सेहत

चरम सुख : योनि को चिकना बनाये रखने के लिए : योनि की “छत” और उत्तेजित होने पर सुखद संवेदनाएं

जवाब: चरमसुख (Orgasm) वास्तव में स्त्री शरीर में एकत्रित यौन उत्तेजना के एकाएक पीक पर पहुंचकर शांत हो जाने की क्रिया है, जिसमें स्त्री के पेल्विक क्षेत्र में मांसपेशियों का लयबद्ध संकुचन होता है और परम आनंद की प्राप्ति होती है।

सम्भोग के दौरान होने वाली ऑर्गेज्म की प्राप्ति को ही चरम सुख कहते हैं, जिसका अनुभव यौन गतिविधियों के दौरान होता है। इन्हें ‘कामोन्माद’ और ‘चरमोत्कर्ष’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका अनुभव पुरुषों और महिलाओं दोनों हो होता है। मानव कामोन्माद आमतौर पर पुरुषों में लिंग की शारीरिक यौन उत्तेजना (आमतौर पर स्खलन के साथ) और महिलाओं में भगशेफ के परिणामस्वरूप होता है। यौन उत्तेजना स्व-अभ्यास (हस्तमैथुन) या एक यौन साथी (मर्मज्ञ सेक्स, गैर-मर्मज्ञ सेक्स, या अन्य यौन गतिविधि) के साथ हो सकती है।

महिलाओं में, संभोग सुख प्राप्त करने का सबसे आम तरीका भगशेफ की प्रत्यक्ष यौन उत्तेजना है (मतलब भगशेफ के बाहरी हिस्सों के खिलाफ लगातार मैनुअल, मौखिक, या अन्य केंद्रित घर्षण)। सामान्य आंकड़े बताते हैं कि 70-80% महिलाओं को संभोग सुख प्राप्त करने के लिए प्रत्यक्ष भगशेफ उत्तेजना की आवश्यकता होती है, हालांकि अप्रत्यक्ष क्लिटोरल उत्तेजना (उदाहरण के लिए, योनि प्रवेश के माध्यम से) भी पर्याप्त हो सकती है। मेयो क्लिनिक ने कहा, “संभोग तीव्रता में भिन्न होता है, और महिलाएं अपने संभोग की आवृत्ति और एक संभोग को ट्रिगर करने के लिए आवश्यक उत्तेजना की मात्रा में भिन्न होती हैं।” समग्र रूप से, 8,000 से अधिक संवेदी तंत्रिका अंत हैं, जो मानव लिंग या ग्लान्स लिंग में मौजूद जितने (या कुछ मामलों में अधिक) तंत्रिका अंत हैं। चूंकि भगशेफ लिंग के अनुरूप है, यह यौन उत्तेजना प्राप्त करने की अपनी क्षमता के बराबर है।

एक गलत धारणा, विशेष रूप से पुराने शोध प्रकाशनों में, यह है कि योनि पूरी तरह से असंवेदनशील है। हालांकि, पूर्वकाल योनि की दीवार में और लेबिया मिनोरा और मूत्रमार्ग के शीर्ष जंक्शन के बीच ऐसे क्षेत्र हैं जो विशेष रूप से संवेदनशील हैं। तंत्रिका अंत के विशिष्ट घनत्व के संबंध में, जबकि आमतौर पर जी-स्पॉट के रूप में वर्णित क्षेत्र एक संभोग का उत्पादन कर सकता है, और मूत्रमार्ग स्पंज, एक ऐसा क्षेत्र जिसमें जी-स्पॉट पाया जा सकता है, साथ चलता है योनि की “छत” और उत्तेजित होने पर सुखद संवेदनाएं पैदा कर सकती हैं, योनि उत्तेजना से तीव्र यौन सुख (संभोग सहित) कभी-कभी या अन्यथा अनुपस्थित होता है क्योंकि योनि में भगशेफ की तुलना में काफी कम तंत्रिका अंत होता है। योनि तंत्रिका अंत की सबसे बड़ी एकाग्रता योनि के निचले तीसरे (प्रवेश द्वार के पास) पर होती है।

महिला हस्तमैथुन के माध्यम से संभोग सुख प्राप्त कर रही है
क्लिटोरल या योनि/जी-स्पॉट उत्तेजना के अलावा अन्य माध्यमों से महिला ओर्गास्म वैज्ञानिक साहित्य में कम प्रचलित है और अधिकांश वैज्ञानिकों का तर्क है कि महिला संभोग के “प्रकार” के बीच कोई अंतर नहीं किया जाना चाहिए। यह भेद सिगमंड फ्रायड के साथ शुरू हुआ, जिन्होंने “योनि संभोग” की अवधारणा को क्लिटोरल ऑर्गेज्म से अलग बताया। 1905 में, फ्रायड ने कहा कि क्लिटोरल ओर्गास्म विशुद्ध रूप से एक किशोर घटना है और यौवन तक पहुंचने पर, परिपक्व महिलाओं की उचित प्रतिक्रिया योनि ओर्गास्म में बदलाव है, जिसका अर्थ है बिना किसी क्लिटोरल उत्तेजना के कामोन्माद। जबकि फ्रायड ने इस मूल धारणा के लिए कोई सबूत नहीं दिया, इस सिद्धांत के परिणाम काफी थे। कई महिलाओं ने अपर्याप्त महसूस किया जब वे अकेले योनि संभोग के माध्यम से संभोग सुख प्राप्त नहीं कर सके, जिसमें बहुत कम या कोई क्लिटोरल उत्तेजना शामिल नहीं थी, क्योंकि फ्रायड के सिद्धांत ने लिंग-योनि संभोग को महिलाओं की यौन संतुष्टि का केंद्रीय घटक बना दिया


सम्भोग

सम्भोग (अंग्रेज़ी: Sexual intercourse) मैथुन या सहवास की उस क्रिया को कहते है जिसमें नर का लिंग मादा की योनि में प्रवेश करता है। सम्भोग अलग अलग जीवित प्रजातियों के हिसाब से अलग अलग प्रकार से हो सकता है। सम्भोग को योनि मैथुन, काम-क्रीड़ा, रति-क्रीड़ा भी कहते हैं। सृष्टि में आदि काल से सम्भोग का मुख्य काम वंश को आगे चलाना व बच्चे पैदा करना है। जहाँ कई जानवर व पक्षी सिर्फ अपने बच्चे पैदा करने के लिए उपयुक्त मौसम में ही सम्भोग करते हैं वहीं इंसानों में सम्भोग इस वजह के बिना भी हो सकता है। सम्भोग इंसानों में सुख प्राप्ति या प्यार या प्रेम दिखाने का भी एक रूप है।

सम्भोग अथवा मैथुन से पूर्व की क्रिया, जिसे अंग्रेजी में फ़ोर-प्ले कहते है, इसके दौरान हर प्राणी के शरीर से कुछ विशेष प्रकार की गन्ध (फ़ीरोमंस) उत्सर्जित होती है जो विषमलिंगी को मैथुन के लिये अभिप्रेरित व उत्तेजित करती है। कुछ प्राणियों में यह मौसम के अनुसार भी पाया जाता है। वस्तुत: फ़ोर-प्ले से लेकर चरमोत्कर्ष की प्राप्ति तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया ही सम्भोग कहलाती है बशर्ते कि लिंग व्यवहार का यह कार्य विषमलिंगियों के बीच हो रहा हो। कई ऐसे प्रकार के सम्भोग भी हैं जिसमें लिंग का उपयोग नर और मादा के बीच नहीं होता जैसे मुख मैथुन अथवा गुदा मैथुन उन्हें मैथुन तो कहा जा सकता है परन्तु सम्भोग कदापि नहीं। उपर्युक्त प्रकार के मैथुन अस्वाभाविक अथवा अप्राकृतिक व्यवहार के अन्तर्गत आते हैं या फिर सम्भोग के साधनों के अभाव में उन्हें केवल मनुष्य की स्वाभाविक आत्मतुष्टि का उपाय ही कहा जा सकता है, सम्भोग नहीं।


बैठने की स्थिति से संभोग करने वाला युगल, लोटस की स्थिति या लोटस का फूल कहलाता है
विभिन्न देशों में कुछ विशेष प्रकार के यौन कृत्यों पर प्रतिबंध है। अलग-अलग धर्मों और सम्प्रदायों के बीच कामुकता पर अलग-अलग विचार है। मानव को छोड़कर अधिकांश जीवों में सम्भोग करने का विशेष मौसम होता है। इस समय गर्भ धारण करने की संभावना सर्वाधिक होती है।


कानून
संभोग, सहवास के रूप में, मानव प्रजातियों के लिए प्रजनन का प्राकृतिक तरीका है। मनुष्यों ने इसके लिए नैतिक दिशानिर्देश बनाए हैं, जो धार्मिक और सरकारी कानूनों के अनुसार भिन्न होते हैं। कुछ सरकारों और धर्मों में “उपयुक्त” और “अनुचित” यौन व्यवहार के सख्त कानून या नियम बनाए गए हैं।

यौन अपराध
किसी मनुष्य के साथ बिना उसकी इच्छा या बिना उसे बताए उसके साथ संभोग करना बलात्कार की श्रेणी में आता है जिसे यौन उत्पीड़न भी कहा जाता है। यह कई देशों में गंभीर अपराध माना जाता है। आंकड़ों के अनुसार इस अपराध से पीड़ित लोगों में 90% से ज्यादा प्रतिशत महिलाओं का है। इन आंकड़ों के अनुसार 99% ब्लात्कारी पुरुष होते हैं और 5% मामलों में पीड़ित का ब्लात्कारी से जान-पहचान नहीं होता है।

ज़्यादातर देशों में सहमति हेतु निम्नतम उम्र निर्धारित किया गया है, जो आमतौर पर अलग अलग देशों में 16 से 18 के बीच होता है। यदि कोई निर्धारित उम्र से कम व्यक्ति से साथ उसके सहमति लेकर भी संभोग करता है, तो भी उसे कानूनी अपराध ही माना जाता है। कुछ देशों में ऐसे व्यक्ति के साथ संभोग करना, जिसकी मानसिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वो सहमति दे सके, उसे भी बलात्कार माना जाता है, चाहे उम्र कितनी भी हो।


योनि

मादा के जननांग को योनि कहा जाता है। सामान्य तौर पर “योनि” शब्द का प्रयोग अक्सर भग के लिये किया जाता है, लेकिन जहाँ भग बाहर से दिखाई देने वाली संरचना है वहीं योनि एक विशिष्ट आन्तरिक संरचना है। योनि बहुत संवेदनशील होती है।

योनि के भाग

योनि का बाहरी दिखाई देने वाला हिस्सा भग कहलाता है। यह दोनों जाँघो के बीच योनि का प्रवेश-द्वार है। व्यस्क स्त्रियों में यह चारो और से बालों से घिरा होता है। यह त्वचा की कई परतों से बनी होती है, जो भीतरी अंगों को सुरक्षा प्रदान करती है। यह कई उपांगों को समाविष्ट किय हुए हैं जैसे भगशिशिनका, मूत्रमार्ग का छिद्र, योनि की झिल्ली (हाइमेन), लघु ग्रंथियां, वृहत भगोष्ठ, लघुभगोष्ठ इत्यादि। यह गर्भाशय से योनि प्रघाण तक फैली हुई लगभग 8 से 10 सेमीमीटर लम्बी नली होती है जो मूत्राशय एवं मूत्रमार्ग के पीछे तथा मलाशय एवं गुदामार्ग के सामने स्थित होती है। एक वयस्क स्त्री में योनि की पिछली भित्ति उसकी अगली भित्ति से ज्यादा लम्बी होती है और योनि गर्भाशय के साथ समकोण बनाती है।

योनि की भित्तियाँ मुख्यतः चिकनी पेशी एवं फाइब्रोइलास्टिक संयोजी ऊतक की बनी होती है जिससे इनमें फैलने का गुण बहुत अधिक होता है और इनमें रक्त वाहिनियों एवं तन्त्रिकाओं की आपूर्ति होती है। सामान्य अवस्था में योनि की भित्तियाँ आपस में चिपकी रहती है संभोग क्रिया के दौरान लिंग के योनि में प्रविष्ट होने पर वे अलग-अलग हो जाती है। गर्भाशय ग्रीवा (cervix) के योनि में उभर आने से इसके आगे, पीछे तथा पार्श्वों में चार खाली स्थान बनते हैं जिन्हें फॉर्निसेस (fornices) कहा जाता है।

योनि की भित्ति दो परतों से मिलकर बनी होती है-

(1) पेशीय परत (Muscular layer)- इस परत में चिकनी पेशी के लम्बवत् एवं गोलाकार तन्तु तथा तन्तुमय लचीले संयोजी ऊतक रहते हैं। इसी कारण से योनि में बहुत ज्यादा फैलने और सिकुड़ने का गुण पैदा होता है।

(2) श्लेष्मिक परत (Mucous layer)- यह श्लेष्मिक कला की आतंरिक परत होती है जो पेशीय परत को आस्तरित करती है। इस परत में बहुत सी झुर्रियाँ (rugae) रहती है। यह परत स्तरित शल्की उपकला (stratified squamous epithelium) अर्थात् परिवर्तित त्वचा, (इसमें बाल नहीं होते) (nonkeratinizing), से आच्छादित (ढकी) रहती है। यौवनारम्भ के बाद यह परत मोटी हो जाती है और ग्लाइकोजन से परिपूरित रहती है। इसमें ग्रन्थियाँ नहीं होती है।

योनि को चिकना बनाये रखने के लिए श्लेष्मा स्राव गर्भाशय ग्रीवा में मौजूद ग्रन्थियों से ही आता है। यह स्राव क्षारीय होता है लेकिन योनि में प्राकृत रूप से पाये जाने वाले बैक्टीरिया (डोडर्लिन बेसिलाइ) श्लेष्मिक परत में मौजूद ग्लाइकोजन को लैक्टिक एसिड में बदल देते हैं, जिससे योनि के स्राव की प्रतिक्रिया अम्लीय हो जाती है। इससे योनि में किसी भी तरह का संक्रमण होने की संभावना समाप्त हो जाती है।

योनि का अम्लीय वातावरण शुक्राणुओं के प्रतिकूल होता है लेकिन पुरुष की अनुषंगी लिंग ग्रन्थियों से स्रावित होने वाले द्रव क्षारीय होते हैं, जो योनि की अम्लता को निष्क्रिय करने में मदद करते हैं। डिम्बोत्सर्जन समय के आस-पास गर्भाशय ग्रीवा की ग्रन्थियाँ भी ज्यादा मात्रा में क्षारीय श्लेष्मा का स्राव करती है। जिससे बच्चा बनाने में सहायता मिलती है।


गुदा

परिचय
गुदा शरीर के पाचक नाल का अंतिम एक या डेढ़ इंच लंबा भाग है, जिसके वहि:छिद्र (external orifice) से मल शरीर से बाहर निकलता है। इस नली की रचना भी नाल के शेष भाग के ही समान है, अर्थात्‌ सबसे भीतर श्लैष्मिक स्तर और उसके बाहर वृत्ताकार और अनुदैर्ध्य मांससूत्रों के स्तर और उनके बाहर सीवीय कला। नीचे की ओर छिद्र पर श्लेष्मल कला और त्वचा का संगम (mucocutaneous Junction) है। यहां भीतर की अनुवृत्त मांससूत्रों की संख्या में विशेष वृद्धि से बाह्य गुदसंवरणी (external spincter) पेशी बन गई है, जिसके संकोच से गुदाछिद्र बंद हो जाता है। इससे ऊपर नली के ऊपरी भाग में भी एक ऐसी ही, किंतु इससे बड़ी संवरणी पेशी है जिसके वास्तव में दो भाग हैं। इन संवरणी पेशियों की क्रिया श्रोणितंत्रिकाओं के अधीन है।

चरम सुख (आर्गेज्‍म) और परमानन्द में क्या अंतर है-मंथन

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चलत मुसाफिर मोह लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया..
उड़ उड़ बैठी हलवैया दुकनिया
हे रामा..उड़ उड़ बैठी हलवैया दुकनिया
अरे..बरफी के सब रस ले लियो रे

पिंजड़े वाली मुनिया..
गीतकार शैलेन्द्र साहब का लिखा हुआ एक ऐसा सदाबहार गीत, जो कहीं भी सुनने को मिल जाये तो हमारे चलते हुए क़दमों को रोक देता हैै। शैलेन्द्र जी ने गीत में पिंजड़े में बंद मुनिया पक्षी और मज़बूरी व मर्यादाओं के पिंजड़े में कैद भारतीय नारी की चर्चा की हैै। इस लेख में मैं मुनिया शब्द का प्रयोग सेक्स के लिए करने जा रहा हूँ। भारत में यूँ तो शर्म, संकोच और मर्यादाओं के पिजड़े में सेक्स रूपी मुनिया कैद है, परन्तु जीवन के सफर में स्त्री हो या पुरुष, ऐसा कोई मुसाफिर नहीं, जिसे ये अपने मोहजाल में न फंसाई होै।

स्त्री और पुरुष का शरीर किसी हलवाई की दुकान के जैसा ही है, जहांपर शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श रूपी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न सजे हुए हैं। सेक्सवाली मुनिया जब स्त्री व पुरुष के भीतर से निकलकर बाहर सजी शरीर रूपी हलवाई की दुकान पर बैठती है तो शब्द रूपी, रूप रूपी. रस रूपी, गंध रूपी और स्पर्श रूपी बर्फी का स्वाद लेकर ही उड़ती हैै। संसार में कोई भी जीवात्मा आये और जाये, ये सेक्स रूपी पिंजड़ेवाली मुनिया किसी का भी जल्दी पीछा नहीं छोड़ती हैै। यदि पूरी ईमानदारी से स्वीकार किया जाये तो बात सत्य लगेगीै।
सेक्स पर मुझे अपने विचार व्यक्त के लिए मुंबई से आई एक महिला ने प्रेरित कियाै। उसने मुझसे एक प्रश्न पूछा था- गुरुदेव.. चरम सुख (आर्गेज्‍म) और

परमानन्द में क्या अंतर है?

मैंने जबाब देने से पहले पूछा- क्या आप चरम सुख का अनुभव की हैं..
मुंबई में एक प्राइवेट स्कूल में वो टीचर हैै। बिना किसी शर्म या संकोच के वो मुस्कुराते हुए बोली- “शादी के बाद दो साल तक तो मैं चरम सुख का कोई अनुभव नहीं की थीै। मेरे पति रात को देर से अपनी ड्यूटी से लौटते थेै। खाना खाते ही उन्हें नींद आने लगती थीै। जिस रात भी मुझसे शारीरिक सम्बन्ध बनाते थे, बस दो मिनट में अपनी भूख मिटा के सो जाते थेै। मैं भी इसी को सेक्स संबंध समझती थीै।

जब मैंने पढ़ाने के लिए स्कूल जाना शुरू किया तो मेरे साथ पढ़ाने वाली मेरी एक सहेली से मुझे मालूम पड़ा कि परुष और स्त्री दोनों को ही शारीरिक मिलन के दौरान चरम सुख प्राप्त होता है, इसीलिए उनके शारीरिक मिलन को सम्भोग (समान रूप से भोग) का नाम दिया गया हैै। चरम सुख प्राप्ति के समय पुरुष के लिंग से वीर्य का स्राव होता है, जिसमें उसे आनंद की प्राप्ति होती हैै। स्त्री में चरमसुख प्राप्ति के समय गर्भाशय के सिकुड़ने से कफ जैसा चिपचिपाहट वाला पदार्थ निकलता है, जो संपूण योनि पथ को गीला और चिपचिपा कर देता हैै।”

वो आगे बोली- “इस बारे में मैंने कुछ किताबे खरीदकर अध्य्यन किया और पूरी जानकारी होने के बाद मैंने अपने पति को समझाया कि वो मुझे भी चरम सुख यानि यौन-संतुष्टि देै। ये सब सुनते ही पहले तो वो मुझपे शक करने लगा कि मैं किसी और पुरुष के सम्पर्क में तो नहीं आ गई हूँ? स्त्री को चरम सुख मिलने की बात मुझे कैसे पता चली? मैंने उसका संदेह दूर करने के लिए चरम सुख पाने से संबंधित किताबे दिखाई और अपनी सहेली से मिलवाया, तब जाके उसका संदेह दूर हुआै। मेरी लाई हुईं किताबे उसने पढ़ीं और उसमे दी गई सलाह के अनुसार जब उसने यौन-क्रिया की, तब जीवन में पहली बार मैंने चरम सुख का रसास्वादन कियाै।

चरम तृप्ति के समय प्राप्त होने वाले आनंद का वर्णन करना कठिन हैै। उस आनंद की प्राप्ति के समय मेरी आँखे मूंद गईं। योनि द्वार, भगांकुर, गुदापेशी व गर्भाशय मुख के पास की पेशियां तालबद्ध रूप में फैलने व सिकुड़ने लगीं। पूरे शरीर का अंग-अंग तनने और फड़कने लगाै। कानों के अंदर झनझनाहट होने लगीै। शरीर में हल्‍कापन महसूस होने लगाै। सुख की लहर में दौड़ता मन प्रियतम के प्रति प्रेम से भर उठाै। देरतक पति से लिपटी रहीै। जोर से पेशाब लगने के एहसास ने मुझे उनसे अलग कियाै। कुछ भूख भी महसूस हो रही थीै। आज पहली बार मेरे पति ने अपने साथ साथ मुझे भी सम्पूर्ण यौन-आनंद प्रदानकर सम्भोग शब्द को सार्थकता प्रदान की थीै।”

मैंने उस युवा स्त्री से कहा- “आप भाग्यशाली हैं। स्त्री-पुरुष के शारीरिक मिलन के समय प्रकृति की पांचों तन्मात्राओं शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के प्रेममय प्रयोग से उपजी चरमतृप्ति का आपने अनुभव कियाै। देश की अधिकतर महिलाऐं इस चरम सुख से वंचित हैं। अधिकतर पुरुष स्त्री से अपनी वासना की भूख शांत करने भर से ही मतलब रखते हैं। बहुत से लोग स्त्री से मन ही मन घृणा करते हुए उसे पुरुष के भोग की एक वस्तु मात्र समझते हैं। आज के युग में भी कई रूढ़िवादी विचारों वाले समुदाय के लोग स्त्री की यौन-संतुष्टि का कोई ध्यान नहीं रखते हुए जानवरों की तरह केवल सन्तानोत्पत्ति के लिए यौन-संबंध स्थापित करते हैं।”

मेरी बात सुनकर उस स्त्री ने कहा- “जी..आप ठीक कह रहे हैं।यहांपर गांव में जब अपने ससुराल में मैं रहती हूँ तो पति से रात को मिलना मुश्किल हो जाता है। सास और ससुर का भय और ननद व जेठानियो के ताने। ये सब झेलने के बावजूद भी इस भय से कि पति कही और जाके मुंह न मारे। चोरी-छिपे धड़कते हुए दिल से पति से किसी तरह से कहीं एकांत में मिल भी लिए तो अधखुले वस्त्रों में खुद भूखे रहते हुए पति की भूख शांत कर दी। बस इतना ही मेरे लिए काफी है।

भारतीय नारी की यही नियति है गुरुदेव! परन्तु फिर भी कई देशों की उन लाखों-करोड़ों ओरतों से तो वो ज्यादा ही भाग्यशाली हैं जिनके गुप्तांग बचपन में ही काट और सील दिए जाते हैं, ताकि चरम सुख होता क्या है, जीवनभर कभी न तो वो जान सकें और न कभी महसूस कर सकें। इतना कहकर वो गहरी साँस लेते हुए बोली- “अब इस विषय को छोड़िये और मुझे परमानंद के बारे में बताइये।”

मैंने उसे परमानन्द के बारे में समझाते हुए कहा- “प्रकृति से सहवास का परिणाम यदि चमसुख है तो पुरुष से सहवास (साथ रहना) का परिणाम परमानन्द है। परमानंद पुरुष या ईश्वर के समीप रहने का प्रसाद है। प्रकृति की तन्मात्राएँ बहिर्मुखी और स्थूल होकर स्त्री-पुरुष के विधिवत सहवास से चरमसुख देती हैं और वही तन्मात्राएँ अंतर्मुखी, सूक्ष्म और दिव्य होकर भक्त और भगवान के भक्तिमय सहवास से परमानन्द प्रदान करती हैं। हर व्यक्ति के भीतर रतिमय एक अर्द्धनारीश्वर स्वरुप है, उसकी जागृति ही भक्त की जागृति है। जागृत भक्त ही ईश्वर का दिव्य शब्द सुनता है, उसका दिव्य रूप देखता है..उसकी विभूतियों का दिव्य रसास्वादन करता है..उसकी उपस्थिति की दिव्य गंध महसूस करता है और भक्त भगवान का दिव्य स्पर्श प्राप्त करता है, यही परमानन्द है।”
अंत में सेक्स रूपी मुनिया की फिर खोज खबर ले लें। दुनिया में इस बात पर बहुत विवाद है कि सेक्स का दर्शन नग्ण्ता में है या फिर सिर से पांव तक ढके हुए वस्त्रों में? अगर मुझसे आप पूछें तो कवि शैलेन्द्र साहब के शब्दों में बस यही कहूँगा कि-

उड़ उड़ बैठी बजजवा दुकनिया
आहा..उड़ उड़ बैठी बजजवा दुकनिया
अरे..कपडा के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया..
चलत मुसाफिर मोह लियो रे

पिंजड़े वाली मुनिया..
(ये आलेख एक ऐसी स्त्री से बातचीत पर आधारित है, जो आधुनिक और बोल्ड विचारों की स्वामिनी है। मैंने लेख में उसका कोई नाम नहीं दिया है, क्योंकि दुर्भाग्य से ऐसी स्त्रियों को हमारे देश में चरित्रहीन समझा जाता है और शक की निगाहों से देखा जाता है। मुझे उससे हुई बातचीत ज्ञानवर्द्धक और हमारे जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू लगी, इसीलिए नभाटा के मंच पर उसे आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ। एक निवेदन आप सबसे और है कि इसे शान्ति से दो तीन बार पढ़े, फिर अपनी प्रतिक्रिया दें। आप मने या न माने, परन्तु यह एक सच्चाई है कि प्रकृति का चरम सुख और पुरुष का परमानंद पाना आदिम युग से मनुष्य के जीवन का मूल लक्ष्य रहा है और आज भी है। इस लेख को एक रिसर्च के रूप में देंखे, जो जितनी सांसारिक है, उतनी ही आध्यात्मिक भी है।)
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आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.