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चीन अमेरिका के इस क़दम से आक्रोशित हुआ, कहा-इस विवादित जलक्षेत्र में कोई दख़ल नहीं होना चाहिए : रिपोर्ट

चीन के ताइवान के इर्द-गिर्द बड़ा सैन्य अभ्यास पूरा करने के बाद अब अमेरिका और फ़िलीपींस ने अपना अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास शुरू किया है.

पिछले सप्ताह ताइवान की नेता ने अमेरिका की हाउस स्पीकर से मुलाक़ात की थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए चीन ने तीन दिन तक ताइवान पर हमले का युद्धाभ्यास किया. इसमें इस द्वीप की चौतरफ़ा घेराबंदी भी शामिल रही.

अमेरिका ने चीन के इस शक्ति प्रदर्शन को अत्याधिक बताते हुए इसकी आलोचना की जबकि ताइवान की राष्ट्रपति ने कहा कि ये सैन्यअभ्यास ग़ैर ज़िम्मेदाराना था और उनके पास अमेरिका की यात्रा करने का अधिकार है.

हालांकि अमेरिका और फ़िलीपींस का सैन्य अभ्यास पूर्व नियोजित था.

फ़िलीपींस और अमेरिका के नेताओं का कहना है कि ये सैन्य अभ्यास शांति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है और ये सुनिश्चित करता है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र स्वतंत्र रहे.

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President Xi told the military to resolutely defend China’s territorial sovereignty and maritime rights and interests, and strive to maintain the overall stability of the country’s neighboring regions when he inspected the navy of the PLA Southern Theater Command on Tue.

 

पिछले सप्ताह अमेरिका ने घोषणा की थी कि हर साल होने वाला उनका बाली-काटान युद्धाभ्यास अब तक का सबसे बड़ा होगा. इसमें 17 हज़ार सैनिक हिस्से ले रहे हैं जिनमें से 12 हज़ार अमेरिकी हैं.

बालीकाटान नाम के इस दो सप्ताह चलने वाले इस युद्धाभ्यास में सेनाएं दक्षिण चीन सागर में एक डमी युद्धपोत को निशाने बनाने का अभ्यास भी करेंगी. इससे चीन का ग़ुस्सा भी भड़क सकता है.

ताइवान विवाद के साये में अभ्यास

अमेरिका और फ़िलीपींस के अधिकारियों का कहना है कि इस युद्धाभ्यास को ताइवान में हुए घटनाक्रम की प्रतिक्रिया के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

इस साल फ़रवरी में अमेरिका और फ़िलीपींस के बीच एक नया सैन्य समझौता हुआ है जिसके तहत विवादित जल क्षेत्र के क़रीब फ़िलीपींस के द्वीपों पर चार नोसैनिक अड्डे स्थापित किए जाएंगे.

इनमें से तीन लुजॉन द्वीप के उत्तर में होंगे. ये चीन के अलावा ताइवान की तरफ़ सबसे क़रीबी ज़मीन है.

फ़िलीपींस और दक्षिण चीन सागर से होकर गुज़रने वाले जलमार्गों से दुनिया का सबसे क़ीमती कारोबार गुज़रता है और हाल के सालों में चीन इन जलक्षेत्रों पर अपना दावा ठोक रहा है.

सोमवार को जब चीन के लड़ाकू विमान और युद्धपोत ताइवान की घेराबंदी करके युद्धाभ्यास कर रहे थे, अमेरिका ने अपने एक विध्वंसक युद्धपोत को दक्षिण चीन सागर में भेजा था. अमेरिका ने इसे नोसैनिक अभियान की स्वतंत्रता बताया था.

अमेरिका ने अपने युद्धपोत यूएसएस मीलियस को स्पार्टले द्ववीप के क़रीब से गुज़ारा. ये फ़िलीपींस के विशेष आर्थिक क्षेत्र में आता है लेकिन चीन इस पर अपना दावा करता है.

चीन अमेरिका के इस क़दम से आक्रोशित हुआ है. चीन ने सोमवार को ये भी कहा है कि अमेरिका और फ़िलीपींस के बीच सैन्य सहयोग से इस विवादित जलक्षेत्र में कोई दख़ल नहीं होना चाहिए.

चीन के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने सोमवार को कहा, “[उसे] दक्षिण चीन सागर विवाद में दख़ल नहीं देना चाहिए, चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता, नौ-परिवहन अधिकारों और सुरक्षा हितों को नुक़सान नहीं पहुंचाना चाहिए.”

चीन का सैन्य अभ्यास सोमवार को समाप्त हो गया था. ताइवान के रक्षा मंत्री ने कहा है कि उनका देश लड़ाई की अपनी तैयारियों को और पुख़्ता कर रहा है.


युद्धाभ्यास में और देश भी शामिल

ताइवान की राष्ट्रपित साई इंग वेन ने सोमवार को किए एक फ़ेसबुक पोस्ट में कहा है कि उनके पास अपने द्वीप राष्ट्र का विश्व मंच पर प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है. उन्होंने अमेरिका में अपने पड़ाव पर चीन की प्रतिक्रिया की आलोचना करते हुए कहा कि ये एक क्षेत्रीय शक्ति का ग़ैर-ज़िम्मेदार क़दम है.

बालीकातान सैन्य अभ्यास में इस क्षेत्र के दर्जनों अन्य देश भी हिस्सा लेंगे. ये अभ्यास 26 अप्रैल तक चलेगा. ऑस्ट्रेलिया इसमें अपने 100 सैनिक भेज रहा है.

बालीकाता सैन्य अभ्यास का फोकस हाल के सालों में बदलता रहा है और इस पर क्षेत्र में बदल रही भू-सुरक्षा चिंताओं की छाप दिख रही है. साल 2000 के दशक में ये सैन्य अभ्यास आतंकवाद विरोधी अभ्यास पर केंद्रित था. उस समय चरमपंथी संगठन अल क़ायदा से जुड़े लोगों ने दक्षिणी फ़िलीपींस में बम धमाके किए थे.

हालांकि, चीन की तेज़ी से बढ़ती सैन्य ताक़त और दक्षिण चीन सागर में बढ़ रहे तनाव और फ़िलीपींस के कई द्वीपों पर चीन के दावों के बाद इस युद्ध अभ्यास का फ़ोकस भी बदला है.

इस क्षेत्र की सुरक्षा में फ़िलीपींस की भूमिका भी बड़ी है. कई लोगों को ये लगता है कि फ़िलीपींस के अड्डों तक बढ़ती अमेरिका की पहुंच ताइवान पर हमले या दक्षिण चीन सागर में संघर्ष छिड़ने की स्थिति में अमेरिका को आक्रामक हमले करने के लिए लांचपैड मुहैया कराएगी.

फ़िलीपींस के राष्ट्रपति फर्दीनांद मार्कोस जूनियर ने सोमवार को कहा है कि अमेरिका आक्रामक कार्रवाइयों के लिए फ़िलीपींस के अड्डों का इस्तेमाल नहीं कर सकेगा.

उन्होंने कहा, “चीन की प्रतिक्रिया (ताइवान पर) हैरान करने वाली नहीं है, क्योंकि उसकी अपनी चिंताएं हैं. लेकिन फ़िलीपींस अपने अड्डों का इस्तेमाल किसी भी आक्रामक कार्रवाई के लिए नहीं होने देगा. ये ज़रूरत पड़ने पर सिर्फ़ फ़िलीपींस की मदद करने के मक़सद से किया जा रहा है.”

अमेरिका फ़िलीपींस में ऐसी जगहें चाह रहा है जहां से ज़रूरत पड़ने पर हल्के और ख़ुफ़िया अभियान चलाए जा सकें और सप्लाइ लाइन स्थापित की जा सके. अमेरिका ऐसे अड्डे नहीं देख रहा हैं जहां बड़ी तादाद में सैनिकों को रखा जा सकता है.

फ़रवरी में अमेरिका ने एक नए सैन्य समझौते के तहत फ़िलीपींस में चार और अड्डों तक पहुंच हासिल की थी. इस समझौते के बाद अमेरिका दक्षिण कोरिया और जापान से लेकर दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया तक अपने नोसौन्य अड्ढों का जाल बिछा सकेगा.

अमेरिका के पास जिस एक अड्डे तक अब पहुंच है वो ताइवान की तरफ है. दूसरे अड्डे का नाम स्कारबरो शॉल और तीसरा स्पार्टले आइलैंड पर है. इन अड्डों पर अमेरिकी सैनिक कम संख्या में क्रमवार तैनात होंगे.

विश्लेषकों का कहना है कि इसका मक़सद दक्षिण चीन सागर में चीन के और विस्तार को रोकना है. इसके अलावा यहां से अमेरिका ताइवान के इर्द-गिर्द चीन की सैन्य गतिविधियों पर भी नज़र रख पाएगा.

ताइवान को लेकर संघर्ष की आशंकाएं बढ़ रही हैं, ऐसे में फ़िलीपींस अमेरिका को पीछे से पहुंच वाला इलाक़ा दे सकता है. इसके अलावा ज़रूरत पड़ने पर यहां शरणार्थी को लाकर भी रखा जा सकता है.

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केली एनजी और जोएल ग्विंतो
बीबीसी न्यूज़