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कैसे झुका तुर्की….पुतिन का बदला रुख़, अब क्या होगा आगे : रिपोर्ट

 

नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था. इसे बनाने वाले अमेरिका, कनाडा और अन्य पश्चिमी देश थे. इसे इन्होंने सोवियत यूनियन से सुरक्षा के लिए बनाया था.

तब दुनिया दो ध्रुवीय थी. एक महाशक्ति अमेरिका था और दूसरा सोवियत यूनियन. 1991 में सोवियत यूनियन बिखर गया और अब उसकी विरासत की यादों के साथ रूस है.

रूस नेटो से चिढ़ता है. रूस का कहना है कि नेटो डिफेंसिव नहीं ऑफेंसिव संगठन है. यानी रूस नेटो को अपनी रक्षा करने वाला संगठन नहीं दूसरों पर हमला करने वाला संगठन मानता है. हालांकि शुरुआती रिपोर्ट बताती है कि पुतिन सत्ता में आने के बाद से ही नेटो विरोधी नहीं थे. बल्कि शुरू में वो ख़ुद भी नेटो में शामिल होना चाहते थे.

जॉर्ज रॉबर्टसन ब्रिटेन के पूर्व रक्षा मंत्री हैं और वह 1999 से 2003 के बीच नेटो के महासचिव थे. उन्होंने पिछले साल नवंबर महीने में कहा था कि पुतिन रूस को शुरुआत में नेटो में शामिल करना चाहते थे लेकिन वह इसमें शामिल होने की सामान्य प्रक्रिया को नहीं अपनाना चाहते थे.

जॉर्ज रॉबर्टसन ने कहा था, ”पुतिन समृद्ध, स्थिर और संपन्न पश्चिम का हिस्सा बनना चाहते थे.”

पुतिन का बदला रुख़
पुतिन 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने थे. जॉर्ज रॉबर्टसन ने पुतिन से शुरुआती मुलाक़ात को याद करते हुए बताया है, ”पुतिन ने कहा- आप हमें नेटो में शामिल होने के लिए कब आमंत्रित करने जा रहे हैं? मैंने जवाब में कहा- हम नेटो में शामिल होने के लिए लोगों को बुलाते नहीं हैं. जो इसमें शामिल होना चाहते हैं, वे आवेदन करते हैं. इसके जवाब में पुतिन ने कहा- मैं उन देशों में नहीं हूँ कि इसमें शामिल होने के लिए आवेदन करूं.”

अब वही पुतिन नेटो को लेकर इतने आक्रामक हैं कि यूक्रेन पर हमला करने के पीछे नेटो से बढ़ती क़रीबी को बड़ी वजह के तौर पर देखा जाता है. पुतिन को लगता है कि यूक्रेन नेटो में शामिल हो गया तो अमेरिका की सैन्य मौजूदगी बिल्कुल उसके पास हो जाएगी और यह रूस की सुरक्षा के लिए ख़तरा होगा.

यूक्रेन को नेटो में शामिल करने पर अभी कोई फ़ैसला नहीं हो पाया है लेकिन फ़िनलैंड और स्वीडन नेटो में औपचारिक रूप से शामिल होने जा रहे हैं. इसे लेकर तुर्की तैयार नहीं था. तुर्की वीटो का इस्तेमाल कर रहा था लेकिन अब वह भी तैयार हो गया है.

इसका मतलब यह हुआ कि नॉर्डिक देश अब नेटो में शामिल होने जा रहे हैं. ऐसा यूक्रेन पर रूस के हमले के चार महीने होने के भीतर ही होने जा रहा है. फिनलैंड और स्वीडन के नेटो में शामिल होने के फ़ैसले को ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि अब तक वे गुटनिरपेक्ष नीति पर चल रहे थे.

स्वीडन और फ़िनलैंड के नेटो में जाने पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बुधवार को चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि अगर नेटो ने फ़िनलैंड और स्वीडन में कोई भी सैन्य ठिकाना बनाया तो क़रारा जवाब मिलेगा. तुर्कमेनिस्तान में एक न्यूज़ कॉन्फ़्रेंस के दौरान पुतिन ने कहा, ”यूक्रेन की हमें स्वीडन और फिनलैंड से समस्या नहीं है. दोनों के साथ सीमा को लेकर कोई विवाद नहीं है. अगर दोनों देश नेटो में जाना चाहते हैं तो मुझे कोई समस्या नहीं है. लेकिन कोई भी सैन्य ठिकाना बनेगा तो रूस जवाब देगा.”

स्वीडन और फिनलैंड नेटो में तभी शामिल हो सकते थे जब कोई भी सदस्य विरोध नहीं करता. स्वीडन और फ़िनलैंड को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन कह रहे थे कि दोनों देशों उनकी सरकार के ख़िलाफ़ आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और इसे रोकना होगा.

फ़िनलैंड और स्वीडन ने तुर्की पर हथियारों को लेकर प्रतिबंध लगा रखा था. तुर्की का आरोप रहा है कि दोनों देश कुर्द अलगाववादियों का समर्थन करते हैं. तुर्की इन्हें आतंकवादी मानता है. अब दोनों देश प्रतिबंध हटाने पर तैयार हो गए हैं और संदिग्ध कुर्द लड़ाकों का प्रत्यर्पण भी हो सकेगा. तुर्की में 1.4 करोड़ कुर्द हैं.

इन्हें दुनिया का सबसे बड़ा वैसा जातीय समूह माना जाता है, जिनका अपना कोई देश नहीं है. तुर्की, इराक़, ईरान और सीरिया में इनकी आबादी मिला दें तो कुल तीन करोड़ हो जाती है. तुर्की के आधुनिक इतिहास में कुर्दों ने काफ़ी उत्पीड़न झेला है. तुर्की में सबसे बड़ा कुर्दिश अलगाववादी समूह पीकेके या कुर्दिश वर्कर्स पार्टी है. 1980 के दशक से ही तुर्की सरकार से ये लड़ रहे हैं.

तुर्की के नेटो में शामिल होने की कहानी
दूसरे विश्व युद्ध से निकलने के बाद नेटो का गठन यूरोप के 10 देशों के साथ मिलकर कनाडा और अमेरिका ने किया था. नेटो का गठन कम्युनिस्ट शासन वाले सोवियत यूनियन से बचाव के लिए किया गया था. 1399 में स्थापित ऑटोमन साम्राज्य का पहले विश्व युद्ध के साथ ही 1923 में अंत हो गया और आधुनिक तुर्की बना.

आधुनिक तुर्की की भौगोलिक स्थिति रणनीतिक रूप से काफ़ी अहम है. तुर्की यूरोप, एशिया, मध्य-पूर्व और कैस्पियन सागर से सीधा जुड़ा है. इसके अलावा उत्तर में काला सागर और दक्षिण में भूमध्यसागर के बीच तुर्की को सैंडविच कहा जाता है. तुर्की की जो यह भौगोलिक स्थिति है, उससे वह ख़ुद को सशक्त और मुश्किल दोनों में पाता है.

तुर्की अपनी सुरक्षा को लेकर शुरू से ही अधीर रहा है. 1950 में तुर्की ने उत्तर कोरिया के दक्षिण कोरिया पर हमले की कोशिश को रोकने के लिए अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र समर्थन में सैनिक भेजा था. तुर्की के इस रुख़ की पश्चिम में प्रशंसा हुई थी.

1952 में तुर्की नेटो में शामिल हो गया. तुर्की को लगा था कि उसे पश्चिमी देशों वाली पहचान मिलेगी और सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी. लेकिन तुर्की अभी नेटो की नीतियों की मुखालफत कर रहा है. वह रूस के क़रीब है और पुतिन सरकार के ख़िलाफ़ अमेरिका की अगुआई वाले प्रतिबंधों में शामिल नहीं हो रहा है. 2003 में अर्दोआन तुर्की के प्रधानमंत्री बने थे और तब से सत्ता में हैं. अर्दोआन के शासनकाल में तुर्की की नेटो को लेकर नीतियां बदली हैं.

तुर्की कैसे झुका?
सबसे हाल में तुर्की का रुख़ नेटो में स्वीडन और फ़िनलैंड को लेकर सबसे अलग रहा. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से नॉर्डिक देश भी डरे हुए बताए जाते हैं. फ़िनलैंड की 1287.48 किलोमीटर सीमा रूस से लगी है. स्वीडन और फ़िनलैंड ने दशकों पुरानी गुटनिरपेक्ष रहने की नीति बदल दी है और नेटो में जाने का फ़ैसला किया है. दोनों देश नेटो के 31वें और 32वें सदस्य होंगे.

तुर्की के बारे में कहा जा रहा है कि वह स्वीडन और फ़िनलैंड का विरोध इसलिए कर रहा था ताकि अमेरिका से कुछ मामलों में छूट मिल जाए. अमेरिका तुर्की से कई मामलों में नाराज़ है. ख़ास कर सीरिया, रूस, कुर्द और मानवाधिकारों को लेकर. मंगलवार को बाइडन प्रशासन कहा कि तुर्की को इस मामले किसी भी तरह की छूट देने से इनकार कर दिया है.

वॉशिंगटन के थिंक टैंक सेंटर फोर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में तुर्की प्रोजेक्ट के निदेशक बुलेंट अलीरिज़ा ने लॉस एंजिलिस टाइम्स से कहा, ”अर्दोआन चाहते हैं कि बाइडन के साथ रिश्ते ठीक करें. अर्दोआन का अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बहुत अच्छे रिश्ते थे. 2019 में अर्दोआन का व्हाइट हाउस में स्वागत करते हुए ट्रंप ने कहा था कि वह उनके बड़े प्रशंसक हैं. दूसरी तरफ़ बाइडन ने एक-दो बार अर्दोआन से फ़ोन पर बात की है.”

मध्य और पूर्वी यूरोप में रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लातविया, इस्टोनिया और लिथुआनिया भी 2004 में नेटो में शामिल हो गए थे. क्रोएशिया और अल्बानिया भी 2009 में शामिल हो गए. जॉर्जिया और यूक्रेन को भी 2008 में सदस्यता मिलने वाली थी लेकिन दोनों अब भी बाहर हैं.