साहित्य

कामरेड शशि प्रकाश की ताज़ा कविता … हमारे लहूलुहान समय का एक दृश्य-चित्र!

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स्टिललाइफ़ 2023
तिपहरी उदास, सुनसान।

एकाकी उचाट आत्मा पर
ग्लानिग्रस्त गुलाब की छाया
गिरती हुई अनमनी।
पुराने बरगद की लटकती बरोहें
डोलती हुई हवा में
जिन्हें फिर से मिट्टी तक पहुँच कर
नयी जड़ें बनना था।
मनहूसी भरे आसमान में
पुच्छल तारे सी उगी एक बन्दूक।
नीचे कंसंट्रेशन कैम्प जैसी किसी
आतंककारी इमारत के परिसर का विस्तार
कँटीले तारों से घिरा हुआ।
विकट मुद्रा में एक भद्दी कुरुचिपूर्ण देवमूर्ति
और एक घण्टाघर
पागलख़ाने के कम्पाउण्ड के ऐन बीचोंबीच।
बाहर वीराने में
सड़क पर कीचड़ और ख़ून में सना
टैंक की शक्ल का एक सैनिक बूट।
रात की पीली बीमार रोशनी में
एक कर्तव्यसजग मनोगतवादी चाकू पड़ा हुआ
रंग-बिरंगे फलों के निष्प्राण शरीरों के पास
और शयन कक्ष में ज़हर का नीला प्याला।
रोज़नामचा में प्रश्नांकित प्यार की तारीख़ें।
ज़मीन पर बिखरे हुए कुछ
टाल दिये गये फ़ैसलों और भुला दिये गये
वायदों के पुराने दस्तावेज़।
स्टडी टेबल पर दार्शनिक विमर्शों की लाश
ख़ून से सनी किताबों और नोटबुकों के बीच।
अध्ययन कक्ष की रौशन खिड़कियों पर
काँपते झीने रेशमी पर्दों पर
हिलती-डुलती रहस्यमय प्रेत-छायाएँ।
बाहर काले अँधेरे में वनस्पतियों की
अदृश्य हरीतिमा।
हवा में कुछ परिचित सी आहटें और
आतंकग्रस्त शहर की गलियों में
कुछ अभय सुगबुगाहटें।
बंजर विशाल भू-भाग पर उग आये
बबूल के जंगल में जुगनू।
कहीं-कहीं सहसा कौंधती
कुछ मानवाकृतियाँ रक्ताभ।
कैनवास पर क्षितिज के कोने में
चिन्तनरत, चिन्तित,
कविता और स्मृतियों और सपनों
और विचारों से लबरेज़
अनिद्रित आँखों के तारक-पुंज।