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कैथल, पशुओं में फैली लम्पी स्किन बीमारी नहीं है लाईलाज, पैनिक होने की आवश्यकता नहीं है – डीसी डॉ. संगीता तेतरवाल

Ravi Press
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कैथल, 20 अगस्त ( ) उपायुक्त डॉ. संगीता तेतरवाल ने कहा कि पशुओं में फैलने वाली लम्पी स्किन बीमारी लाईलाज नहीं है। पशुपालकों को इस बीमारी से घबराना नहीं चाएिह। बीमारी के लक्षण आने पर तुरंत पशु चिकित्सक से परामर्श लेकर सावधानिया बरतें। लम्पी स्किन बीमारी का ईलाज संभव है तथा कुछ सावधानियां बरतकर पशुओं को इस बीमारी से बचाया जा सकता है। बीमार पशुओं को दूसरे जिलों एवं अन्य राज्यों में ना लेकर जाएं।

डीसी डॉ. संगीता तेतरवाल लघु सचिवाल स्थित कॉन्फ्रेंस रूम में संबंधित अधिकारियों को निर्देश दे रही थी। इससे पहले हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने विडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से समीक्षा बैठक ली। उपायुक्त ने एनिमल हजबैंडरी विभाग के एसडीओ कुलदीप सिंह को निर्देश दिए कि वे टीम बनाकर गांवों का दौरा करें और बीमारी के रोकथाम हेतू प्रबंध करें तथा गांवों में जाकर पशुपालकों को लम्पी त्वचा रोग के बचाव व ईलाज के बारे में जागरूक करें। अपने अधीनस्थ क्षेत्र में विशेषकर गऊशालाओं में शत प्रतिशत गोवंश को टीकाकरण करवाना सुनिश्चित करें।

उन्होंने कहा कि पशुओं में लम्पी स्किन बीमारी के लक्षण आने पर पशुपालकों को सावधानी पूर्वक पशु की देखभाल करने की जरूरत है। पशुपालक को पशु के बीमार होने के कारण पैनिक होने की जरूरत नही हैं। बीमार पशु को अन्य पशुओं से तुरंत अलग कर दें तथा तुरंत डॉक्टर को बुलाएं और उच्चाधिकारियों को बीमारी की सूचना दें। बीमार पशु के लिए अलग से खाने-पीने की व्यवस्था करें तथा बीमार पशु को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। बीमार पशु का झूठा चारा अन्य पशुओं को ना दें इससे संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है। पशुओं के आस-पास सफाई रखें तथा कीटनाशकों का स्प्रे करें, जिससे पशुओं को मच्छर मक्खी न काटें।

लम्पी बीमारी की लक्षण
डीसी डॉ. संगीता तेतरवाल ने बताया कि लम्पी स्किन बीमारी से पशुओं को तेज बुखार आ जाता है और दुधारू पशु दूध देना कम कर देते है। बुखार, लार, आंख व नाक से पानी आना तथा पशु का वजन भी कम होने लगता है। लम्पी त्वचा रोग में शरीर पर 2 से 5 सेंटीमीटर व्यास की गांठे बन जाती है।

पशु की मृत्यु होने पर
डीसी डॉ. संगीता तेतरवाल ने बताया कि लम्पी त्वचा रोग से अगर किसी बीमार पशु की मृत्यु हो जाती है, तो उस पशु को 8 फीट गहरे गड्ढे में दफना दें। बीमारी से मृत्यु होने पर पशुओं की खाल को ना उतारें और त्वचा को उपयोग में ना लाएं।