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गांधी के हत्यारों के पास इतिहास, राजनीति, दर्शन तथा संस्कृति का अपना क़ारखाना है जिसके उत्पाद निराले हैं!

जनरल नरभक्षी 🏹
@GDnarbhakshi
गांधी मर्म
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मजबूरी में गांधी का नाम लेने, लेकिन मन ही मन उनसे कुढ़ने, तथा उनकी हत्या पर खुश होने वालों की पहचान ऐसे तो जगजाहिर है, लेकिन उनका एक चिन्ह कल 2 अक्टूबर को खुल कर प्रकट होगा। वे गांधी का उल्लेख न करते हुए जानबूझ कर लाल बहादुर शास्त्री जी को जन्मदिन की बढ़ चढ़ कर श्लाघा करेंगे।

कुछ तो यह कहने तक की बेशर्मी करेंगे, कि गांधी के चक्कर मे शास्त्री जी को बिसार दिया जाता है। जबकि उन्हें भी बखूबी पता है कि लालबहादुर शास्त्री गांधी के ही खेत की मूली हैं। लेकिन चूंकि शास्त्री से उनको सिर्फ चोट लगती है, जबकि गांधी से उनकी कमर टूट जाती है।

जिस तरह आज़म खां से सीधे नाक कटती है, जबकि ओवैसी से हल्का डेंट पड़ता है, जो रेपेयरेबल है। इसी तरह वे जवाहरलाल नेहरू के बरक्स कभी पटेल, कभी भगत सिंह तो कभी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को सुविधानुसार ला खड़ा करते हैं।

यह सर्व विदित है कि गांधी हत्या के बाद पटेल ने संघ को एक ज़हरीला संगठन बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। नेहरू को लोकतंत्र का अजीर्ण था, इसलिए उन्होंने यह प्रतिबन्ध हटवाया। भगत सिंह यदि अंग्रेज़ों की फांसी से बचे होते, तो गांधी के हत्यारे (वह असंख्य थे) की गोली से मारे जाते और नेता जी हिंदुत्ववादी विचारधारा को न केवल भारत, बल्कि मनुष्यता का कोढ़ मानते थे।

लेकिन गांधी के हत्यारों के पास इतिहास, राजनीति , दर्शन तथा संस्कृति का अपना कारखाना है जिसके उत्पाद निराले हैं। वे महान राष्ट्र भक्त राजा महेन्द्र प्रताप को यकायक उछालते हैं, क्योंकि राजा साहब ने एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस को हराया था। तब वे सुविधानुसार यह भूल जाते हैं कि राजा साहब ने कांग्रेस को सिर्फ हराया था जबकि जनसंघी अटल बिहारी वाजपेयी की ज़मानत ज़ब्त कराई थी ।

राम-रावण, गांधी-गोडसे का द्वंद्व सनातन है।
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#GandhiJayanti
#MahatmaGandhi

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