इतिहास

क्रांतिकारियों की प्रेरणास्तोत्र-आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह की बेगम, महान स्वतंत्रता सेनानी बेगम ज़ीनत महल!

Ataulla Pathan
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17 जुलै यौमे वफात(पुण्यतिथी)
क्रांतिकारियों की प्रेरणास्तोत्र- महान स्वतंत्रता सेनानी बेगम जीनत महल
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बेगम जीनत महल दिल्ली के सबसे आखिरी बादशाह बहादुर शाह की बेगम हैं। बेगम ज़ीनत महल इस संघर्ष की महारानी बनीं क्योंकि 1857 के क्रांतिकारियों ने उन्हें दिल्ली के सम्राट के रूप में विराजमान किया था।

समय-समय पर सम्राट के नाम के जाहीरनामे निकालकर क्रांति के तत्वज्ञान को जनता के बीच फैलाया जा सका था। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि संघर्ष में शामिल होने के बाद दिल्ली में लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए क्रांतिकारी समाचार पत्र शुरू किए गए और सम्राट के नाम से कई विज्ञापन प्रकाशित किए गए। ये विज्ञापन पूरे देश में सहस्राब्दी के लिए वितरित किए गए थे। इसके अलावा सैकड़ों पत्र सम्राट के नाम से लिखे गए। यह एक आम धारणा है कि ये सभी जाहीरनामे और ये पत्र बेगम ज़ीनत महल की कुशल कलम द्वारा निर्मित किए गए थे। इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि पूरे देश में युद्ध की आग भड़क उठी। 1857 के संघर्ष के शुरुआती दौर में और फिर दिल्ली के संघर्ष के दौरान बेगम जीनत महल क्रांतिकारियों की प्रेरणा बनीं। तब तक बेगम जीनतमहल द्वारा सम्राट के नाम से जारी की गई घोषणाओं को शिलालेखों से देखा जा सकता है।


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इन विज्ञापनों की भाषा कैसे उत्तेजक थी और उनमें अपील कैसे भावुकता पूर्ण थी, इसके कुछ उदाहरण देना अनुचित नहीं होगा। उदाहरण के लिए
★ “हिंदुस्थान के हिंदू और मुसलमानो उठ जाओ! भाइयो, जागो !! स्वतंत्रता सबसे कीमती धन है जो उपरवाले ने हमें दिया है। आपकी प्रजा की वीरता से अंग्रेजों को शीघ्र ही ऐसा प्रचंड झटका लगेगा कि उनका नाम और निशान हमारे देश से मिट जायेगा।

हमारी सेना में बड़े और छोटे की अवधारणा गायब हो जाएगी। सभी के साथ समान व्यवहार किया जाएगा। क्योंकि इस पवित्र युद्ध में जितने लोग अपने देश धर्म की रक्षा के लिए तलवार उठाएंगे, वे सभी सफलताओं में समान भागीदार होंगे। “मैं अपने करोडो करोड हिंदी भाइयों से कहता हूं, उठो! और ईश्वर द्वारा नियुक्त इस सर्वोच्च कर्तव्य को करने के लिए इन क्षेत्रों में कूदो”!

बेगम जीनत महल ने बहादुरशाह के नाम से एक पत्र लिखकर जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, ग्वालियर, अलवर आदि के नरेश को भेजा और उनसे क्रांति का नेतृत्व करने के लिए आगे आने का अनुरोध किया।

🟪 इस पत्र का निम्नलिखित अंश देखें
“मेरी हार्दिक इच्छा है कि फिरंगी को किसी भी तरह से और किसी भी आवश्यक बलिदान द्वारा भारत से बाहर निकाला जाए। मेरी एकमात्र प्रबल इच्छा है कि पूरा भारत स्वतंत्र हो जाए। यदि इसे सफल होना है, तो इसे एक चीज की जरूरत है। जब तक कोई ऐसा व्यक्ति सामने नहीं आता जो संघर्ष का सारा भार अपने सिर पर ले सकता है, और जो देशों की सभी ताकतों को संगठित कर सकता है, और संघर्ष का नेतृत्व संभालने के लिए उनका व्यवस्थित रूप से उपयोग कर सकता है। , तब तक सफलता कठिन है। अंग्रेजों के खदेड़ने के बाद मुझे अपने स्वार्थ के लिए भारत पर शासन करने की कोई इच्छा नहीं है। यदि आप भारतीय नरेश, दुश्मन को भगाने के उद्देश्य से अपनी तलवार खींचने के लिए तैयार हैं, तो मैं सम्राट की उपाधि उसे सौंपता हूं, किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को आप इस संघर्ष के लिए अपने नेता के रूप में चुन सकते हैं। मै सभी अधिकारों और हक को समर्पण करने के लिए तैयार हु।

🟥 ‘नेटिव नैरेटिव्स’ में मेटकाफ ने भी कहा हैं. पं. सुंदरलाल कहते हैं – “1857 में यह स्पष्ट हो गया कि बेगम जीतनमहल की योग्यता और संगठनात्मक शक्ति दोनों असाधारण थीं। लेकिन उनकी सबसे महत्वपूर्ण और अद्वितीय उपलब्धि, जैसा कि आरंभ में जैसा कहा गया है, 1857 च्या संघर्ष में बहादुर शाह का नेतृत्व, संघर्ष के नैतिक मूल्यों का आविष्कार करना, इसे एक उदात्त और व्यापक दार्शनिक आधार देना, इसके लिए जन भावना को जगाना और यह सुनिश्चित करना है कि संघर्ष के पीछे जोश और ताकत बनी रहेगी यह थी।

दिल्ली के पतन के बाद, बहादुर शाह के साथ, उन्हें भी अंग्रेजों के कारावास और निर्वासन का सामना करना पड़ा और यहीं पर इस महान महिला का महान इतिहास समाप्त हुआ।

बेगम ज़ीनत महल ने अपना शेष जीवन सम्राट बहादुर शाह के साथ रंगून में ब्रिटिश कैद में बिताया। 17 जुलै 1886 को इनका रंगून मे ही निधन हुवा।
देश सदैव आपका ऋणी रहेगा

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संदर्भ : 1857 च्या वीर महिला – : श्री. हरिहर वामन देशपांडे
2)स्वतंत्रता लढ्यातील मुस्लिमांचे योगदान-
– सोमनाथ रामचंद्र देशकर

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अनुवादक तथा संकलक लेखक – अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर,टूनकी,संग्रामपुर, बुलढाणा महाराष्ट्र
9423338726