साहित्य

ख़मोश रहने पा मजबूर कर दिया तू ने…..By – मुख़्तार तिलहरी सकलैनी बरेली

Mukhtar Tilhari Saqlaini Bareilly
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दिया है ऐसा मुझे दर्स ए तज़किया तू ने
ख़मोश रहने पा मजबूर कर दिया तू ने
ये मर्तबा कोई ऐसे ही ले लिया तू ने
सुकून अपना ज़माने को दे दिया तू ने
ख़ुदा का ख़ास बना कर दिखा दिया तू ने
वो की हैं ख़ास इबादात ए बेरिया तू ने
करे गी क्या ही भला तारतार यह दुनिया
हमारे दामन ए इसयां को जब सिया तू ने
भटकते फिरते न जाने कहां-कहां हम लोग
बुला के दर पा अता कर दिया ठिया तू ने
जो ख़ुदको भी नहीं पहचानते थे उनको भी
करा दिया है शनासा ए किबरिया तू ने
हमारी सम्त भी कर दे ज़रा निगाहे करम
न जाने कितनों को अनमोल कर दिया तू ने
ज़मीन वालों को फ़ैज़ान बांटने के लिए
सफ़र किए हैं बहुत से फ़ज़ाइया तू ने
कोई भी तीरगी मुख़्तार का करेगी क्या?
हमारे सीने को बख़्शी है जब ज़िया तू ने