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कोई भी व्यक्ति अपना सरनेम बदलने का हकदार है : उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि कोई भी व्यक्ति अपना सरनेम बदलने का हकदार है ताकि किसी जाति विशेष के साथ उसकी पहचान न हो जो किसी तरह के पूर्वाग्रह का कारण बन सकता है।

अदालत ने कहा कि संविधान सभी को सम्मान के साथ जीने और जातिवाद से बंधे न रहने का अधिकार देता है।

उच्च न्यायालय केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड “सीबीएसई” द्वारा कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं के बोर्ड प्रमाणपत्रों पर अपने पिता का सरनेम बदलने से इनकार करने के ख़िलाफ दो भाइयों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

उन्होंने अदालत को बताया कि उनके पिता ने अपना सरनेम ‘मोची’ से बदलकर ‘नायक’ कर लिया था क्योंकि उनके सरनेम के आधार पर उनको रोज़ाना जातिगत दुराग्रहों का सामना करना पड़ रहा था।

उन्होंने जोड़ा कि इसके लिए पिता ने अपना सरनेम बदलने के बारे में अख़बार में एक नोट प्रकाशित करवाया था और इसे बाद में राजपत्रित अधिसूचना के माध्यम से अधिसूचित किया गया, इसके बाद आधार कार्ड, पैन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे सभी दस्तावेजों में भी उनका सरनेम ‘नायक’ दिखाने के लिए संशोधन किया गया।

उनके बेटों ने सीबीएसई के बोर्ड प्रमाणपत्रों में पिता का सरनेम बदलने के लिए आवेदन किया था. लेकिन सीबीएसई ने आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

सीबीएसई ने उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के सरनेम में परिवर्तन से ‘याचिकाकर्ताओं की जाति में परिवर्तन होगा, जिसका दुरुपयोग किया जा सकता है।

जस्टिस मिनी पुष्करणा ने 19 मई को पारित एक आदेश में कहा कि सीबीएसई द्वारा नाम बदलने के अनुरोध को अस्वीकार करना पूरी तरह से अनुचित है।

न्यायाधीश ने कहा कि यदि सरकारी एजेंसियों द्वारा जारी किए गए सार्वजनिक दस्तावेजों में सरनेम में परिवर्तन किया गया है, तो 10वीं और 12वीं के सीबीएसई प्रमाणपत्रों में समान परिवर्तन की अनुमति न देने का कोई औचित्य नहीं है