कोरिया का इतिहास खूब उथल-पुथल भरा रहा है, जाहिर-सी बात है, उसका सिने-इतिहास भी इससे प्रभावित हुआ है। वैसे कोरिया में पहला मोशन पिक्चर स्टूडियो 1903 में ही खुल गया था और पहली पब्लिक स्क्रीनिंग भी हुई थी, जिसके बारे में अलग-अलग तिथियां मिलती हैं। वैसे सियोल में 1907 में डेन्सेओन्ग-सा थियेटर खुला।
कोरिया की पहली मूक फिल्म का नाम ‘प्लाइटेड लव अंडर द मून’ था और इसका निर्देशन यन बीकनाम ने 1923 यानी आज से सौ साल पहले किया था। ‘चुन्ह्यन्ग-जेओन’ वहां की पहली सवाक फिल्म थी, इसके निर्देशक ली म्युन्ग-वू थे। 1945 में जब जापान ने घुटने टेक दिए तो कोरिया स्वतंत्र हुआ, मगर शीघ्र दो हिस्सों में बंट गया।
1949 में हॉन्ग सेओन्ग-गी ने ‘द वूमेन’स डायरी’ नामक पहली रंगीन फिल्म बनाई। एक साल बाद कोरिया प्रायद्वीप में युद्ध प्रारंभ हो गया. जो तीन साल चला। छ: साल बाद ‘मैडम फ्रीडम’ फिल्म बनी जो बॉक्सऑफिस पर खूब सफल रही।
1960 में कोरिया में राजनैतिक परिवर्तन के कारण पूरा समाज बदल गया, सिनेमा भी उसमें शामिल रहा। अप्रैल में क्रांति हुई पर अगले महीने मई में सैनिक तख्ता पलट हुआ, जिसने वहां के समाज को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। 1962 में कोरिया की फिल्म के बचाव एवं निर्देशन के प्रयास के लिए एक कानून बना लेकिन उसी समय कठोर स्क्रीनिंग के कठोर नियंत्रण की व्यवस्था हुई।
फिल्म से प्राप्त होने वाले रेवन्यू को तय कर दिया गया और यह नियम अस्सी के दशक तक चलता रहा। नतीजन फिल्म बनाने वालों की स्वतंत्रता बाधित हुई फिर भी इस काल में विभिन्न थीम पर फिल्में बनीं। मुख्य रूप से इस समय कोरिया में ड्रामा, कॉमेडी अथवा रोमांस के विषय पर फिल्में बनीं। इसी समय साहित्य पर आधारित कुछ फिल्में तथा कम्युनिस्ट विरोधी फिल्में भी बनीं।
युवाओं को तलवारबाजी की फिल्में अच्छी लगती और ऐसी फिल्मों के लिए सरकार से भी आसानी से अनुमति मिल जाती। फिर भी युवाओं का एक बड़ा तबका विदेशी फिल्में देखना पसंद करता। उम्रदराज लोग अपने देश में बनी फिल्में देखना पसंद करते।
फिल्म ‘द हाउसमेड’ ने दर्शकों का जीता दिल
1960 में ही कोरिया से एक फिल्म बनी जिसकी पूरे विश्व में चर्चा हुई। निर्देशक किम की-यंग ने ‘द हाउसमेड’ बनाई, उन्होंने ही इसका स्क्रीनप्ले भी तैयार किया। करीब दो घंटे की इस फिल्म में एक कम्पोजर और उसकी पत्नी का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, जब एक हाउसमेड उनके जीवन में प्रवेश करती है। पति अपनी पत्नी के लिए एक दुमंजिला घर खरीदता है और घर के कामकाज के लिए एक सहायिका रखता है। यह सहायिका बहुत चालाक है और पति को अपने जाल में फंसाती है।
नतीजा होता है उसका गर्भवती होना। वह पति-पत्नी को बदनामी का भय दिखा कर उनके ही घर में उन्हें कैदियों की भांति रखती है और उन पर खूब हुक्म चलाती है। जिन क्यु किम, जेउन्ग-निओ जु तथा एउन-सिम ली द्वारा अभिनीत यह फिल्म शुरू से दर्शक को अपनी गिरफ्त में ले लेती है। ‘हाउसमेड’ नाम से ही कोरिया में 2010 तथा 2016 में भी फिल्म बनी, जिनकी कहानी कमोवेश वही रही।
1965 में कोरिया में टीवी आने से फिल्मों को नुकसान हुआ, उसके दर्शकों की संख्या घट गई। फिर 1973 में कोरियन मोशन पिक्चर प्रमोशन कॉरपोरेशन की स्थापना हुई और एक साल बाद कोरियन फिल्म आर्काइव बना। अस्सी के दशक में कोरिया की फिल्मों के फिर से अच्छे दिन आने लगे क्योंकि देश में तनिक शांति हुई। कई नए निर्देशक इस क्षेत्र में उतरे। इसी समय कई विदेशी फिल्म कम्पनी कोरिया आने लगीं।
20th सेंचुरी स्टूडियो, वार्नर बदर्स ने कोरिया में अपने पैर जमाए। कोरिया की फिल्मों को इनसे कड़ी प्रतियोगिता करनी पड़ी। लेकिन नब्बे के दशक में कई युवा निर्देशन के क्षेत्र में उतरे और कोरिया ने अपनी फिल्मों द्वारा विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। 1996 में बुसान फिल्म समारोह ने अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को आकर्षित किया। 1997 में स्क्रीनिंग मापन सिस्टम की स्थापना हुई।
नई सदी कोरिया फिल्म उद्योग के लिए नए आकाश को लेकर आई। कोरिया की फिल्में विश्व में सम्मान पाने लगीं। 1999 में बनी कैन्ग जी-ग्यु निर्देशित फिल्म ‘शिरी’ बॉक्स ऑफिस पर सफल होने वाली इस दौर की पहली फिल्म बनी। 66 पुरस्कार जीतने वाले दक्षिण कोरिया के सिने-निर्देशक, स्क्रीनप्लेराइटर, प्रड्यूसर किम की-डुक (1960-2020) के बिना कोरिया का सिने-इतिहास पूरा नहीं हो सकता है।
कुछ लोग किम की-डुक को सनकी मानते हैं मगर उन्होंने सिनेमा में खूब प्रयोग किए। उन्होंने ‘क्रोकोडाइल’, ‘वाइल्ड एनीमल्स’, ‘बर्डकेज इन’, ‘रीयल फिक्शन’, ‘एड्रेस अननॉन’ तथा ‘स्प्रिंग, समर, फॉल, विंटर…एंड स्प्रिंग’ जैसी तमाम प्रयोगात्मक फिल्में बनाई।
आज विश्व खोज-खोज कर कोरिया की फिल्में देखना चाहता है क्योंकि आज वहां की फिल्में अपने कथानक और शैली में विशिष्ट होती हैं। बॉन्ग जून-हो निर्देशित, ऑस्कर विजेता फिल्म ‘पैरासाइट’ (2019) अमीर और गरीब आबादी की एक-दूसरे पर निर्भरता को दिखाती है। दोनों एक-दूसरे का शोषण कर जीवित रहते हैं, दोनों वर्ग लालची हैं।
ट्रेन टु बुसान दि राखेको रैछ अन्तिम सिन हेर्नुस् । pic.twitter.com/KgX6Jl27PQ
— POSHRAJ (@sanuwa_) August 19, 2020