साहित्य

चार कौवे थे, सबसे अच्छी ‘भाजी’ कौन सी होती है को लेकर चारों लड़ पड़े!

चित्र गुप्त
Lives in Lucknow, Uttar Pradesh

From Bahraich
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चार कौवे थे।
पहला कौआ विशुद्ध भारतीय था। बिना हाथ गोड़ धोये पूजा पाठ किये एक बूंद पानी भी नहीं पीता था। उसे कुछ मंत्र भी याद थे जिनका स्मरण वो सुबह शाम किया करता था। उन मंत्रों के बारे में उसे बस इतना ही पता था कि वे उसके पिता जी भी पढ़ते थे और उसके पिता जी के पिता जी भी… कड़ियाँ इसी तरह आगे तक भी जुड़ी थीं। जो शायद बहुत लंबे तक जाती थीं।

दूसरा कौवा अरबी था। जो अरब देशों में पानी न होने के कारण पैदा हुई अपनी आदतों को सागर तट पर भी नहीं छोड़ना चाहता था। रहन सहन और खान पान से तो वो आधुनिक ही था। पर विचारों के मामले में उसके परदादा के परदादा ने जो हजारों साल पहले कह दिया था उसी को वो पक्का मानता था।
तीसरा कौआ इजिप्टियन था। जिसका एक भी काम वैसे तो गांधी जी से नहीं मिलता था फिर भी उसकी शक्ल देखते ही न जाने क्यों पोरबंदर की याद आने लग जाती थी। वह सुबह उठते ही वह कंकर ढूढ ढूढ कर पिरामिड बनाने में लग जाता और देर रात तक लगा रहता। हालांकि दिन में तीन चार बार उसके इकट्ठे किये कंकर पत्थरों को लहरें बहा ले जातीं फिर भी उसे भरोसा था कि किसी न किसी रोज वह एक आध पिरामिड बना ही लेगा।
सबसे स्मार्ट और बातूनी चौथा कौवा था। उसकी शक्ल अमरीका के राष्ट्रपति और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की शक्ल को मिक्सर में में आधे घंटे घुमाने के उपरांत बनी भालू कुमार जैसी थी। वो हर बात में अपनी अंग्रेजी झाड़ता जिसे तीनों कौवे बड़े इत्मीनान से सुनते.. इस चौथे का भगवान भी सबसे कमाल का था। वो हाथ उठाता तो तूफान रोक देता और अगर माथा चूम ले तब तो कोई मुर्दा भी जिंदा हो जाता।

प्रवास का समय सुख पूर्वक बीत ही रहा था कि एक रोज सबसे अच्छी ‘भाजी’ कौन सी होती है को लेकर चारों लड़ पड़े।

पहले कौवे को आलू छोड़कर दूसरा कुछ पसंद न था। इसलिए उसने ‘भाजी’ का नाम आते ही ‘आलू’ ‘आलू’ जपना शुरू कर दिया।

दूसरे और तीसरे ने ‘अल्बाटेटिस’ कहकर चिल्लाना शुरू किया। जिसपर वे दोनों आपस में ही लड़ पड़े। कि मेरा वाला ‘अल्बाटेटिस’ ही सबसे बढ़िया है।
चौथे ने धीरे से ‘पोटैटो’ कहा और मुंह घुमाकर बैठ गया। इस कौवे की बाकी हर बार मानने वाले पहले दूसरे और तीसरे इस बात पर कांव कांव करके रुक्का फाड़ने लगे और थोड़ी देर में ही माहौल गरम हो गया।

मामला किसी तरह हल नहीं हुआ तो अंत में चारों ने फैसला किया कि सब रातों रात जाकर अपने अपने देस से कथित सामान लेकर आएंगे और बाकियों को खिलाकर अपनी श्रेष्ठता साबित करेंगे।

पौ फटा सागर तट एक बार फिर गुलजार हुआ। चारों अपने अपने चोंच में अपनी श्रेष्ठ मिल्कियत लेकर बैठे थे।

पहला चिल्लाया सबके मुंह में आलू ही है। दूसरे और तीसरे ने नुक्ते पर ख़ास ध्यान देते हुए अल्बाटेटिस कहा जिसपर चौथे ने पोटैटो की मुहर लगा दी।

चारों ने बारी बारी से सब उलट पुलट कर देखा। अब तक कौन सा वाला पीस कौन लाया था यही पहचान में नहीं आ रहा था।
में सोच रहा हूँ ए चारों आलू के जैसे अपने अपने भगवान भी साथ ले आते तो उसका फैसला भी अभी हो जाता….

#चित्रगुप्त