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कुत्ता पालने वाले निम्न बातों को ध्यान में रखकर ही कुत्ता पालें— By-देवी सिंह तोमर

देवी सिंह तोमर
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कुत्ता पालने वाले निम्न बातों को ध्यान में
रखकर ही कुत्ता पालें—

1. जिसके घर में कुत्ता होता है उसके यहाँ देवता हविष्य (भोजन) ग्रहण नहीं करते ।

2. यदि कुत्ता घर में हो और किसी का देहांत हो जाए तो देवताओं तक पहुँचने वाली वस्तुएं देवता स्वीकार नहीं करते, अत: यह मुक्ति में बाधा हो सकता है ।

3. कुत्ते के छू जाने पर द्विजों के यज्ञोपवीत खंडित हो जाते हैं, अत: धर्मानुसार कुत्ता पालने वालों के यहाँ ब्राह्मणों को नहीं जाना चाहिए ।

4. कुत्ते के सूंघने मात्र से प्रायश्चित्त का विधान है, कुत्ता यदि हमें सूंघ ले तो हम अपवित्र हो जाते हैं ।

5. कुत्ता किसी भी वर्ण के यहाँ पालने का विधान नहीं है, कुत्ता प्रतिलोमाज वर्ण संकरों (अत्यंत नीच जाति जो कुत्ते का मांस तक खाती है) के यहाँ ही पलने योग्य है ।

6. और तो और अन्य वर्ण यदि कुत्ता पालते हैं तो वे भी उसी नीचता को प्राप्त हो जाते हैं।

7. कुत्ते की दृष्टि जिस भोजन पर पड़ जाती है वह भोजन खाने योग्य नहीं रह जाता और यही कारण है कि जहाँ कुत्ता पला हो वहाँ जाना नहीं चाहिए।

*👉 उपरोक्त सभी बातें शास्त्रीय हैं, अन्यथा ना लें,ये कपोल कल्पित बातें नहीं है।*

👉 *इस विषय पर कुतर्क करने वाला व्यक्ति यह भी स्मरण रखे कि…* कुत्ते के साथ व्यवहार के कारण तो युधिष्ठिर को भी स्वर्ग के बाहर ही रोक दिया गया था।

👉 घर में कुत्ता पालने का शास्त्रीय शंका समाधान! महाभारत में महाप्रस्थानिक/स्वर्गारोहण पर्व का अंतिम अध्याय,इंद्र ,धर्मराज और युधिष्ठिर संवाद में इस बात का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने पूछा कि मेरे साथ साथ यंहा तक आने वाले इस कुत्ते को मैं अपने साथ स्वर्ग क्यो नही ले जा सकता, तब इंद्र ने कहा—

स्वर्गे लोके श्ववतां नास्ति धिष्ण्य-
मिष्टापूर्त क्रोधवशा हरन्ति ।
ततो विचार्य क्रियतां धर्मराज
त्यज श्वानं नात्र नृशंसमस्ति ॥

👉 हे राजन कुत्ता पालने वाले के लिए स्वर्ग में स्थान नही है ! ऐसे व्यक्तियों का स्वर्ग में प्रवेश वर्जित है। कुत्ते से पालित घर मे किये गए यज्ञ,और पुण्य कर्म के फल को क्रोधवश नामक राक्षस उसका हरण कर लेते है और तो और उस घर के व्यक्ति जो कोई दान, पुण्य, स्वाध्याय, हवन और कुवा बावड़ी इत्यादि बनाने के जो भी पुण्य फल इकट्ठा होता है,वह सब घर में कुत्ते की उपस्थित और उसकी दृष्टि पड़ने मात्र से निष्फल हो जाता है इसलिए कुत्ते का घर मे पालना निषिद्ध और वर्जित है।

👉 तात्पर्य है कि घर में कुत्ता नहीं रखना चाहिये। महाभारत में आया है‒

*भिन्नभाण्डं च खट्‌वां च कुक्कुटं शुनकं तथा ।*
*अप्रशस्तानि सर्वाणि यश्च वृक्षो गृहेरुहः ॥*
*भिन्नभाण्डे कलिं प्राहुः खट्वायां तु धनक्षयः।*
*कुक्कुटे शुनके चैव हविर्नाश्नन्ति देवताः*
*वृक्षमूले ध्रुवं सत्त्वं तस्माद् वृक्ष न रोपयेत् ॥*
(महाभारत, अनु॰ १२७ । १५-१६)

अर्थ — “घरमें फूटे बर्तन, टूटी खाट, मुर्गा, कुत्ता और अश्वत्थादि वृक्ष का होना अच्छा नहीं माना गया है। फूटे बर्तन में कलियुग का वास कहा गया है। टूटी खाट रहने से धन की हानि होती है। मुर्गे और कुत्ते के रहने पर देवता उस घर में हविष्य ग्रहण नहीं करते तथा मकान के अन्दर कोई बड़ा वृक्ष(पीपल आदि) होने पर उसकी जड़ के भीतर साँप, बिच्छू आदि जन्तुओं का रहना अनिवार्य हो जाता है, इसलिये घरके भीतर पेड़ न लगाये ।”

*चाण्डालश्च वराहश्च कुक्कुट: श्वा तथैव च।*
*रजस्वला च षण्टश्च नेरनश्तो द्विजान् ॥ २*
*होमे प्रदाने भोज्ये च यदेभिरभिवीक्ष्यते।*
*दैवे कर्मणि पित्र्ये वा तद्गच्छत्ययथातथम् ॥*

अर्थ — श्राद्ध करनेवालेको ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये कि जिसमें भोजन करते हुए ब्राह्मणोंको चाण्डाल, सूअर, मुर्गा, कुत्ता, रजस्वला स्त्री अथवा नपुंसक नहीं देखसकें; क्योंकि देव अथवा पितरोंके कार्य में होम, दान, भोजन, आदि जो कुछ इनसे देखा जाता है वह निष्फल होता है

*घ्राणेन सूकरो हन्ति पक्षवातेन कुक्कुट:*
*श्वा तु दृष्टिनिपातेन स्पर्शनावरवर्णजः ||*

अर्थ — सूअरके सूंघनेसे, मुर्गेके पांखकी हवासे, कुत्तेके देखने से और नीचजातिके छूनेसे श्राद्धादिके अन्नका फल नष्ट होता है ||
👉 कुत्ता महा अशुद्ध, अपवित्र होता है। उसके खान-पान से, स्पर्श से, उसके जगह-जगह बैठने से गृहस्थ के खान-पान में, रहन-सहन में अशुद्धि, अपवित्रता आती है और अपवित्रता का फल भी अपवित्र (नरक आदि) ही होता है।
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*कुत्ते का संरक्षण होना चाहिए ,उसे भोजन देना चाहिए, घर की रोज की एक रोटी पे कुत्ते का अधिकार है इस पशु को कभी प्रताड़ित नही करना चाहिए और दूर से ही इसकी सेवा करनी चाहिए परंतु घर के बाहर,घर के अंदर नही। यह शास्त्र मत है।*

👉 घर के अंदर नहीं कुत्ता,कौवा,चींटी तो घर के बाहर,ही फलदाई होते है। यह लेख शास्त्र और धर्मावलंबियों के लिए है। आधुनिक विचारधारा के लोग इससे सहमत या असहमत होने के लिए बाध्य नहीं है ।

👉 गाय, बूढ़े मातापिता,क्रमशः दिल, घर,शहर से निकलते हुए।गौशालाओं व वृद्धाश्रम में पहुंच गए और कुत्ते, घर के बाहर से घर, सोफे, बिस्तर से होते हुए दिल मे पहुंच गए,यही सांस्कृतिक पतन हैं।

*नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव*