुरू की शिक्षाआंे पर चलते रहे और अपने देशप्रेमी भावनाओं व नीतियों के कारण ही भारत के मुसलमान स्वतंत्रता सेनानियों व आंदोलनकारियों में एक भारी स्तम्भ के रूप में जाने जाते हैं।

#सन 1914 ई. में मौलाना उबैदुल्ला सिंधी ने अफ़गानिस्तान जाकर अंग्रेज़ों के विरूद्ध अभियान चलाया और काबुल में रहते हुए भारत की स्र्वप्रथम स्वंतत्र सरकार स्थापित की जिसका राष्ट्रपति #राजा_महेन्द्र_प्रताप को बना गया। यहीं पर रहकर उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस की एक शाख क़ायम की जो बाद में (1922 ई. में) मूल कांग्रेस संगठन इंडियन नेशनल कांग्रेस में विलय कर दी गयी। शेखुल हिन्द 1915 ई. में हिजाज़ (सऊदी अरब का पहला नाम था) चले गये, उन्होने वहां रहते हुए अपने साथियों द्वारा तुर्की से संपर्क बना कर सैनिक सहायता की मांग की।

#सन 1916 ई. में इसी संबंध में शेखुल हिन्द इस्तमबूल जाना चहते थे। मदीने में उस समय तुर्की का गवर्नर ग़ालिब पाशा तैनात था उसने शेखुल हिन्द को इस्तमबूल के बजाये #तुर्की जाने की लिए कहा परन्तु उसी समय तुर्की के युद्धमंत्री अनवर पाशा हिजाज़ पहुंच गये। शेखुल हिन्द ने उनसे मुलाक़ात की और अपने आंदोलन के बारे में बताया। अनवर पाशा ने भातियों के प्रति सहानुभूति प्रकट की और अंग्रेज साम्राज्य के विरूद्ध युद्ध करने की एक गुप्त योजना तैयार की।

हिजाज़ से यह गुप्त योजना, गुप्त रूप से शेखुल हिन्द ने अपने शिष्य #मौलाना_उबैदुल्ला_सिंधी को अफगानिस्तान भेजा,
मौलाना सिंधी ने इसका उत्तर एक #रेशमी_रूमाल पर लिखकर भेजा, इसी प्रकार रूमालों पर पत्र व्यवहार चलता रहा। यह गुप्त सिलसिला ”#तहरीक_ए_रेशमी_रूमाल“ के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इसके सम्बंध में सर रोलेट ने लिखा है कि “ब्रिटिश सरकार इन गतिविधियों पर हक्का बक्का थी“।

#सन 1916 ई. में अंग्रेज़ों ने किसी प्रकार शेखुल हिन्द को #मदीने में गिरफ्तार कर लिया।
#हिजाज़ से उन्हें मिश्र लाया गया और फिर भूमध्य सागर के एक टापू #मालटा (जो अब एक विकसित देश है ) में उनके साथयों #मौलाना_हुसैन_अहमद_मदनी, #मौलाना_उज़ैर_गुल #हकीम_नुसरत, #मौलाना_वहीद_अहमद सहित जेल में डाल दिया था।
इन सबको चार वर्ष की बामुशक्कत सजा दी गयी। सन 1920 में इन महान सैनानियों की रिहाई हुई।

#शेखुल हिन्द की अंग्रेजों के विरूद्ध तहरीके-रेशमी रूमाल, मौलाना मदनी की सन 1936 से सन 1945 तक जेल यात्रा, मौलाना उजै़रगुल, हकीम नुसरत, मौलाना वहीद अहमद का मालटा जेल की पीड़ा झेलना, मौलाना सिंधी की सेवायें इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण हैं कि दारुल उलूम ने स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभाई है। इस संस्था ने ऐसे अनमोल रत्न पैदा किये जिन्होंने अपनी मात्र भूमि को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राणों को दांव पर लगा दिया। ए. डब्ल्यू मायर सियर पुलिस अधीक्षक (सीआई़डी राजनैतिक) पंजाब ने अपनी रिपोर्ट नं. 122 में लिखा था जो आज भी इंडिया आफिस लंदन में सुरक्षित है कि ”मौलाना महमूद हसन (शेखुल हिन्द) जिन्हें रेशमी रूमाल पर पत्र लिखे गये, सन 1915 ई. को हिजरत करके हिजाज़ चले गये थे, रेशमी ख़तूत की साजिश में जो मौलवी सम्मिलित हैं, वह लगभग सभी देवबन्द स्कूल से संबंधित हैं।

#गुलाम_रसूल_मेहर ने अपनी पुस्तक ”सरगुज़स्त ए मुजाहिदीन“ (उर्दू) के पृष्ठ नं. 552 पर लिखा है कि ”मेरे अध्ययन और विचार का सारांश यह है कि
#हज़रत_शेखुल_हिन्द अपनी जि़न्दगी के प्रारंभ में एक रणनीति का ख़ाका तैयार कर चुके थे और इसे कार्यान्वित करने की कोशिश उन्होंने उस समय आरंभ कर दी थी जब हिन्दुस्तान के अंदर राजनीतिक गतिविधियां केवल नाममात्र थी“।

उड़ीसा के गवर्नर #श्री_बिशम्भर_नाथ_पाण्डे ने एक लेख में लिखा है कि दारुल उलूम देवबन्द भारत के स्वतंत्रता संग्राम में केंद्र बिन्दु जैसा ही था, जिसकी शाखायें दिल्ली, दीनापुर, अमरोत, कराची, खेडा और चकवाल में स्थापित थी। भारत के बाहर उत्तर पशिमी सीमा पर छोटी सी स्वतंत्र रियासत ”यागि़स्तान“ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र था, यह आंदोलन केवल मुसलमानों का न था बल्कि पंजाब के सिक्खों व बंगाल की इंकलाबी पार्टी के सदस्यों को भी इसमें शामिल किया था।

इसी प्रकार असंख्यक तथ्य ऐसे हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि दारुल उलूम देवबन्द स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात भी देश प्रेम का पाठ पढ़ता रहा है जैसे सन 1947 ई. में भारत को आज़ादी तो मिली, परन्तु साथ-साथ नफरतें आबादियों का स्थानांतरण व बंटवारा जैसे कटु अनुभव का समय भी आया, परन्तु दारुल उलूम की विचारधारा टस से मस न हुई।

इसने डट कर इन सबका विरोध किया और इंडियन नेशनल कांग्रेस के संविधान में ही अपना विश्वास व्यक्त कर पाकिस्तान का विरोध किया तथा अपने देशप्रेम व धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण दिया।

आज भी दारुल उलूम अपने देशप्रेम की विचार धारा के लिए संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है।।।..

Faizal
@FaizalMira
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Nov 28
The amount of people wanting to learn about Islam is amazing to see too. Volunteers from the Mosque are doing an amazing job, people genuinely interested to learn more and they are loving the culture. Qatar winning hearts out here! #FIFAWorldCup #Qatar2022

News24
@News24

The World Cup in Qatar reveals that Muslims and Islam are often put on trial by the West. Quraysha Ismail Sooliman reflects on two developments in South Africa and whether orchestrated effort to nurture Islamophobia in South Africa have been unsuccessful.

 

Tanzeem-e-Islami
@tanzeemorg
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Nov 26
#Russian lawmakers have legislated to ban LGBTQ in all shapes and forms. #Qatar has taken an admirable stance against glorifying LGBTQ in the ongoing FIFA world cup. It is shameful that #Pakistan, created on the basis of #Islam, has not repealed the perverse Transgender Act yet!