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गुजरात का गुज़रा : अफ़ग़ानिस्तान को ”ग्रेवयार्ड ऑफ़ एंपायर्स” यूं ही नही कहा जाता!

द्वारिका प्रसाद अग्रवाल
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गुजरात का गुजरा
अहमदाबाद में हम दोनों तीन दिन रुके और तीन ऐसे लोगों से मिले जिनके बारे में जानकार आपको भी अच्छा लगेगा। अपनी बात शुरू करता हूँ उदय भाई से।

उदयसिंह जाधव आटो चलाते हैं। उनकी आटो में संगीत तो बजता ही है, गर्मी से बचने के लिए पंखा है, न्यूज़ पेपर लाइब्रेरी है, पेय जल का कन्टेनर है, नास्ते के लिए फरसाण रहता है, डस्टबिन भी है।

हमारे आटो में बैठने के पहले उन्होंने हमें दो ‘बैज’ दिए, दिल के, जो वे अपनी आटो में बैठने वाले प्रत्येक यात्री को देते हैं। मज़े की बात यह है कि उनकी आटो में मीटर नहीं है, वे अपने ग्राहकों से किराये की बात नहीं करते और न ही किराया मांगते। आप न दें तो भी कोई उज्र नहीं, यदि देना चाहते हैं तो वे आपको एक लिफाफा दे देंगे, आप जो उचित समझे, उसमें भर दें, वे चुपचाप रख लेंगे और आपको प्रणाम करेंगे। लिफाफे तीन हैं, एक हिन्दी भाषा का, दूसरा गुजराती और तीसरा अंग्रेजी में। उसमें लिखा हुआ है- ‘दिल से दें।’ मैंने उदय भाई से पूछा- ‘दिल से कैसे दें, पैसे तो जेब में रहते हैं ?’

‘बिलकुल यही बात मुझसे महेंद्र सिंह धोनी ने भी पूछी थी।’ वे हंसते हुए बोले।

‘ऐसा क्या ?’
‘जी, मैंने उनको कहा- ‘दूसरे आटो वालों को जेब वाला पैसा पसंद आता है, मुझे तो दिल वाला पैसा चाहिए।’
‘इस दिलदारी में घर का खर्च चल जाता है ?’

‘हाँ अंकल जी, बीस साल से आटो चला रहा हूँ, मेरा परिवार है, मैं बहुत मज़े में हूँ।’

‘मान लो, किसी ने पैसे नहीं दिये या लिफाफे में कम दिए तो ?’

‘तो भी मेरा दिल खुश हो जाता है क्योंकि मैं यह आटो पेट भरने के लिए नहीं चलाता।’

‘फिर किसलिए चलाते हो ?’
‘खुशी के लिए, अपनी खुशी के लिए, सबकी खुशी के लिए। अगर किसी को मैं ‘फ्री’ में घुमाया और उसे खुशी दे पाया तो मेरा जीवन सफल हो गया।’ उदय भाई बोले।

हम उन टोपीधारी उदय भाई के साथ तीन घंटे रहे, पूरे समय वे हमको अहमदाबाद के बारे में बताते रहे, पूरा शहर हमें घुमाया और हर समय मस्ती में मटकते रहे, गुनगुनाते रहे। अमिताभ बच्चन भी उनके आटो में घूम चुके हैं और उनके घर भी गए थे।

धन की अंधी दौड़ में पागल दुनिया के लिए इन ज़िंदादिल उदय भाई का जज़्बा गौर करने लायक है। आप कभी अहमदाबाद जाएँ तो उन्हें बुला लें, वे आपको लेने स्टेशन भी आ सकते हैं। उनका मोबाइल नंबर नोट कर लीजिए : 9428017326 उन्हें मेरे बारे में भी बताइएगा, ‘बिलासपुर वाले द्वारिका भाई।’

(यात्रा वृतांत : ‘मुसाफिर जाएगा कहाँ’ का एक अंश)

कुँ. बलवीर राठौड़ डढ़ेल
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अफगान/पश्तून एक गज़ब की उपद्रवी योद्धा जनजाति रही है जिसे काबू में करने में अच्छे अच्छे साम्राज्यों के पसीने निकल गए। ब्रिटिश एम्पायर जिसके बारे में कहा जाता है की उस राज में सूर्य अस्त नहीं होता था उन अंग्रेजों को पठानों ने दौड़ा दौड़ा कर मारा, इतनी किरकिरी हुई की अपमानित होकर ब्रिटिश फोर्स को पीछे हटना पड़ा।

शीत युद्ध के पीक पर सोवियत रूस ने अफगानिस्तान को कम्युनिस्ट स्फीयर में लाने के लिए अपने पूरे रिसोर्सेस के साथ उस देश पर धावा बोला। सालों तक युद्ध चला पर आखिरकर थक हार कर रूसियों को वापस अपने देश जाना पड़ा।

यही हाल अपनी तकनीकी कौशल और मिलिट्री श्रेष्ठता पर घमंड खाए अमेरिका का हुआ।

अफगानिस्तान को ग्रेवयार्ड ऑफ एंपायर्स यूं ही नही कहा जाता, अच्छे अच्छे नामचीन वहां जाकर पसर गए।

सिवाय एक के, राजा मानसिंह और उनकी कच्छवाहा सेना एकमात्र ऐसी हमलावर फौज़ थी जिनके बारे में कहा जा सकता है की उन्होंने पठानों को वाकई में नानी याद दिला दी।

मानसिंह की बहादुरी और युद्ध कौशल से प्रभावित होकर खुद पश्तूनों ने उनकी तारीफ की। अबुल फ़ज़ल लिखता है की अकबर को मानसिंह को काबुल की सूबेदारी से हटाना पड़ा क्योंकि पठानों को बेइज्जती महसूस होती थी की हिंदू उनपर राज कर रहे हैं। अफगान इतिहास में उन्होंने इतना तिरस्कार कभी नहीं झेला जितना उन्होंने मानसिंह के नीचे रहते हुए महसूस किया।

अब सोचिए अगर किसी दूसरी हिंदू जाति के पास इतना बेहतरीन पूर्वज होता तो । महिमा गा गा कर नाक में दम कर देते। असंख्य किताबें लिखी जाती। अंतराष्ट्रीय मंचों पर उनकी तारीफ में सेमिनार होते।

पर अफसोस मानसिंह एक क्षत्रिय थे। क्षत्रियों से वामपंथी और संघी दोनो तो नफरत करते ही करते है, खुद क्षत्रिय तक अपने योद्धाओं को बराबर सम्मान देने में हिचकते हैं।

दुनियां में शायद ही ऐसी कोई कम्युनिटी हो जिसे अपने ही वीरों से दिक्कत होती हो।

जिस मानसिंह की पूजा होनी चाहिए उन्हें अछूत बना दिया गया। जिस राजा ने हिंदू धर्म के उत्थान के लिए सबसे ज़्यादा काम किया उसे उसके खुद की जाति के लोगों ने गद्दार घोषित कर दिया। महाराणा प्रताप जो विपक्ष में होने के बावजूद जिन मानसिंह का सम्मान करते थे और जिन्होंने अपनी भतीजी का पाणिग्रहण मानसिंह के पोते के साथ किया, उन मानसिंह को आजकल कोई भी ऐरा गेरा राजपूत आकर गाली दे जाता है की ये तो राष्ट्रद्रोही थे।

पुण्यतिथि पर सादर नमन।
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