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किरंदुल पैसेंजर…सर चिंता न करें हम इस ट्रेन को अगले स्टेशन तक पकड़ लेंगे!

लक्ष्मी कांत पाण्डेय
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किरंदुल पैसेंजर
स्टेशन पर जब टिकट लेने गए तो पता चला सिर्फ फर्स्ट क्लास में ही आरक्षण होता है और बाकी सारी ट्रेन जनरल डब्बे वाली है, खैर टिकट ले ही रहे थे तभी ट्रेन ने प्लेटफार्म छोड़ दिया. ड्राइवर चंद्रकांत ने कहा, सर चिंता न करें हम इस ट्रेन को अगले स्टेशन तक पकड़ लेंगे

दरअसल पैसेंजर ट्रेन थी और हर स्टेशन पर एक मिनट ही रूकती पर रफ़्तार बहुत ज्यादा नहीं थी इसलिए दो स्टेशन छोड़कर हम छोटे से स्टेशन अमगुडा पर पहुंचे तो ट्रेन दूर से आती हुई दिखी, इससे पहले ट्रेन को पीछे छोड़ते हुए हम तेज रफ़्तार से सड़क पर आगे बढ़ रहे थे, बरसात बंद हो चुकी थी पर सड़क पर कोई ख़ास ट्रैफिक नहीं था..यह ओडिशा का ग्रामीण अंचल है जो काफी हराभरा है, इस ट्रेन से अमूमन गरीब आदिवासी ही सफ़र करते हैं, गांव से फल सब्जी आदि लेकर वे दूसरे कस्बे तक जाते हैं, ज्यादातर के हाथ में लाठी भी नजर आ रही थी, ट्रेन के फर्स्ट क्लास में एक केबिन अपना ही हो गया क्योंकि हम चार लोग थे और चार बर्थ थी. बहुत दिन बाद ऐसे डिब्बे में बैठना हुआ जिसमें खिड़की का सीसा उठा दिया तो बाहर से भीगी हुई ताज़ी हवा आ रही थी, बरसात की वजह से मौसम सुहावना हो चुका था .थर्मस में काफी थी और दोपहर का खाना सर्किट हाउस के खानसामा नें ठीक से बांध कर रख दिया था. पराठा, सब्जी, दही और अचार मिर्च भी. कुछ देर खिड़की पर बैठने के बाद आकाश, अंबर ऊपर की बर्थ पर जाकर सो गए. सविता कोई उपन्यास पढने लगी तो मै अख़बार देखने लगा .करीब साढ़े ग्यारह पर जब जयपोर स्टेशन पहूंचे तो काफी पीने की इच्छा हुई. स्टेशन का नाम हिंदी में जयपुर लिखा था पर बोल रहे थे जयपोर. उड़िया में यही कहते होंगे. यह ट्रेन छतीसगढ़ के पहाड़ों से होते हुए पहले ओड़िसा से गुजरती है फिर आंध्र प्रदेश में समुद्र तट पर बसे अत्याधुनिक शहर विशाखापत्तनम तक जाती है. पर हमें बीच में ही अरकू घाटी में उतरना था. यह एक छोटा सा पहाड़ी सैरगाह है. कोरापुट के बाद एक छोटा सा स्टेशन आया सुकू. नीचे उतरे और छोटे से स्टेशन का जायजा लिया .

रायपुर से बस्तर तक कोई रेलगाड़ी नही जाती पर बस्तर में जो रेलगाड़ी चलती है उसका सफ़र कभी भूल नही सकते .छत्तीसगढ़ से सटा एक खूबसूरत पहाड़ी सैरगाह अरकू घाटी तेलुगू फिल्म निदेशकों की पसंदीदा लोकेशन भी है .देश में सबसे ज्यादा ऊँचाई पर चलने वाली ब्राड गेज ट्रेन का सफ़र हमने बस्तर से शुरू किया. किरंदुल विशाखापत्तनम पसेंजर सुबह दस बजने में दस मिनट पहले जगदलपुर से छूटती है. रायपुर से धमतरी होते हुए जब हम जगदलपुर के आसपास घूम कर सर्किट हाउस पहुंचे तो शाम हो चुकी थी. रात सर्किट हाउस में बिता कर सुबह ट्रेन पकडनी थी. बस्तर के अपने संवाददाता वीरेंदर मिश्र साथ थे, यह इलाका तीन राज्यों आंध्र, ओड़ीशा और छत्तीसगढ़ से घिरा है और यहाँ की संस्कृति पर भी इसका असर दिखाई पड़ता है. साल, आम, महुआ और इमली के पेड़ों से घीरें इस इलाके घने जंगलों की वजह से जमकर बरसात होती है और देखने वाली होती है..खैर बस्तर पर बाद में पहले अरकू घाटी की तरफ बढ़ें. बाग- बगीचे, जंगल, पहाड़ और समुंद्र के सम्मोहन से मै बच नही पाता हूँ,,,,आगे जनादेश पर…